*ब्राह्मण गर्व से अपनी जाति की पहचान कराता है लेकिन शोषित समाज का व्यक्ति शर्म से अपनी जातीय पहचान छुपाता है ऐसा क्यों ?*
Sunday 2 September 2018
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ब्राह्मण समाज के व्यक्तियों की विशेषता होती है कि वे जहाँ पर भी रहते हैं अपनी जातीय पहचान बताने का प्रयास करते हैं जिसके तहत अपने सर पर चोटी, माथे पर तिलक एवं गले में जनेऊ दिखाकर यह साबित करने का प्रयास करते हैं कि मैं ब्राह्मण हूँ।
किसी कारणवश ये तीनों ही पहचान नहीं दिखा पाते हैं तो नाम के साथ शर्मा, दूबे,द्विवेदी,त्रिवेदी,त्रिपाठी, तिवारी,चौबे,चतुर्वेदी, पांडे,भारद्वाज एवं मिश्रा में से कोई भी एक टाईटल उनके नाम के साथ जरूर मिलता है और ये लोग कदम कदम पर अपनी जाति का एहसास कराने का प्रयास करते रहते हैं और शोषित समाज के लोग इनको खूब मान सम्मान भी देते हैं व शर्मा को शर्मा जी, मिश्रा को मिश्रा जी तीसरे को कोई और जी कहकर संबोधित करते हैं।
यहां तक देखा जाता है कि किसी कार्यालय का बॉस SC समाज का व्यक्ति है और उस बॉस का चपरासी ब्राह्मण समाज का कोई शर्मा है तो बॉस भी अपने चपरासी को शर्मा जी कहकर संबोधित करता है जबकि वह चपरासी साहब के चेम्बर से बाहर आते ही अन्य लोगों के सामने अपने बॉस को आरक्षण वाला बताकर स्वयं से छोटा साबित करने का प्रयास करता है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि एक मामूली सा चपरासी भी यह साबित करने में लगा रहता है कि मैं ब्राह्मण जाति से हूँ लेकिन दूसरी तरफ SC समाज के कुछ बड़े अधिकारी भी इस प्रयास में रहते हैं कि मेरे स्टाफ को मेरी जाति का पता नहीं चल पाये तथा मेरे स्टाफ के लोग मुझे ऊंची जाति का ही समझते रहें।
इस जाति छुपाने के चक्कर में SC समाज के बहुत से अधिकारी और कर्मचारी जय भीम का जवाब जय भीम से देने से भी बचते हुये देखे जाते हैं।
लेकिन इस सोच के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को मालूम होना चाहिए कि आपके कार्यालय में ड्यूटी जॉइन करने से एक दिन पहले ही आपकी जाति की खबर स्टाफ तक पहुंच चुकी होती है लेकिन आपके स्टाफ के लोग बड़े चतुर चालाक और स्वार्थी किस्म के होते हैं इसलिए वे आपके सामने ऐसा नाटक करेंगे जैसे इनको आपकी जाति के बारे में कुछ भी पता नहीं हो लेकिन आपके कार्यालय के दरवाजे से बाहर आपकी जाति की ही चर्चा चलती रहती है।
बाबा साहेब अंबेडकर ने कभी भी जाति की बात नहीं की एवं न कभी जाति के नाम पर कोई संगठन बनाया बल्कि उन्होंने पूरे शोषित समाज की बात की जिन्हें अनुसूचित जाति, जन जाति, अन्य पिछड़ी जाति एवं अल्पसंख्यक का दर्जा देकर इन सबके लिए काम किया था।
ब्राह्मण अपनी जाति का एहसास कराता है साथ ही अपनी जाति पर गर्व भी करता है क्योंकि जातियां ब्राह्मणों की बनाई हुई हैं और स्वभाविक सी बात है कि अपने द्वारा बनाई हुई चीज पर हर किसी को गर्व करता है लेकिन शोषित समाज का कोई भी व्यक्ति अपनी जाति को शर्म संकोच से ही बताते हैं कारण की हमारा शोषित समाज दूसरे की चीज को अपनी बताने का आदी नहीं है इसलिए ब्राह्मणों की बनाई हुई जाति को अपनी जाति कहना बड़े शर्म की बात है इसीलिए शोषित समाज के लोग जाति बताते समय शर्म महसूस करते हैं।
हिंदू धर्म ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ मानता है इसलिए उसे जाति के आधार पर सम्मान मिलता है लेकिन वही हिंदू धर्म SC समाज के व्यक्ति को अछूत बनाता है और पशुओं से भी बदत्तर जीवन जीने का आदेश सुनाता है आपकी जाति के साथ अपमान जुड़ा हुआ है और कोई भी व्यक्ति अपमान नहीं चाहता है इसलिए स्टाफ से अपनी जाति की बात छुपाते हैं और इस चक्कर में जय भीम बोलने में भी कतराते हैं।
बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था कि जब तक आप हिंदू धर्म का हिस्सा बने रहोगे, तुम्हारा स्थान सबसे नीचे रहेगा बल्कि हजारों वर्षों बाद भी हिंदू धर्म में आपको समान दर्जा हासिल होना असंभव है।
उनका मानना था कि हिंदू धर्म में समानता कभी भी नहीं आ सकेगी, क्योंकि हिंदू धर्म असमानता की बुनियाद पर ही टिका हुआ है, जिस दिन हिंदू धर्म में समानता आ जायेगी उसी दिन हिंदू धर्म समाप्त हो जायेगा एवं ब्राह्मण अपने धर्म को कभी भी समाप्त नहीं होने देगा इसलिए महामहिम राष्ट्रपति रामकोविंद जी हो या पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम जी या फिर SC समाज का कोई भी नेता या वरिष्ठ अधिकारी क्यों न हो उनके साथ जातीय भेदभाव होता रहा है और जब तक हिंदू धर्म में बने रहेंगे होता रहेगा।
बाबा साहेब अंबेडकर ने १४ अक्तूबर १९५६ को अपने दस लाख अनुयायियों के साथ जाति रूपी बीमारी से छुटकारा पा लिया था और ज्यों ज्यों लोग बाबा साहेब अंबेडकर की विचारधारा को समझ रहे हैं त्यों त्यों बाबा साहेब के मिशन की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
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बी एल बौद्ध
[9/2, 1:23 AM] +91 97842 15354: फेसबुक पर लिखने के कारण एक आदिवासी असिस्टेंट प्रोफेसर को देशद्रोही घोषित किया गया !
( राजकीय पीजी कॉलेज आबूरोड में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ आशुतोष मीना को सिरोही जिला कलेक्टर ने चार्जशीट दी, जिसमें कहा गया है कि उनकी फेसबुक टिप्पणियां समाज विरोधी, धर्म विरोधी ,सरकार विरोधी और राष्ट्र विरोधी है )
समाजविरोधी, धर्मविरोधी ,राष्ट्रविरोधी आदिवासी !
राजकीय पीजी महाविद्यालय आबूरोड़ में पदस्थापित असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ आशुतोष मीना को ज़िला कलेक्टर सिरोही ने फेसबुक पर लिखने के कारण राष्ट्रविरोधी मानते हुये चार्जशीट दी है तथा साथ ही आयुक्त, कॉलेज शिक्षा को भी बिना जाँच किए सख़्त कार्यवाही की अनुशंसा भी की है ।
देशद्रोही का आरोप लगाना अब इस देश मे इतना आसान हो चुका है कि बिना किसी मापदंड और प्रक्रिया के ,बिना जाँच के ही एक लोकसेवक को ,वो भी एक असिस्टेंट प्रोफ़ेसर को तुरंत राष्ट्रविरोधी के तमग़े से नवाज़ दिया गया है ।
जिला कलेक्टर सिरोही ने 12 फरवरी 2018 के अपने आदेश में लिखा है कि - "आशुतोष मीणा ने फेसबुक पर 10 से 20 सितंबर 2017 के मध्य राष्ट्र विरोधी एवं सरकार के विरुद्ध अनर्गल टिप्पणियां की है जो समाज विरोधी एवं धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली है ।"
हालांकि डॉ मीना का कहना है कि -" मेरी उपरोक्त दिनांकों की फेसबुक पर की गई पोस्ट को आज भी देखा जा सकता है ,मेरे द्वारा कोई भी राष्ट्र विरोधी, समाज विरोधी व धार्मिक भावना भड़काने वाली पोस्ट नहीं की गई है ,मैं संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करने वाला जिम्मेदार नागरिक हूँ, मेरी हर पोस्ट का अंत 'जय संविधान' से किया गया है ।"
डॉ आशुतोष मीना बताते है कि -" यह विचारधारा का संघर्ष है ,राजस्थान की उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दो शिक्षक संगठन सक्रिय है ,Ructa और Ructa (rashtriya) .मैं Ructa के साथ सक्रिय हूँ, खुलकर उसकी गतिविधियों में हिस्सा लेता हूँ ,जो कुछ लोगों को बर्दाश्त नहीं है ,16 सितम्बर 2017 से मैं राजस्थान शिक्षक संघ अम्बेडकर का सिरोही जिले का निर्वाचित जिलाध्यक्ष भी हूँ,इसके बाद से ही मैं एकदम निशाने पर हूँ, मुझे बार बार निशाना बनाया जाता है,प्रताड़ित किया जाता है और मारने की कोशिश की जा रही है ,दुर्भावनापूर्ण तरीके से मेरे खिलाफ हर प्रकार की कार्यवाही की जा रही है ।"
कौन है डॉ आशुतोष ?
डॉ आशुतोष मीना वर्तमान में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर-लोकप्रशासन ,राजकीय महाविद्यालय आबूरोड में पदस्थापित है , उनका राजस्थान लोकसेवा आयोग से 2006 में चयन हुआ ।
मूलतः भरतपुर जिले की नदबई तहसील के पीली गांव के निवासी मीना विगत 10 वर्षों से राजकीय महाविद्यालय आबूरोड में कार्यरत है । वर्ष 2016 में उन्हें पीएचडी डिग्री अवार्ड हुई ।
स्कूली शिक्षा के समय से ही आशुतोष मीना की रुचि आर्टिकल लिखने की रही,10 वीं क्लास से ही अखबारों के लिए लिखना शुरू कर दिया,जो अब तक जारी है । उनकी एक पुस्तक 'पर्यटन एवं स्थानीय स्वशासन' भी प्रकाशित हुई है। वे सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय रहे है ,विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार खुलकर रखते है ।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल मामला 12 दिसम्बर 2017 को शुरू होता है ,जब कुछ लोग हाथ में भगवाझंडा लेकर राजकीय महाविद्यालय आबूरोड में ज़बर्दस्ती नारे लगाते हुए घुस गए और तिरंगा लगाने के स्थान पर भगवा झंडा फहरा दिया। इस कार्यवाही को डॉक्टर मीना ने असंवैधानिक कहा ,हालांकि उस दिन डॉ आशुतोष मीना अवकाश पर थे, किंतु इस घटना के बारे में देश भर को जानकारी पहुंची।
इसके लिए डॉ मीना को दोषी मानते हुए उसी शाम को 6 बजे विश्व हिंदू परिषद के किसी स्थानीय नेता ने मीना को फ़ोन पर धमकी दी है और नतीजा भुगतने को तैयार रहने को कहा ।
पहले से ही निशाने पर चल रहे डॉ मीना के पीछे पूरा कट्टरपंथी खेमा पड़ गया ,भगवा फहराने की घटना के चौथे दिन 16 दिसंबर 2017 को सोशल मीडिया पर हिंदूवादी संगठनों से जुड़े कुछ लोगों ने डॉ मीना को देशद्रोही क़रार देते हुए धमकी दी कि -" मीना को राडार पर रखें, लाठियों में तेल पिलाकर पीटेंगे, आबूरोड कॉलेज को जेएनयू नही बनने देंगे”
इसके बाद जांच के नाम पर दमन चक्र प्रारंभ हुआ ,हालांकि कार्यवाही 28.12.2017 को ही शुरू कर दी गयी ,जबकि शिकायत बाद में 1जनवरी 2018 दर्ज की गई । संघ के एक स्थानीय पदाधिकारी सुरेश कोठारी ने दिनांक 1जनवरी 2018 डॉ मीना के ख़िलाफ़ जिला कलेक्टर सिरोही को पत्र लिखा कि इस प्रोफ़ेसर पर कार्यवाही की जाये, आरोप लगाया गया कि मीना की सोशल मीडिया पर टिप्पणियाँ समाज विरोधी व धर्मविरोधी हैं,माहौल नकारात्मक हो रहा है ."
बताया जाता है कि डॉ आशुतोष मीना नामकी एक अन्य आईडी से “दीनदयाल तुम्हारा बाप है ,हमारा बाप क्यूँ बना रहे हो” इस टिप्पणी को आधार मानते हुए ज़िला कलेक्टर सिरोही ने पहला पत्र क़्र. 946/17 ,28 दिसम्बर 2017 आयुक्त कॉलेज शिक्षा को लिखा कि आशुतोष मीना के विरुद्ध सख़्त कार्यवाही की जावे , वहीं दूसरा पत्र क़्र. 947/17 उसी दिन डॉ आशुतोष मीना को देशद्रोही, समाज द्रोही, धर्मविरोधी व सरकार विरोधी का आरोप पत्र लगाते हुए 17 CC का नोटिस जारी किया और जवाब माँगा।
यहाँ यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि जिला कलेक्टर ने पहले सख़्त कार्यवाही की सिफ़ारिश बिना जाँच के विभाग को कर दी और बाद में डॉ मीना से जवाब माँगा।
डॉ मीना ने 18 जनवरी 2018 को लिखित जवाब प्रस्तुत किया, उसके बाद कलेक्टर ने 7 फरवरी 2018 को व्यक्तिगत सुनवाई के लिए भी बुलाया और सुनवाई के बाद संतुष्ट होते हुए प्रकरण ड्रोप कर दिया।
अंधेरगर्दी की हद तो यह है कि एक तरफ जिला कलेक्टर ने अपने स्तर पर मामला ड्रोप कर दिया है और दूसरी तरफ कॉलेज एज्यूकेशन के कमिश्नर को आरोपी व्याख्याता के विरुद्ध कार्यवाही की अनुशंसा भी कर दी ,फलतः आयुक्तालय में कलेक्टर द्वारा की गयी अनुशंसा पर कार्यवाही शुरू हो चुकी थी, आयुक्त ने अप्रेल 2018 में डॉ मीना के विरुद्ध राजकीय पीजी महाविद्यालय सिरोही के प्राचार्य के के शर्मा को जाँच अधिकारी नियुक्त किया।
अप्रेल में डॉ मीना की प्रतिनियुक्ति बायतू थी। जुलाई के प्रथम सप्ताह में मीना का तबादला आबूरोड से डीडवाना कर दिया गया। तब जाँचकर्ता अपनी टीम के साथ आबूरोड कॉलेज आयी और मीना को बुलाकर उनके बयान लिए व मामले की जाँच की। जाँच अभी भी चल रही है.
तो यह हाल है राजस्थान प्रदेश में उच्च शिक्षण संस्थानों के ,वहां के प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर अपने विचारों की लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति भी नहीं कर सकते है ,अगर कोई शिक्षक आरएसएस -भाजपा की विचारधारा के विरुद्ध टिप्पणी कर दे तो उसे समाज ,धर्म और राष्ट्र का विरोधी घोषित करते हुए उसको प्रताड़ित करने की साज़िश शुरू हो जाती है ।
डॉ आशुतोष मीना काफी लंबे समय से दक्षिण पश्चिमी राजस्थान के इस सामंती मनुवादी क्षेत्र में साम्प्रदायिक ताकतों से अकेले लौहा ले रहे है ,राजस्थान की सिविल सोसायटी, प्रगतिशील वामपंथी संगठन ,दलित आदिवासी ऑर्गेनाइजेशन्स और लोकतंत्र व सेकुलरिज्म के समर्थक अन्य संस्था ,संगठन ,दल कोई भी उनके पक्ष में खुलकर आने का साहस नहीं कर पा रहा है ।
आखिर कैसा कायर समाज बना लिया है हमने ? क्यों नहीं बोलते हम सब मिलकर ? अपने विचार फेसबुक पर व्यक्त करना भी अगर राष्ट्रद्रोह बना दिया जाएगा तो फिर कैसे कोई किसी अन्याय की मुखालफत करेगा ,असहमतियों को इतनी निर्ममता से कुचला जाएगा तो हमारा लोकतंत्र कैसे ज़िंदा रहेगा ।
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