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आखिर कौन है ये अम्बेडकर?  आरक्षण जनक? जाति संरक्षक? धर्म तोड़क?   अंग्रेजों का सिपहलकार, ब्राह्मणों का दुश्मन?  हिंदुओं का विरोधी? देशद्रोही? या एक खुद्दार नेता?

आखिर कौन है ये अम्बेडकर? आरक्षण जनक? जाति संरक्षक? धर्म तोड़क? अंग्रेजों का सिपहलकार, ब्राह्मणों का दुश्मन? हिंदुओं का विरोधी? देशद्रोही? या एक खुद्दार नेता?


आखिर कौन है ये अम्बेडकर?
आरक्षण जनक? जाति संरक्षक? धर्म तोड़क? 
अंग्रेजों का सिपहलकार, ब्राह्मणों का दुश्मन?
हिंदुओं का विरोधी? देशद्रोही? या एक खुद्दार नेता?

आखिर कौन है ये अम्बेडकर? 
हो सकता है कि कई लोगों को इन शब्दों से आपत्ति हो लेकिन 85 प्रतिशत से भी ऊपर इस देश के लोग बाबा साहेब को इसी रूप में स्थापित और वर्णित करने की कोशिश में लगे हैं। अम्बेडकर तो एक शिक्षक थे, एक वकील थे, राजनेता थे, गुरु थे, डॉक्टर भी थे, समाजसुधारक थे, विचारक थे, चिंतक थे, अर्थशास्त्री थे, ज्ञानी थे, शास्त्री थे, महापंडित भी थे, दूरद्रष्टा थे, एक आम इंसान थे हम सब की तरह। बस बुद्धि तीक्ष्ण थी, सोच विकसित थी और कर्म निष्पक्ष थे।
कल जब एक चतुर्वेदी जी ने वाट्सऐप ग्रुप में यह कहकर आपत्ति लगाई कि एक चमार की फोटो इस ग्रुप में न भेजो तो ग्रुप के 99 प्रतिशत सदस्यों के जैसे जान में जान आई और फिर मुकाबला शुरू हुआ आरक्षण से खत्म हुआ उपरोक्त सभी शब्दों के साथ। यही लगभग पुरे सोशल मीडिया और लोगों की मानसिकता का है। आप किस किस समझोओगे, बहस करोगे?

जब देश का संविधान बना तो लगभग 99.99 प्रतिशत लोगों को यह भी मालूम नही था कि संविधान आखिर होता क्या है। उन्हें यह भी मालूम नही था कि लोकतंत्र और कानून किस भला का नाम है। आज उन्ही की संतानें उसी संविधान और संविधान निर्माता पर सवालिया निशान करने में लगे हैं। अंग्रेजों की मुखबिरी और राजाओं की चाटुकारिता में जिनका पूरा जीवन बीता वो आज देशभक्ति और कानून पर लच्छेदार भाषण सुना रहे हैं। वो आरक्षण को अभिशाप और जातियों को सामाजिक सद्भाव समझते हैं। वो मंदिर के आरक्षण को धर्म और सामाजिक प्रतिनिधित्व को खैरात समझते हैं।

खैर! ये उनकी भी अभिव्यक्ति की आजादी है अन्यथा अपने देश के कानून और पहचान पर अपने ही समाज व् देश के एक बड़े हिस्से पर शायद ही किसी देश में सवाल उठाये जाते हो। आज सवाल आरक्षण, संविधान या अम्बेडकर का नही है क्योंकि किसी का भी विरोध करना इस देश का फैशन बन गया है। लेकिन मुझे तरस उन लोगों की मानसिकता पर आता है जो तर्क करते हैं कि आरक्षण से काबिलियत वंचित हो रही है। एकलव्य और शम्बूक से काबिलियत छीनने वाले ये मेरिट धारी आज भी किसी दलित को आईएएस बनने से रोकने के लिए रात के अँधेरे में हमला करते हैं। किसने कह दिया कि आरक्षण किसी देश में नही है? उनको बतया गया कि संविधान एक कॉपी पेस्ट है या कहते हैं कि अंग्रेजों के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट का पुलिंदा है।

ऐसे लोग 18 वीं सदी में जी रहे हैं। क्योंकि उन्होंने विश्व के इतिहास को पढ़ा ही नही है, न आरक्षण व् संविधान को। विश्व में जहाँ आरक्षण को ऐफिरमेटिव एक्शन कहते हैं और रंगभेद, नस्लभेद के लोगों को इसका फायदा दिया जाता है, जिनमे विकसित राष्ट्र जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका आदि देश शामिल है। दूसरी बात न वो लोग यह जानते हैं कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र विदेशों में नही पाए जाते हैं फिर भी वहां समानता के लिए आरक्षन है जिसका आधार गरीबी नही बल्कि सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक या रँगभेद आधारित भेदभाव और मानसिकता है।

जहाँ तक संविधान के कॉपी पेस्ट का सवाल है तो उन्होंने कभी अपने देश का न संविधान पढ़ा, न इतिहास। एक तरफ जब वो यह मानते है कि आरक्षण विदेशों में नही है तो दूसरी तरफ तर्क देते हैं कि संविधान में आरक्षण का प्रावधान डॉ अम्बेडकर ने दिया है जो गलत है। यानी उनकी शर्तानुसार संविधान कभी कॉपी पेस्ट है तो कभी गलत या बेकार। बहुत कम लोग जानते हैं कि गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया 1935 जब बना था उसके आधे हिस्से बाबा साहेब की सोच से बने हैं जो भारतीय लोगों की बेहतरी के लिए भारतीय व्यवस्थानुसार थे।

बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के विचारों से  संविधान, आरक्षण के अलावा रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की स्थापना, हीराकुंड, दामोदर नदी घाटी परियोजना, इलेक्ट्रिक ग्रिड सिस्टम, सेवानियोजन कार्यालय, वित्त आयोग, महिलाओं के समस्त कानून, दलितों, शोषितों और पिछड़ों के विशेष कानून, मजदूरों की कार्य करने की अवधि 14 घण्टे से 8 करना और मातृत्व अवकाश, स्वतंत्र निर्वाचन आयोग, वयस्क मताधिकार, लोकतंत्र और न जाने सैकड़ों चीजे ऐसी है जो बाबा साहेब ने इस देश को दी है लेकिन लोगों की आंख में धर्म और जाति का काला चश्मा चढ़ा है जिससे आगे कुछ दिखाई देना नामुमकिन है।

भारतीय व्यव्यस्था में जो जब जब सही था उसकी समस्त रुपरेखा संविधान में है। अच्छा और बुरा क्या किया जा सकता है वह समय समय की सरकारों पर निर्भर है। आज जो अतिवाद चल रहा है चाहे वो किसी भी तरफ हो, वो अपने उफान के चरम तक जाएगा अवश्य लेकिन वहीँ से उसकी अंतिम यात्रा भी शुरू होगी। इसलिए अपने देश की धरोहर, राष्ट्रिय प्रतीकों और महापुरुषों के साथ साथ कानून और व्यव्यस्था पर भी गर्व करें, उसे और अच्छा बनाये रखने का संकल्प करें जिससे हम विकसित राष्ट्र का सपना पूरा कर सकें। धन्यबाद।

पार्लियामेंट की डिबेट जिसमे डॉ राजेंद्र प्रसाद और बाबा साहेब के सवाल जवाब और संविधान पर उनका क्या योगदान है इस लिंक पर जाए। पार्लियामेंट ऑफिशियली।  http://parliamentofindia.nic.in/ls/debates/vol11p11.htm
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