
दोनों हाथों से मजबूर
Monday, 7 August 2017
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एक फ़क़ीर था ,उसके दोनों बाज़ू नहीं थे। उस बाग़ में मच्छर भी बहुत होते थे। मैंने कई बार देखा उस फ़क़ीर को। आवाज़ देकर , माथा झुकाकर वह पैसा माँगता था। एक बार मैंने उस फ़क़ीर से पूछा – ” पैसे तो माँग लेते हो , रोटी कैसे खाते हो ? ”
उसने बताया – ” जब शाम उतर आती है तो उस नानबाई को पुकारता हूँ , ‘ ओ जुम्मा ! आके पैसे ले जा , रोटियाँ दे जा। ‘ वह भीख के पैसे उठा ले जाता है , रोटियाँ दे जाता है। ”
मैंने पूछा – ” खाते कैसे हो बिना हाथों के ? ”
सुनकर मेरा दिल भर आया। मैंने पूछ लिया – ” पानी कैसे पीते हो ? ”
मैंने कहा – ” यहाँ मच्छर बहुत हैं। यदि मच्छर लड़ जाए तो क्या करते हो ? ”
वह बोला – ” तब शरीर को ज़मीन पर रगड़ता हूँ। पानी से निकली मछली की तरह लोटता और तड़पता हूँ। ”
हाय ! केवल दो हाथ न होने से कितनी दुर्गति होती है !
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