मेहरा/महार, अछूत कैसे बने?
मेहरा/महार, अछूत कैसे बने?
बौद्धो का ब्राम्हणीकरण होने पर मराठा,महार जाति मे विभाजन हुआ। शास्त्रानुसार पशुओ की बलि से प्राप्त मास एवं स्वयं शिकार कर मास खाने वाले अथवा क्रय कर मास सेवन करने वाले लोग ऊंचे माने जाने लगे, किन्तु बौद्धो के अहिंसा के सिद्धांत का अनुकरण करने वाले महार प्राकृतिक रूप से मरे पशुओ का मास सेवन करने लगे। शराब पीना ब्राम्हण धर्म के अनुसार शूद्रो को प्रतिबंधित था किन्तु जंगल पहाड मे लुक-छिपकर पीने लगे शाकाहार के साथ मृत पशु पक्षिओ और नशा पान करने से वे शूद्र वर्ग के हो गए।
1. सीमा सुरक्षा के दाईत्व ,चोर लुटेरो से मुठभेड से वे गरीब हुए। सीमांत पर निवास होना मजबूरी थी। पदानुसार नगर,कस्बा, गांव बस्ती का सुरक्षा भार वहन करने से वे अन्त्यज कहलाए।
2. आर्थिक तंगी व अशिक्षा परिवार पोषण के लिए अवरोधक बनी। वे अन्योन्य निम्नतर काम करने के लिए मजबूर हुए।
3. महारो की उपजातियो ने राजस्व वसूली, लगान निर्धारण, भूमि सीमांकन,गांव वतनकार्य, के साथ साथ कपडा बुनना, बेचना और कृषि का कार्य, पशुपालन आदि को अपनाया।
4. मूल रूप से बौद्ध धर्म को मानने वाले शील सदाचरण संपन्न शाकाहारी मराठा ब्राम्हण समूह से छिटक जाने वाले नुन्हारिया मेहरा सहित अन्य महाराष्ट्रीयन बौद्धो के गोत्र मराठा कुल से मिलते है।
।।गोत्रो की समानता। ।
नुन्हारिया गोत्र-----मराठा गोत्र
1,,आठनेरिया/आठनेरे-- आठने, आठले, आठवले।
2:अंबालकर---अंबाडकर
3:उबनरे----- उबरकार
4:कापसे----- कापसे
5:कोलारे- कोलारे
6:खातरकर---खेदेकर/खेतेकर/खादिलकर
खतारे-------' खादरे
7: गुजरे-====गुजरे
8:गुलबाके--- गुलाब
9:घोघरकर---- घोघरे
10:चेचकर----चिजकर
11:चंदेलकर----- चंदेले
12:जावलकर--- जवलकर
जाउरकर----- जाउरकर
13:जौन्जारे---- जवजाल
14:झोड/झाडे --- झाडे/झोडे
15:टाटीसार----टांकेसार
16:डोगरे------डोगरे
17:दवन्डे------ दवन्डे
18:नागले----- नागले
19:निरापुरे---- पुरे
20:परसनकर--- परसकर
22: पाटिल-'---- पाटिल
पटेले-------' पटेले
22:पंडोले----- पंडोले
23:बोटरे----- बोठरे
24:बामने ----बामने
वामनकर ----- वामनकर
25:बाघमारे---- बाघमारे
26:बरबडे---' बरबटे
27: बर्डे------बरडे
28:भुमरकर---- भूवर/भुम्बर
भम्मरकर------भाम्बोरकर
भवरकर------ भवर
भालेकर------भालेकर
29: मालवीय -----मालवीय
मालवे-----मालव/मालपे
30:माने/मानकर--- माने/मानकर
31: मान्डवे----- मान्डवे
32: राजुरकर ---- राजुरकर
33:लोखण्डे----- लोखण्डे
34:वाईकर------वाईकर
35:सरनकार----सरडकार
36:सातनकार---सातारकर/सातने/सातव
37:सोनारे----- सोनारे
38:सूर्यवंशी---- सूर्यवंशी
39:शिवारे/शिवनकर----- शिवनकर,
40: हुरमाडे-----हुरमाने
आदरणीय भाईयो उपरोक्त सूची मे छिन्दवाडा - बैतूल मे पाये जाने वाले ,लोणारे/नुन्हारिया बौद्ध अतुलकर,चौकीकर, चौरासे गोत्र प्रकाश मे नही आये है,।
भौगोलिक परिस्थिति , सामान्य दूरी तथा भाषाई परिवेश से गोत्रो मे अल्पशाब्दिक विविधता मिलती है किन्तु अधिकांश गोत्र सर्वमान्य 96 कुडी मराठा सुची मे सूचीबद्ध है। इसी प्रकार समस्त महाराष्ट्रीयन बौद्धो के गोत्र भी मराठा गोत्रो से मिलते है।
उक्त प्रमाण से स्पष्ट है कि पूर्व काल से समस्त महार/मेहरा सातवाहन बौद्ध ब्राम्हण से विषमतावादी धर्म मे परिवर्तित हुए । अंधविश्वासी जातिवाद विषमतामूलक सामन्ती शासन मे जातिवाद के शिकार हुए। आजद होने पर शिक्षित बन भारतरत्न डॉक्टर बाबासाहब अंबेडकर के सपनो को साकार करते हुए ,अंधविश्वास और जातिवाद के उन्मूलन मे जुट जाये। शील सदाचरण का कढाई से पालन करते हुए, हमारे समतामूलक मूल मातृधम्म को सहर्ष स्वीकार करे।
त्रूटी की संभावना को नकारा नही जा सकता है। बुद्धिमान पाठक त्रुटी का अन्वेषण कर सुधारने का प्रयास करते हुए, संशोधन कर मानव समाज को देने मे सहयोग करे।
नमो बुद्धाय जय भीम , जय भारत। ।
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