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खजुराहों के मंदिर भारतीय शिल्पकला की मिसाल, देश का पहला मंदिर जहाँ मंदिर की बाहरी दीवारों में बनी है रति क्रीणा से सुसज्जित मूर्तियाँ (Khajuraho Temple)

खजुराहों के मंदिर भारतीय शिल्पकला की मिसाल, देश का पहला मंदिर जहाँ मंदिर की बाहरी दीवारों में बनी है रति क्रीणा से सुसज्जित मूर्तियाँ (Khajuraho Temple)

 


भारत के मध्यप्रदेश में छतरपुर जिला अपने अद्भुद एवं रहस्मयी अकल्पनीय शिल्पकारी और मूर्ति कलां के लिए देश में ही नहीं वल्कि विदेशों के पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है । वैसे तो भारत शिल्पकलां के लिए हमेशा से चर्चित रहा है, यह अपने वैभव एवं सम्रद्धि के चलते बाहरी आक्रमणों का काफी बार शिकार भी हुआ है । फिर अपनी पहचान एवं विशेषता के कारण हमेशा से चर्चित है । भारत में अनेक धर्म होने के वावजूद यहाँ की धार्मिकता बड़ी वैभवशाली रही है । मंदिर आस्ता का केन्द्र माना जाता था और आज भी वहा आस्था सभी के ह्रदय में निवास करती है । हमारे मंदिर हमें आत्मा को परमात्मा को जोड़कर परमानन्द की ओर ले जाने का मार्ग सशक्त करते है । मंदिर के दर्शन करने से ही ईश्वर की अनुभूति का अहसास होता है ।

मध्य प्रदेश के छतरपुर में स्थित खजुराहो के मंदिर अपनी शिल्प कला और अकल्पनीय मूर्तिकला के लिए पूरी दुनिया में विश्व प्रसिद्ध है । यह आपने आप में रहस्यपूर्ण एवं अद्भुत शिल्पकारी का अद्भुत एवं अनूठी प्राचीन धरोहर के रूप में अपनी वास्तविकता को समेटे खड़ी है । यह भारत के बेहद प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों का समूह है इन मंदिरों की दीवारों पर बनी कामोत्तेजक मूर्तियां यहां आने वाले पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती है । हर साल इसे देखने हजारों देशी विदेशी पर्यटक आते हैं इन भव्य मूर्तियों को अपने कैमरे में कैद करते हैं और उनके बारे में जानकारी लेते हैं, और यहाँ के अदभुद शिल्पकलां, सौन्दर्य, काम ज्ञान को समेटे चले जाते है लेकिन चंदेल राजाओं द्वारा मंदिरों में बनवाए गए इन कामुक मूर्तियों का रहस्य आज भी बरकरार है । सभी के मन में बार-बार यह प्रशन उठता है कि आखिर क्या वजह रही होगी कि मंदिर जैसी पवित्र जगह पर इस तरह की मैथुनिक मूर्तियां बनाई गई है, उसका वास्तविक उद्देश्य क्या रहा होगा, क्या इस प्रकार के कार्य को सर जन समर्थन मिला होगा ? क्या इस मंदिर का निर्माण करते वक्त धर्मगुरुओं ने इसका विरोध नहीं किया? क्या खजुराहो और कामसूत्र का कोई संबंध है, इस मंदिर के माध्यम से किसी बड़े कार्य एवं परिवर्तन को ध्यान में रखा गया होगा । आखिर कौन-कौन सी मुद्राओं की मूर्तियां को यहाँ रखा गया है और इसका सम्बन्ध किस उद्देश के लिए किया गया होगा, अनेक प्रश्न अभी भी केवल प्रश्न ही है जिसका अभी तक कोई सटीक उतार नहीं मिल पाया है । लेकर कई जानकारों ने अलग-अलग तर्क दिए है इस लेख में उन सभी जानकारी को समाहित करने की कोशिश की गई है  जो खजुराहो मंदिर के रहस्यों और इतिहास से सम्बन्ध रखते है ।

खजुराहो मंदिर की मूर्तियां- खजुराहो आज एक विश्व पर्यटक स्थल है । यूनेस्को ने 1986 में खजुराहो मंदिर को वर्ल्ड हेरीटेज साइट के रूप में जोड़ दिया था । खजुराहो में  हिंदू और जैन धर्म के मंदिरों का समूह है जो कि “खजुराहो के समूह” के नाम से प्रसिद्ध है इसमें 85 मंदिर आते हैं परन्तु विदेशी एवं मुग़ल हमलावरों के विध्वंश करने के कारण इनकी संख्या कम होते हुए 25 रह गई है । खजुराहों के इस सम्रद्धि की किसी की नजर लग गयी प्रतीत होता है नहीं तो पूरे 85 मंदिर की प्रसिद्धि एवं शिल्पकारी से सम्रध खजुराहो आज का दुनिया में सबसे सम्रद्ध शिल्पकलां का केन्द्र होता । माना जाता है कि खजुराहो के मंदिरों का निर्माण में करीब 100 साल लगे, यहाँ की मूर्तियों की सुन्दरता को दवाने के लिए बाहरी आक्रमणकरिओं ने काफी चोट पहुंचाई है, बहुर सी सुन्दर मुर्तिओं को खंडित किया गया है । उसके बाद भी यह मंदिर अपनी भव्यता को अपने में समेटे अदिक खड़ा है ।

खजुराहो के मंदिरों में मैथुनिक मूर्तियां दिखाई गई हैं इन मुर्तिओं को देखने से आभास होता है कि काम क्रिया भी जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है जिससे परमसुख, परमान्द पाया जा सकता है । शिल्पकारी की मुद्राओं में उनमुगध होने वाले रति क्रियाओं को दिखाया गया है । समय के साथ-साथ इस धरोहर को संयोजने का भरषक प्रयास किया जा रहा है लेकिन रखरखाव के आभाव में यह मूर्तियां नष्ट हो रही है, वही इन मूर्तियों की चोरी की खबरें भी लगातार आ रही है । सबसे प्राचीन और भव्य मंदिरों में से एक खजुराहो के मंदिरों की दीवारों पर बनी कामुक कलाकृतियांप्राचीन भारत की अनूठी परंपराओं और अनोखी कलाओं को दिखाती है । भारतीय शिल्पकला की मिसाल माने जाने वाले खजुराहो के इस अद्भुत मंदिरों की कलाकृतियों के भाव सजीव से लगते हैं इसे देखकर ऐसा लगता है मानो यहां की मूर्तियां कुछ कह रही हो, यह अमुक मूर्तियाँ अपनी मुद्राओं से जैसे बिन बोले भी सब कुछ कह देती है । इस प्रसिद्ध मंदिर की मूर्तिकला और शिल्पकला की तारीफ करते विश्व के कई बड़े-बड़े मुर्तिकारो और कलाकारों नहीं थकते है, इसकी तारीफ जितनी की जाएँ उतनी ही कम है । इन मूर्तियों में प्रदर्शित स्त्री और पुरुष के चेहरे पर अलौकिक भाव सभी को मंत्रमुग्ध कर देते है, इन मूर्तियों के जरीए कामभाव को अध्यात्मिकता से जोड़ने की कोशिश की गई है ।


खजुराहो मंदिर का इतिहास - खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ईसवी के बीच चंदेल वंश के शासक चंद्र बर्मन ने करवाया था । मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो का इतिहास काफी पुराना है खजुराहो का नाम खजुराहो इसलिए पड़ा क्योंकि जिस समय इस मंदिर का निर्माण हुआ था उस समय यहां खजूर के पेड़ों का विशाल बगीचा हुआ करता था जिस वजह से इसका नाम खजुराहो रखा गया । पहले तो लोग इसे खजूर वाहिका के नाम से जानते थे लेकिन धीरे-धीरे इसका नाम खजूर वाहिका से खजुराहो पड़ गया जैसे-जैसे चंदेला शासन की ताकत का विस्तार हुआ उनकी साम्राज्य को बुंदेलखंड का नाम दे दिया गया । फिर उन्होंने खजुराहो के इन भव्य मंदिरों का निर्माण कार्य शुरू कियाइन मंदिरों के निर्माण में काफी लंबा वक्त लग गया था । इन मंदिरों के निर्माण से पहले चंदेला शासन की राजधानी खजुराहो ही थी लेकिन इन प्रसिद्ध मंदिरों के निर्माण के बाद चंदेला के शासकों ने अपनी राजधानी को बदलकर उत्तर प्रदेश में स्थित महुवा कर लिया । अधिकतर धर्मों ने इन नगन मूर्तियों का विरोध कर इसका तिरस्कार ही किया जिसके चलते कई सारे धर्म युद्ध भी हुए । खजुराहो के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि काम कला के आसनों में दर्शाए गए स्त्री पुरुषो के चेहरे पर एक अलौकिक और देवीय आनन्द की चमक झलकती है इस नग्न मैथुन की मूर्तियों को देखकर आपको जरा भी अश्लीलता का आभास नहीं होगा और ना ही यह आपको कहीं से भी जरा सी भी गन्दी लगेंगी । नग्न मैथुन की मूर्तियों को देखकर कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि इसमें कुछ बुरा है बल्कि इन मूर्तियों को देखकर शांति और पवित्रता महसूस होती है जो कि बड़ी हैरानी की बात है । यह मूर्तियां उन शिल्पकारो के द्वारा बनाई गई थी जिन्होंने आध्यात्मिक सम्भोग को अनुभव कियायह मंदिर और इनका मूर्ति शिल्प भारतीय स्थापत्य और कला की अनोखी धरोहर है । इस मंदिरों की इस शिल्प प्राचीनतम और भव्यता को देखते हुए इन्हें विश्व धरोहर में शामिल किया गया है । कामसूत्र में वर्णित अष्ट मैथुन का जीता जागता कलाकृत्य खजुराहो के मंदिरों पर दिखाई देता है । लगभग 25 किमी के क्षेत्र में फैले खजुराहो मंदिर का रहस्य को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया है: पूर्वीपश्चिमी और दक्षिणी। खजुराहो मंदिर की मूर्तियां की सुंदरता और अभिव्यक्ति आपको आश्चर्यचकित कर देगी।  खजुराहो में नंदी मंदिरसूर्य मंदिरपार्वती मंदिरलक्ष्मण मंदिरदेवी जगदंबा मंदिरविश्वनाथ मंदिरकंदरिया मंदिर जैसे 22 मंदिरों का समूह है । इस ऐतिहासिक खजुराहो के मंदिर में ज्यादातर मूर्तियां रेड सैंड स्टोन का इस्तेमाल करकर बनाई गई है जबकि कुछ मूर्तियों के निर्माण में ग्रेनाइट के पत्थरों का भी इस्तेमाल किया गया है ।

खजुराहो के मंदिर की स्थापना का इतिहास –

खजुराहो के कलात्मक मंदिर दुनिया को भारत का अनमोल तोहफा हैं। इनमें पत्थर की सहायता से उकेरी गई कलात्मकता उस समय की भारतीय कला का परिचय देती है। मनुष्य के हरेक मूड में उकेरी गई कलाकृतियां इतनी सजीव लगती हैं कि मानों अभी बोल पड़ेंगी। इन मंदिरों को देखने के बाद कोई भी इन्हें बनाने वाले हाथों की तारीफ किए बिना नहीं रह सकता। इन खूबसूरत मंदिरों का निर्माण चंदेल राजपूतों ने कराया था। इन मंदिरों का निर्माण 950 से 1050 ई.पू. के बीच 100 साल में हुआ। उस वक्त खजुराहो में कुल 85 मंदिर बनाए गए थेजिनमें अब सिर्फ 22 बचे हुए हैं।

खजुराहो का इतिहास लगभग एक हजार साल पुराना है। चन्देल वंश और खजुराहो के संस्थापक चन्द्रवर्मन थे। चन्द्रवर्मन मध्यकाल में बुंदेलखंड में शासन करने वाले राजपूत राजा थे। चंदेल राजाओं ने दसवीं से बारहवी शताब्दी तक मध्यभारत में शासन किया। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण 950 ईसवीं से 1050 ईसवीं के बीच इन्हीं चन्देल राजाओं द्वारा किया गया। मंदिरों के निर्माण के बाद चन्देलो ने अपनी राजधानी महोबा स्थानांतरित कर दी। लेकिन इसके बाद भी खजुराहो का महत्व बना रहा। मध्यकाल के दरबारी कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज रासो के महोबा खंड में चन्देल की उत्पत्ति का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि काशी के राजपंडित की पुत्री हेमवती अपूर्व सौंदर्य की स्वामिनी थी। एक दिन वह गर्मियों की रात में कमल-पुष्पों से भरे हुए तालाब में स्नान कर रही थी। उसकी सुंदरता देखकर भगवान चन्द्र उन पर मोहित हो गए। वे मानव रूप धारणकर धरती पर आ गए और हेमवती से प्रणय किया । जिससे हेमवती ने चन्द्र देव को अपना कोप प्रकट किया । अपनी गलती के पश्चाताप के लिए चन्द्र देव ने हेमवती को वचन दिया कि वह एक वीर पुत्र की मां बनेगी। चन्द्रदेव ने कहा कि वह अपने पुत्र को खजूरपुरा ले जाए। उन्होंने कहा कि वह एक महान राजा बनेगा। राजा बनने पर वह बाग और झीलों से घिरे हुए अनेक मंदिरों का निर्माण करवाएगा। चन्द्रदेव ने हेमवती से कहा कि राजा बनने पर तुम्हारा पुत्र एक विशाल यज्ञ का आयोजन करेगा जिससे तुम्हारे सारे पाप धुल जाएंगे। चन्द्र के निर्देशों का पालन कर हेमवती ने पुत्र को जन्म देने के लिए अपना घर छोड़ दिया और एक छोटे-से गांव में पुत्र को जन्म दिया।

हेमवती का पुत्र चन्द्रवर्मन अपने पिता के समान तेजस्वीबहादुर और शक्तिशाली था। सोलह साल की उम्र में वह बिना हथियार के शेर या बाघ को मार सकता था। पुत्र की असाधारण वीरता को देखकर हेमवती ने चन्द्रदेव की आराधना की जिन्होंने चन्द्रवर्मन को पारस पत्थर भेंट किया और उसे खजुराहो का राजा बनाया। पारस पत्थर से लोहे को सोने में बदला जा सकता था। चन्द्रवर्मन ने लगातार कई युद्धों में शानदार विजय प्राप्त की। उसने कालिंजर का विशाल किला बनवाया। मां के कहने पर चन्द्रवर्मन ने तालाबों और उद्यानों से आच्छादित खजुराहो में 85 अद्वितीय मंदिरों का निर्माण करवाया और एक यज्ञ का आयोजन किया जिसने हेमवती को पापमुक्त कर दिया। चन्द्रवर्मन और उसके उत्तराधिकारियों ने खजुराहो में अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया।

खजुराहो के प्रमुख प्रसिद्द मंदिर

प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर खजुराहो - 

खजुराहो के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक और मध्यप्रदेश के शीर्ष पर्यटन स्थलों में से एकलक्ष्मण मंदिर का निर्माण चंदेला वंश के शासक यशोवर्मन ने किया थाजिन्होंने मध्य भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र को जीत लिया था। लगभग 954 ईस्वी में पूरा हुआमंदिर नागर शैली के हिंदू मंदिर वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। यह भगवान विष्णु को समर्पित खजुराहो के तीन सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। मंदिर के चबूतरे के नीचे भाग के चारो पर में युद्ध के दृश्योंशिकारहाथियोंघोड़ोंसमारोहोंनर्तकियों और प्रेमकाव्य के साथ-साथ दैनिक जीवन के दृश्यों को दिखाया गया है , यही सभी कामुक और भावपूर्ण सुन्दर मुर्तिओं को अलग-अलग मुद्राओं में खजुराहो मंदिर की चारो और दीवारों में दिखाया गया गया हैं। इस मंदिर की बाहरी एवं आंतरिक दीवारों में सुन्दर कामुक, एवं मैथुन मुद्राओं से सुसज्जित मूर्तियाँ सब का मन मोह लेती है, इसं मुर्तिओं को देख ऐसा लगता है जैसे यह अभी बोल पड़ेगी । मंदिर के गर्भगृह में भगवान लक्षमण की आदमकद मूर्ति है । इस मूर्ति पर प्राकृतिक रूप से सूर्य प्रकास एवं रौशनी पड़ती है । साथ ही सभी मुर्तिओं पर प्रकाश पड़ता हुई ।

कंदरिया महादेव मंदिर – 

खजुराहो मंदिरों में सबसे ऊंचा और सबसे बड़ा हिंदू कंदरिया महादेव मंदिर है। 1050 ईसा पूर्व में राजा धंदादेव द्वारा निर्मितमंदिर को अविश्वसनीय खजुराहो मंदिर की मूर्तियां से सजाया गया है। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसके गर्भगृह के रूप में संगमरमर का शिव लिंग है

देवी जगदम्बा मंदिर - 

यह देवी जगदंबा मंदिर खजुराहो के सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है। इसे चंदेल शासकों में से एक ने 1000 और 1025 ई.पू. के बीच बनवाया था। मंदिर तीन बैंडों में विभाजित है: पहला ब्रह्मा की भव्य मूर्तियों को प्रदर्शित करता हैदूसरे बैंड में भगवान शिव की अद्भुत पत्थर की नक्काशी हैऔर तीसरा भगवान विष्णु को समर्पित है। इसमें ब्रह्मांड की देवी देवी पार्वती की एक भव्य और अविश्वसनीय रूप से सुंदर खजुराहो मंदिर की मूर्तियां है।

पार्श्वनाथ मंदिर - 

पार्श्वनाथ मंदिर खजुराहो मंदिर में सबसे बड़ा जैन मंदिरपार्श्वनाथ मंदिर 10 वीं शताब्दी में धनगदेव के शासन के दौरान बनाया गया था। यह पहले जैनियों के पहले तीर्थंकर (संत) आदिनाथ को समर्पित था। 1860 मेंमंदिर में पार्श्वनाथ की छवि स्थापित की गईजिसने इसे यह नाम दिया। मंदिर में समुद्री अप्सराओंहाथियोंशेरों और वैष्णव देवताओं के चित्र हैं।

चित्रगुप्त मंदिर - 

खजुराहो मंदिर की मूर्तियां के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक चित्रगुप्त मंदिर है। यह सूर्य देव या सूर्य देव को समर्पित है। कामुक पोज में कपल्स की खूबसूरत नक्काशियों को देखा जा सकता है। ग्यारह सिरों वाले भगवान विष्णु की अविश्वसनीय छवियां चित्रगुप्त की दीवारों को सुशोभित करती हैं। 11वीं सदी का यह मंदिर जगदंबी मंदिर से काफी मिलता-जुलता हैसिवाय इसके कि इसमें खूबसूरती से डिजाइन की गई खजुराहो की मूर्तियां है।

ब्रह्मा मंदिर - 

यह ब्रह्मा मंदिर एक मजबूत छोटी संरचना है जिसमें एक गर्भगृह है और कोई मंडप नहीं है। हालांकि मंदिर को ब्रह्मा मंदिर कहा जाता हैलेकिन इसमें गर्भगृह के रूप में एक शिव लिंग है। इस छोटे से मंदिर की दीवारों पर भारी पत्थर का काम नहीं है और मंदिर के बारे में कुछ खास नहीं है।

चौंसत योगिनी मंदिर

यह चौंसत योगिनी मंदिर खजुराहो में सबसे पुराना जीवित खंडहर देवी मंदिर है। मंदिर का निर्माण लगभग 885 ईस्वी पूर्व का माना जा सकता है। यह बड़ेमोटे ग्रेनाइट ब्लॉकों से बना है और इसके केंद्र में एक खुला आंगन है। खंडहर में रुचि रखने वाले लोग इस मंदिर की यात्रा कर सकते हैंलेकिन इसे आसानी से छोड़ा जा सकता है।

चतुर्भुज मंदिर- 

भगवान विष्णु को समर्पितचतुर्भुज मंदिर 1100 ईस्वी में बनाया गया था। यह प्रभावशाली खजुराहो का मंदिर जातकरी गांव से लगभग 3 किमी दूर है। इसमें एक अद्भुत प्रवेश द्वारएक गर्भगृह और एक मंडप है। इसमें भगवान विष्णु के चतुर्भुज या चार भुजाओं की 9 फीट लंबी खजुराहो मंदिर की मूर्तियां है। दीवार की कामुक नक्काशी भी इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देती है।

नंदी मंदिर- 

यह नंदी बैल (भगवान शिव का पर्वत) को समर्पितनंदी मंदिर विश्वनाथ मंदिर के परिसर में स्थित है। यह भव्य मंदिर एक खुले वर्ग की संरचना है जो बारह स्तंभों पर टिकी हुई है। इसमें संगीत बजाने वालीपत्र लिखने वालीबच्चों को दुलारने वाली और कामुक मनोदशा में महिलाओं की मूर्ति है।

वामन मंदिर - 

खजुराहो मंदिर की मूर्तियां शानदार मंदिर वास्तुकला का एक और नमूना है। खजुराहो का प्रसिद्ध मंदिर वामन को समर्पित हैजो भगवान विष्णु के अवतार थे। इसमें एक प्रवेश द्वार-पोर्चमंडप और एक हॉल है। प्रेम के खजुराहो मंदिरों की बाहरी दीवारों में कामुक मुद्राओंअप्सराओं और आकाशीय अप्सराओं की जटिल मूर्तियां हैं।

विश्वनाथ मंदिर -

दो सीढ़ियाँ विश्वनाथ मंदिर तक जाती हैं। यह देवी जगदम्बा और चित्रगुप्त मंदिरों के पूर्व में स्थित है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर शेर और हाथी का एक जोड़ा खड़ा है। बाहरी गलियारे की दीवार पर ब्रह्मा की एक सुंदर छवि है। हर दीवार पर नारी का रूप हावी है।

दुलादेव मंदिर - 

यह दुलादेव मंदिर पांच तीर्थ शैली में बनाया गया है। यह घंटाई मंदिर से 900 गज दक्षिण में स्थित है। यह खजुराहो का मंदिर अधिकांश मंदिरों की तुलना में अधिक चपटा है। इसका निर्माण बारहवीं शताब्दी के आसपास बताया जाता है। यह शायद आखिरी मंदिर है जो खजुराहो में बनाया गया था। इसकी खजुराहो मंदिर की मूर्तियां को अधिक सजाया जाने के लिए कहा जाता है।

वराह मंदिर - 

मंदिर पहला मंदिर है जिसे आप पश्चिमी समूह परिसर में प्रवेश करने पर देखेंगे। यह वराह को समर्पित हैजो एक सूअर के आकार में विष्णु का अवतार है।

मातंगेश्वर मंदिर- 

मंदिर पश्चिमी समूह की सीमा के बाहर स्थित है। आप मंदिर के अंदर सुबह और दोपहर में भगवान की पूजा कर सकते हैं। मंदिर भारी अलंकृत नहीं है। बाकी खजुराहो मंदिरों की तुलना में इसकी एक सरलकम विस्तृत मंजिल योजना है।

लालगुआन महादेवा मंदिर- 

महादेवा मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह चौसठ योगिनी मंदिर के उत्तर-पूर्व में कुछ गज की दूरी पर स्थित है। पिछली बार सुना गया था कि ढांचा बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। लालगुआन महादेवा मंदिर में असली पोर्टिको गायब है। यह ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर से निर्मित है। मंदिर की संरचना चौसठ योगिनी से बाद के मंदिरों में संक्रमण का प्रतीक है।

खजुराहो संग्राहलय - 

आदिवर्त जनजातीय और लोक कला संग्रहालय खजुराहो गांव के केंद्र से पैदल दूरी के भीतर एक अविश्वसनीय संग्रहालय है। इसमें अद्भुत पेंटिंगटेराकोटा और लकड़ी की खजुराहो की मूर्तियां हैंऔर कोई प्रवेश शुल्क नहीं है। यदि आप मध्य प्रदेश में खजुराहो का मंदिर से छुट्टी चाहते हैंतो यह वह स्थान है बहुत मनोरम हो सकती है ।

खजुराहो मंदिर के बारे में जानकारों का मानना 

  • कुछ शोधकर्ता यह मानते हैं कि प्राचीन काल के राजा महाराजा काफी उत्तेजित रहते थे और सम्भोग में अधिक लिप्त रहते थे इसी कारण से कामुक मूर्तियां बनवाई गई है ।
  • कुछ समुदाय के विश्लेषणकर्ताओं का कहना है कि खजुराहो की मूर्तियों का निर्माण प्राचीन काल में सम्भोग शिक्षा देने के लिए करवाया गया था उनमें ऐसा माना जाता था कि इन अद्भुत कलाकृतियों को देखकर लोगों को सम्भोग की सही शिक्षा मिलेगी और हर एक लोगों तक यह शिक्षा पहुंचाने के लिए ही इन्हें मंदिर में बनवाया गया ।
  • हालांकि इस मंदिर में बनी कामुक कलाकृतियों को लेकर इतिहासकारों और विद्वानों के अपने-अपने विचार है कुछ लोगों के मुताबिक यह मूर्तियां मध्यकालीन समाज की नैतिकता को दर्शाते हैं तो कुछ लोगों का मानना है कि यह कलाकृतियां कामशास्त्रो के पुराणिक रचनात्मक आसनों का प्रदर्शन करते हैं ।
  • विश्लेषक यह बताते हैं कि मोक्ष के लिए हर इंसान को चार रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है धर्मअर्थ, काम और मोक्ष । काम को ध्यान में रखते हुए इन नग्न मूर्तियों का निर्माण करवाया गया ।
  • यह मंदिर कामसूत्र की शिक्षा से पूरित है । तात्कालिक समय में प्रेम को मोक्ष तक पहुचने के लिए काम का सहारा लिया गया होगा, इसलिए इस प्रकार के मदिर का निर्माण कर सभी को काम का ज्ञान संचार करना उद्देश्य होगा ।
  • मैथुन एक प्रकृतिक क्रिया है, पशु-पक्षियों में इसकी आसकता सामान्य रूप में देखि जा सकती है । मनुष्य में भी यह एक प्रकृतिक रूप से पाया जाता है, इस क्रिया का सही एवं पूरा ज्ञान देने के लिए इस प्रकार के मंदिरों में विभिन्न कलाओं एवं कामुक मुद्राओं को प्रदर्शित किया गया है । यह एक सेक्स एजुकेशन का केन्द्र के रूप में विकशित किया गया होगा ।

ऐसे पहुँचे खजुराहों

  • ट्रेन मार्ग से - खजुराहो शहर ओरछाझांसीबांधवगढ़भोपालग्वालियर आदि से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। खजुराहो पहुँचने के लिए सबसे आसान तरीका है रेलवे, यह दिल्ली, भोपाल, झाँसी, ग्वालियर आदि स्टेशनों से ट्रेन से पहुंचा जा सकता है । खजुराहो स्टेशन पहुचने के बाद स्टेशन से 7 कि.मी. दूरी पर खजुराहो शहर है, स्टेशन से बस, ऑटो रिक्शा, या कैब के माध्यम से खजुराहो जाया जा सकता है ।

  • सड़क मार्ग से: ग्वालियरजबलपुरझांसीछतरपुरआगरा आदि जैसे पड़ोसी शहरों से खजुराहो के लिए एसी और नॉन-एसी बसें उपलब्ध हैं।
  • हवाई मार्ग से: वैसे तो खजुराहो एक छोटा शहर हैलेकिन इसका अपना हवाई अड्डा है। हवाई अड्डा मुख्य शहर से सिर्फ 8 किमी दूर है। इसमें दिल्लीइंदौरमुंबई और हैदराबाद से फ्लाइट कनेक्टिविटी है।

खजुराहो के इस रहस्यमय में खूबसूरती से पूर्ण मंत्र मुग्ध कर देने वाला दार्शनिक स्थल “खजुराहो के मंदिर” की सुन्दरता देखने के लिए हो जाईये तैयार, कर लीजिये पैक पर देखें चंदेलवंश के इस अद्भुत कलाकृति को । तो देर किस बात की खजुराहो की छुट्टी की योजना बनाएं और सुंदर वास्तुकला और इतिहास की भूमि का पता लगाने के लिए तुरंत निकल जाएं । खजुराहो को समझने के लिए सामान्य दर में गाइड उपलब्ध है । यदि आप गाइड लेंगे तो आपको इसके बारे में बारीकियों से समझने एवं सीखने के लिए मिलेगा । आप जान पाएंगे इस सुन्दर एवं मनमुग्ध कर देने वाली मुर्तिओं के बारे में ।  

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