पुरुष आखिर क्यों नहीं रो सकते.. Whyn't cry man?
पुरुष आखिर क्यों नहीं रो सकते..whyn't cry man.???
हम लोग बचपन से ही यह देखते आ रहे हैं परिवार में विशेषकर लड़कों को ..जब भी वह रोते हैं तो उन्हें कहा जाता है " बॉयज डोंट क्राय " लड़के रोते नहीं हैं और जो भावनात्मक गुब्बार आसानी से वह रो कर निकाल सकता है उससे अनजाने में ही सही पर हम भीतर दबाना और मारना सिखाते हैं. और वहीं पर जब एक लड़की परिवार में रोती है तो उसे सहज भाव से लिया जाता है उस पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया जाता है। लड़कियों को यह सुविधा है कि किसी भी बात पर दुखी होने या अकेलेपन का शिकार या अनचाही परिस्थिति होने पर वह रो कर अपने मन को हल्का कर लेती हैं ।जबकि अमूमन हमारे समाज में पुरुषों के पास यह सुविधा नहीं है उनका रोना कमजोरी की निशानी माना जाता है और उस पर व्यंग किया जाता है। और इस तरह उन्हें अंदर ही अंदर घुटने पर मजबूर किया जाता है।
घर का मुखिया परिवारिक इकाई का बुनियाद पुरुष होता है जिसके कंधे पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी होती है परिवार में सब अपनी समस्याएं जरूरतें लेकर उसके पास आते हैं पर यदि वह खुद दुखी ,परेशान, अकेलेपन का शिकार है तो वह अपनी समस्याएं लेकर कहां जाए इसका उपाय समाज ने बहुत हद तक छोड़ा ही नहीं है। और नहीं तो उसके साथ अनेकों मुहावरे गढ दिए " मर्द को दर्द नहीं होता " ," लड़के रोते नहीं हैं" जरा भी कमजोर पड़ने पर उन्हे ताना दिया जाता है " यह क्या लड़कियों की तरह रो रहे हो" हम भूल जाते हैं कि महिला और पुरुष दोनों ही इंसान हैं और जिसके अंदर भावनाएं हैं वह उन्हें महसूस भी होगा और उसका प्रभाव भी उन पर पड़ेगा और प्रकृति ने सभी को आसु समान रूप से इसीलिए दिए हैं कि दुखी होने पर वह अपने मन का दुख अपने आंसुओं के जरिए निकाल सके और अपनी पीड़ा से मुक्ति पा सके।
हमें यह सोच बदलनी चाहिए कि घर का मुखिया पुरुष सुपरमैन है वह हर समय मजबूत है वह सब कुछ कर सकता है तनाव अकेलेपन और असुरक्षा की शिकार सिर्फ स्त्रियां ही नहीं होती बल्कि पुरुषों मे भी नौकरी, कैरियर गवाने का डर और असुरक्षा, तनाव अपनी जिम्मेदारी कभी-कभी ना निभा पाने पर हीन भावना का शिकार उसको भी भीतर से कमजोर तथा खोखला करता है क्योंकि ज्यादातर उसके कंधों पर ही परिवार की आर्थिक जरूरतों का भार रहता है सबके सामने खुद को सुपरमैन दिखाने के चक्कर में पुरुष पहले ही खुद को एकांकी कर लेता है और अपने को मजबूत दिखाते दिखाते कभी-कभी भीतर से इतना टूट जाता है कि वह बिखर ही जाता है जहां वह चुनाव करता है एक कठोर फैसला-- आत्महत्या का औसतन एक लाख पुरुषों में 12 पुरुष आत्महत्या करते हैं और एक लाख महिलाओं में 5 महिलाएं आत्महत्या करती हैं भारत में जितने लोग आत्महत्या करते हैं उनमें 70% पुरुष और 30% महिलाएं होती हैं।
ऐसी स्थितियां ना बने इसके लिए पुरुषों को परिवार का भावनात्मक सपोर्ट ही बचा सकता है परिवार के अन्य सदस्यों को यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं क्षमता से अधिक तो उसके कांधे पर बोझ नहीं दिया जा रहा है अगर वह तकलीफ में है तो उसे रोने दिया जाए ऐसी परिस्थितियां और वातावरण न बनाई जाए की उसको अपने आंसू छिपाने पड़े ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए कि वह खुलकर अपने भावनात्मक गुबार को निकाल सके क्योंकि उसके पास थी वही दिल और भावनाएं हैं जो स्त्रियों के पास हैं यदि कोई पुरुष रो रहा है तो उसके रोने का सम्मान करें कि वह भावनाएं रखता है और यदि वह दुखी और कमजोर है तो शुक्र मनाइए कि आप एक नरम दिल इंसान के साथ हैं।
अगर हम इस सोच को नहीं अपनाएंगे तो आत्महत्या के उपरोक्त आंकड़ों के वृद्धि को नहीं रोक सकते हैं उसे महसूस करवाइए कि उसका परिवार उसकी ताकत है उसके मुस्कान का आधार बनिए ना कि सिर्फ उसके कांधे पर जिम्मेदारियों का बोझ डाल डाल कर उसके कांधे को झुका दीजिए जिसमे वह आखरी सांस तक उस में पिसता ही रहे वह इंसान है कोई भगवान नहीं है।
रेखा शाह आरबी
बलिया (यूपी)
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