बच्चों के लिए खेल भी जरुरी है, खेल से होता है बच्चों का शारीरिक एवं बौद्धिक विकास/ Sport
आलेख - बच्चों के लिए खेल भी जरुरी है, खेल से होता है बच्चों का शारीरिक एवं बौद्धिक विकास
खेलने को सार्वभौमिक रूप से बच्चे के सीखने के तरीके के रूप में माना जाता है। वे खेलना पसंद करते हैं और तबखुश हो जाते हैं जब उन्हें खेलने के माध्यम से अन्वेषण करने और प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी जाती है। बच्चों के समग्र सर्वांगीण विकास यानि की शारीरिक, सामाजिक- भावनात्मक, भाषायी, संज्ञानात्मक और रचनात्मक/ सौंदर्य बोध के लिए यह एक महत्वपणू माध्यम है। अत: पूर्व-प्राथमिक पाठ्यचर्या खेल को एक माध्यम के रूप में महत्व देता है जो बच्चों को ज्ञान के निर्माण के लिए परिवेश / लर्निंग एंवायरमेंट और एक-दूसरे के साथ बातचीत करने के अवसर प्रदान करता है। खेल , मुक्त रूप से खेले जाने वाले खेल या संरचनात्मक खेल हो सकते हैं। मुक्त खेल बच्चो द्वारा स्वयं ही शुरू किया जाता हैं और उसमे व्यसकों की निगरानी व हस्तक्षेप बहुत ही कम होता हैं, जबकि निर्देशित खेल, शिक्षक द्वारा विशेष सीखने के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए कराए जाते हैं। मुक्त रूप से खेलना बच्चों द्वारा शुरू किया गया है और शिक्षकों को जेंडर आधारित रूढ़िवादी कथनों से भी बचना चाहिए, जैसे कि लड़के रोते नहीं हैं। गुड़िया के साथ नहीं खेलते हैं, आदि। बच्चों (विशेष आवश्यकता वाले बच्चों सहित) को अपनी रुचि के क्षेत्रों को चुनने के अवसर दिया जाने चाहिए। सभी रुचि के क्षेत्रों/ लर्निंग सेंटर्स के लिए खेल गतिविधियों की योजना बनाई जानी चाहिए और सभी बच्चों को खेल की गतिविधियों में संलग्न होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
खेल से बढ़ता है परस्पर संवाद कौशल - वयस्क, बच्चों के साथी, बड़े बच्चे और भाई-बहन सीखने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और वे इस प्रकिया का अभिन्न अंग होते हैं। परस्पर संवाद तीन प्रकार के होते हैं: साथियों के साथ, बड़ों के साथ और भिन्न-भिन्न प्रकार की सामग्री/वस्तुओं के साथ ।
साथियों के साथ परस्पर संवाद के अवशर मिलता है खेल से - सीखने के लिए खेल में अन्य बच्चों के साथ जुड़ाव एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। इसमें बच्चे निरीक्षण करते हैं और नकल करते हैं और जो वे देखते हैं उसी के अनुसार सीखते समझते हैं।
भिन्न-भिन्न प्रकार की सामग्री/वस्तुओ के साथ परस्पर संवाद का कौशल - बच्चे मुक्त या निर्देशित खेल के दौरान कई तरह की सामग्री को देखते हैं। यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सामग्री बच्चो की आयु और विकासात्मक स्तरों के अनुरूप हो। इस तरह यह बच्चों को दूसरे बच्चो के साथ खेलने और परस्पर संवाद करने, समस्या हल करने और नवाचार करने के अवसर प्रदान करती है। बड़ों के साथ परस्पर संवादः सामग्री और बातचीत के माध्यम से, शिक्षक और माता-पिता बच्चों के पहले से सीखे गए कौशल के विषय में अनेक जानकारियाँ प्राप्त करते हैं। वयस्क बच्चों का मार्गदर्शन तो करते ही हैं साथ ही परिवेश को कुछ इस तरह से सृजित करते हैं की वह और अधिगम की प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित पोरोत्शहित कर पाए। शिक्षक साभिप्राय योजनाबद्ध और विकाश अनुरूप पाठ्यचर्या के क्रियान्वयन द्वारा सीखने के विस्तार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
परिवेश बच्चे अपने परिवेश के साथ निरंतर परस्पर संवाद करते रहते हैं। वे जो कुछ भी देखते हैं उसे छूना चाहते हैं। इसी प्रक्रिया के माध्यम से वे सीखते हैं। विभिन्न प्रकार की गतिविधियों और सामग्री के माध्यम से बच्चे वस्तुओं में जोड़-तोड़ मेनुपुलेशन करके, प्रश्न पूछकर, पूर्वानुमान लगाकर भौतिक, सामाजिक और प्राकृतिक वातावरण के बारे में जागरूक होते हैं। बच्चों के लिए सीखने का माहौल बहेद ही सुखद होना चाहिए। इस माहौल में वे स्वयं को सुरक्षित समझे यह बात महत्वपूर्ण हैं। इसके साथ ही उन्हें स्वतंत्र रूप से सीखने और नई चीज़ों को खोजने के अवसर देने चाहिए। सभी बच्चे और विशेष रूप से विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सराहना करनी चाहिए जिससे उनका आत्मविश्वास विकसित होता है और सभी बच्चो की सकारात्मक छवि बनती बनती है।
सामाजिक कार्यकर्त्ता, छिन्दवाड़ा मध्यप्रदेश
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