कभी हल न होने वाली पहेली, जिसे भगवान बुद्ध ने हल कर दिया।
Saturday, 17 November 2018
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कभी हल न होने वाली पहेली, जिसे भगवान बुद्ध ने हल कर दिया।
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एक बार तथागत बुद्ध से एक ब्राह्मण ने पूछा
"आप सब लोगो को ये बताते है कि आत्मा
नहीं, स्वर्ग नहीं, पुनर्जन्म नहीं। क्या यह सत्य है???"
बुद्ध- "आपको ये किसने बताया के मैंने ऐसा कहा?"
ब्राह्मण -"नहीं ऐसा किसी ने बताया नहीं।"
बुद्ध - "फिर मैंने ऐसे कहा ये बताने वाले व्यक्ति
को आप जानते हो??
ब्राह्मण - "नहीं।"
बुद्ध- "मुझे ऐसा कहते हुए आपने कभी सुना है?"
ब्राह्मण - "नहीं तथागत, पर लोगो की चर्चा सुनके ऐसा लगा। अगर ऐसा नहीं है तो आप क्या कहते है?"
बुद्ध- "मैं कहता हूँ कि मनुष्य को वास्तविक सत्य स्वीकारना चाहिए।"
ब्राह्मण - "मैं समझा नहीं तथागत, कृपया सरलता में बताइये।"
बुद्ध- "मनुष्य की पांच बाह्य ज्ञानेंद्रिय है। जिसकी मदद से वह सत्य को समाझ सकता है।"
1आँखे- मनुष्य आँखों से देखता है।
2कान- मनुष्य कानो से सुनता है।
3नाक- मनुष्य नाक से श्वास लेताहै।
4जिह्वा- मनुष्य जिह्वा से स्वाद लेता है।
5त्वचा- मनुष्य त्वचा से स्पर्श महसूस करता है।
इन पांच ज्ञानेन्द्रियों में से दो या तीन ज्ञानेन्द्रियों की मदद से मनुष्य सत्य जान सकता है।
ब्राह्मण- "कैसे तथागत?"
बुद्ध- "आँखों से पानी देख सकते है, पर वह ठण्डा है या गर्म है ये जानने के लिए त्वचा की मदत लेनी पड़ती है, वह मीठा है या नमकीन ये जानने के लिए जिह्वा की मदद लेनी पड़ती है।
ब्राह्मण- "फिर भगवान है या नहीं इस सत्य को कैसे जानेंगे तथागत?"
बुद्ध- "आप वायु को देख सकते है?"
ब्राह्मण - "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "इसका मतलब वायु नहीं है ऐसा होता है क्या?"
ब्राह्मण - "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "वायु दिखती नहीं फिर भी हम उसका अस्तित्व नकार नहीं सकते, क्यू की हम वायु को ही हम साँस के द्वारा अंदर लेते है और बाहर निकलते है। जब वायु का ज़ोक़ा आता है तब पेड़-पत्ते हिलते है, ये हम देखते है और महसूस करते है।अब आप बताओ भगवान हमें पांच ज्ञानेन्द्रियों से महसूस होता है?
ब्राह्मण- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "आपके माता पिता ने देखा है, ऐसे उन्होंने आपको बताया है?"
ब्राह्मण- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "फिर परिवार के किसी पुर्वज ने देखा है, ऐसा आपने सुना है?"
ब्राह्मण- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "मैं यही कहता हूँ कि जिसे आजतक किसी ने देखा नहीं, जिसे हमारी ज्ञानेन्द्रियों से जान नहीं सकते, वह सत्य नहीं है इसलिए उसके बारे में सोचना व्यर्थ है।"
ब्राह्मण- "वह ठीक है तथागत, पर हम जिन्दा है,इसका मतलब हमारे अंदर आत्मा है, ये आप मानते है या नहीं?"
बुद्ध- "मुझे बताइये, मनुष्य मरता है, मतलब क्या होता है?"
ब्राह्मण- "आत्मा शारीर के बाहर निकल जाती है, तब मनुष्य मर जाता है।"
बुद्ध- "मतलब आत्मा नहीं मरती है?"
ब्राह्मण- "नहीं तथागत, आत्मा अमर है।"
बुद्ध- "आप कहते है आत्मा कभी मरती नहीं, आत्मा अमर है। तो ये बताइये आत्मा शारीर छोड़ती है या शारीर आत्मा को??"
ब्राह्मण- "आत्मा शरीर को छोड़ती है तथागत।"
बुद्ध- "आत्मा शरीर क्यू छोड़ती है?"
ब्राह्मण- "जीवन ख़त्म होने के बाद छोड़ती है।"
बुद्ध-
"अगर ऐसा है तो मनुष्य कभी मरना नहीं चाहिए। दुर्घटना, बीमारी, घाव लगने के बाद भी बिना उपचार के जीना चाहिए। बिना आत्मा की मर्ज़ी के मनुष्य नहीं मर सकता।"
ब्राह्मण- "आप सही कह रहे है तथागत। पर मनुष्य में प्राण है, उसे आप क्या कहेंगे?"
बुद्ध- "आप दीपक जलाते है?"
ब्राह्मण- "हा तथागत।"
बुद्ध- "दीपक याने एक छोटा दिया, उसमे तेल, तेल में बाती और उसे जलाने के लिए अग्नि चाहिए,
बराबर?"
ब्राह्मण - "हा तथागत।"
बुद्ध- "फिर मुझे बताइये बाती कब बुझती है?"
ब्राह्मण- "तेल ख़त्म होने के बाद दीपक बुज़ता है तथागत।"
बुद्ध- "और?"
ब्राह्मण- "तेल है पर बाती ख़त्म हो जाती है तब दीपक बुज़ता है तथागत।"
बुद्ध- "इसके साथ तेज वायु के प्रवाह से, बाती पर पानी डालने से, या दिया टूट जाने पर भी दीपक बुझ सकता है।
अब मनुष्य शरीर भी एक दीपक समझ लेते है, और प्राण मतलब अग्नि यानि ऊर्जा। सजीवों का देह चार तत्वों से बना है।
1 पृथ्वी- घनरूप पदार्थ यानि मिट्टी
2आप - द्रवरूप पदार्थ यानि पानी, स्निग्ध और तेल
3 वायु- अनेक प्रकार की हवा का मिश्रण
4 तेज- ऊर्जा, ताप, उष्णता
इसमें से एक पदार्थ अलग कर देंगे ऊर्जा और
ताप का निर्माण होना रुक जायेगा,
मनुष्य निष्क्रिय हो जायेगा। इसे ही मनुष्य की मृत्यु कहा जाता है।
इसलिये आत्मा भी भगवान की तरह अस्तित्वहीन है।
यह सब चर्चा व्यर्थ है। इससे धम्म का समय व्यर्थ हो जाता है।"
ब्राह्मण- "जी तथागत, फिर धम्म क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?"
बुद्ध- "धम्म का मतलब अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला मार्ग है। धम्म मनुष्यो का उद्देश्य मनुष्य के जन्म के बाद मृत्यु तक कैसे जीवन जीना है इसका मार्गदर्शन करना है। कौन से कार्य करने से क्या परिणाम होंगे, और मानव जीवन किस तरह से सुखमय और दुःखमुक्त हो सकता है
इसका मार्गदर्शन धम्म मनुष्य करते है।"
ब्राह्मण- "धन्यवाद् तथागत।"
बुद्ध- "भवतु सब्ब मंगलम्"
🌷🌷जय भीम नमो बुद्धाय 🌷🌷
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एक बार तथागत बुद्ध से एक ब्राह्मण ने पूछा
"आप सब लोगो को ये बताते है कि आत्मा
नहीं, स्वर्ग नहीं, पुनर्जन्म नहीं। क्या यह सत्य है???"
बुद्ध- "आपको ये किसने बताया के मैंने ऐसा कहा?"
ब्राह्मण -"नहीं ऐसा किसी ने बताया नहीं।"
बुद्ध - "फिर मैंने ऐसे कहा ये बताने वाले व्यक्ति
को आप जानते हो??
ब्राह्मण - "नहीं।"
बुद्ध- "मुझे ऐसा कहते हुए आपने कभी सुना है?"
ब्राह्मण - "नहीं तथागत, पर लोगो की चर्चा सुनके ऐसा लगा। अगर ऐसा नहीं है तो आप क्या कहते है?"
बुद्ध- "मैं कहता हूँ कि मनुष्य को वास्तविक सत्य स्वीकारना चाहिए।"
ब्राह्मण - "मैं समझा नहीं तथागत, कृपया सरलता में बताइये।"
बुद्ध- "मनुष्य की पांच बाह्य ज्ञानेंद्रिय है। जिसकी मदद से वह सत्य को समाझ सकता है।"
1आँखे- मनुष्य आँखों से देखता है।
2कान- मनुष्य कानो से सुनता है।
3नाक- मनुष्य नाक से श्वास लेताहै।
4जिह्वा- मनुष्य जिह्वा से स्वाद लेता है।
5त्वचा- मनुष्य त्वचा से स्पर्श महसूस करता है।
इन पांच ज्ञानेन्द्रियों में से दो या तीन ज्ञानेन्द्रियों की मदद से मनुष्य सत्य जान सकता है।
ब्राह्मण- "कैसे तथागत?"
बुद्ध- "आँखों से पानी देख सकते है, पर वह ठण्डा है या गर्म है ये जानने के लिए त्वचा की मदत लेनी पड़ती है, वह मीठा है या नमकीन ये जानने के लिए जिह्वा की मदद लेनी पड़ती है।
ब्राह्मण- "फिर भगवान है या नहीं इस सत्य को कैसे जानेंगे तथागत?"
बुद्ध- "आप वायु को देख सकते है?"
ब्राह्मण - "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "इसका मतलब वायु नहीं है ऐसा होता है क्या?"
ब्राह्मण - "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "वायु दिखती नहीं फिर भी हम उसका अस्तित्व नकार नहीं सकते, क्यू की हम वायु को ही हम साँस के द्वारा अंदर लेते है और बाहर निकलते है। जब वायु का ज़ोक़ा आता है तब पेड़-पत्ते हिलते है, ये हम देखते है और महसूस करते है।अब आप बताओ भगवान हमें पांच ज्ञानेन्द्रियों से महसूस होता है?
ब्राह्मण- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "आपके माता पिता ने देखा है, ऐसे उन्होंने आपको बताया है?"
ब्राह्मण- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "फिर परिवार के किसी पुर्वज ने देखा है, ऐसा आपने सुना है?"
ब्राह्मण- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "मैं यही कहता हूँ कि जिसे आजतक किसी ने देखा नहीं, जिसे हमारी ज्ञानेन्द्रियों से जान नहीं सकते, वह सत्य नहीं है इसलिए उसके बारे में सोचना व्यर्थ है।"
ब्राह्मण- "वह ठीक है तथागत, पर हम जिन्दा है,इसका मतलब हमारे अंदर आत्मा है, ये आप मानते है या नहीं?"
बुद्ध- "मुझे बताइये, मनुष्य मरता है, मतलब क्या होता है?"
ब्राह्मण- "आत्मा शारीर के बाहर निकल जाती है, तब मनुष्य मर जाता है।"
बुद्ध- "मतलब आत्मा नहीं मरती है?"
ब्राह्मण- "नहीं तथागत, आत्मा अमर है।"
बुद्ध- "आप कहते है आत्मा कभी मरती नहीं, आत्मा अमर है। तो ये बताइये आत्मा शारीर छोड़ती है या शारीर आत्मा को??"
ब्राह्मण- "आत्मा शरीर को छोड़ती है तथागत।"
बुद्ध- "आत्मा शरीर क्यू छोड़ती है?"
ब्राह्मण- "जीवन ख़त्म होने के बाद छोड़ती है।"
बुद्ध-
"अगर ऐसा है तो मनुष्य कभी मरना नहीं चाहिए। दुर्घटना, बीमारी, घाव लगने के बाद भी बिना उपचार के जीना चाहिए। बिना आत्मा की मर्ज़ी के मनुष्य नहीं मर सकता।"
ब्राह्मण- "आप सही कह रहे है तथागत। पर मनुष्य में प्राण है, उसे आप क्या कहेंगे?"
बुद्ध- "आप दीपक जलाते है?"
ब्राह्मण- "हा तथागत।"
बुद्ध- "दीपक याने एक छोटा दिया, उसमे तेल, तेल में बाती और उसे जलाने के लिए अग्नि चाहिए,
बराबर?"
ब्राह्मण - "हा तथागत।"
बुद्ध- "फिर मुझे बताइये बाती कब बुझती है?"
ब्राह्मण- "तेल ख़त्म होने के बाद दीपक बुज़ता है तथागत।"
बुद्ध- "और?"
ब्राह्मण- "तेल है पर बाती ख़त्म हो जाती है तब दीपक बुज़ता है तथागत।"
बुद्ध- "इसके साथ तेज वायु के प्रवाह से, बाती पर पानी डालने से, या दिया टूट जाने पर भी दीपक बुझ सकता है।
अब मनुष्य शरीर भी एक दीपक समझ लेते है, और प्राण मतलब अग्नि यानि ऊर्जा। सजीवों का देह चार तत्वों से बना है।
1 पृथ्वी- घनरूप पदार्थ यानि मिट्टी
2आप - द्रवरूप पदार्थ यानि पानी, स्निग्ध और तेल
3 वायु- अनेक प्रकार की हवा का मिश्रण
4 तेज- ऊर्जा, ताप, उष्णता
इसमें से एक पदार्थ अलग कर देंगे ऊर्जा और
ताप का निर्माण होना रुक जायेगा,
मनुष्य निष्क्रिय हो जायेगा। इसे ही मनुष्य की मृत्यु कहा जाता है।
इसलिये आत्मा भी भगवान की तरह अस्तित्वहीन है।
यह सब चर्चा व्यर्थ है। इससे धम्म का समय व्यर्थ हो जाता है।"
ब्राह्मण- "जी तथागत, फिर धम्म क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?"
बुद्ध- "धम्म का मतलब अँधेरे से प्रकाश की और ले जाने वाला मार्ग है। धम्म मनुष्यो का उद्देश्य मनुष्य के जन्म के बाद मृत्यु तक कैसे जीवन जीना है इसका मार्गदर्शन करना है। कौन से कार्य करने से क्या परिणाम होंगे, और मानव जीवन किस तरह से सुखमय और दुःखमुक्त हो सकता है
इसका मार्गदर्शन धम्म मनुष्य करते है।"
ब्राह्मण- "धन्यवाद् तथागत।"
बुद्ध- "भवतु सब्ब मंगलम्"
🌷🌷जय भीम नमो बुद्धाय 🌷🌷
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