ये दलितो की बस्ती है…
Tuesday 25 September 2018
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ये दलितो की बस्ती है…
बोतल महँगी है तो क्या हुआ,
थैली खूब सस्ती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
1: ब्रह्मा विष्णु इनके घर में,
कदम कदम पर जय श्रीराम।
रात जगाते शेरोंवाली की……
करते कथा सत्यनाराण..।।
पुरखों को जिसने मारा
उसकी ही कैसिट बजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
2: तू चूहड़ा और मैं चमार हूँ,
ये खटीक और वो कोली।
एक तो हम कभी बन ना पाये,
बन गई जगह जगह टोली।।
अपना मुक्तिदाता को भूले,
गैरों की झांकी सजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।।
3: हर महीने वृंदावन दौड़े,
माता वैष्णो छ: छ: बार।
गुडगाँवा की जात लगाता, सोमनाथ को अब तैयार।।
बेटी इसकी चार साल से,
दसवीं में ही पढ़ती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
4: बेटा बजरंगी दल में है,
बाप बना भगवा धारी
भैया हिन्दू परिषद में है,
बीजेपी में महतारी।
मंदिर मस्जिद में गोली,
इनके कंधे चलती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
5: शुक्रवार को चौंसर बढ़ती,
सोमवार को मुख लहरी।
विलियम पीती मंगलवार को,
शनिवार को नित जह़री।।
नौ दुर्गे में इसी बस्ती में,
घर घर ढोलक बजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
6: नकली बौद्धों की भी सुन लो,
कथनी करनी में अंतर।
बात करें बौद्ध धम्म की,
घर में पढ़ें वेद मंतर।।
बाबा साहेब की तस्वीर लगाते,
इनकी मैया मरती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
7: औरों के त्यौहार मनाकर,
व्यर्थ खुशी मनाते हैं।
हत्यारों को ईश मानकर,
गीत उन्हीं के गाते है।।
चौदह अप्रैल को बाबा साहेब की जयंती,
याद ना इनको रहती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
8: डोरीलाल इसी बस्ती का,
कोटे से अफसर बन बैठा।
उसको इनकी क्या पड़ी अब,
वह दूजों में जा बैठा।।
बेटा पढ़ लिखकर शर्माजी,
बेटी बनी अवस्थी है।
ये दलितो की बस्ती है ।
9: भूल गए अपने पुरखों को,
महामही इन्हें याद नहीं।
अम्बेडकर बिरसा बुद्ध,
वीर ऊदल की याद नहीं।
झलकारी को ये क्या जानें,
इनकी वह क्या लगती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
मैं भी लिखना सीख गया हूँ,
गीत कहानी और कविता।
इनके दु:ख दर्द की बातें,
मैं भी भला कहाँ लिखता था।।
कैसे समझाऊँ अपने लोगों को मैं,
चिंता यही खटकती है ।
ये दलितों की बस्ती है।।
*_रचनाकार - सूरजपाल चौहान_*
बोतल महँगी है तो क्या हुआ,
थैली खूब सस्ती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
1: ब्रह्मा विष्णु इनके घर में,
कदम कदम पर जय श्रीराम।
रात जगाते शेरोंवाली की……
करते कथा सत्यनाराण..।।
पुरखों को जिसने मारा
उसकी ही कैसिट बजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
2: तू चूहड़ा और मैं चमार हूँ,
ये खटीक और वो कोली।
एक तो हम कभी बन ना पाये,
बन गई जगह जगह टोली।।
अपना मुक्तिदाता को भूले,
गैरों की झांकी सजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।।
3: हर महीने वृंदावन दौड़े,
माता वैष्णो छ: छ: बार।
गुडगाँवा की जात लगाता, सोमनाथ को अब तैयार।।
बेटी इसकी चार साल से,
दसवीं में ही पढ़ती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
4: बेटा बजरंगी दल में है,
बाप बना भगवा धारी
भैया हिन्दू परिषद में है,
बीजेपी में महतारी।
मंदिर मस्जिद में गोली,
इनके कंधे चलती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
5: शुक्रवार को चौंसर बढ़ती,
सोमवार को मुख लहरी।
विलियम पीती मंगलवार को,
शनिवार को नित जह़री।।
नौ दुर्गे में इसी बस्ती में,
घर घर ढोलक बजती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
6: नकली बौद्धों की भी सुन लो,
कथनी करनी में अंतर।
बात करें बौद्ध धम्म की,
घर में पढ़ें वेद मंतर।।
बाबा साहेब की तस्वीर लगाते,
इनकी मैया मरती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
7: औरों के त्यौहार मनाकर,
व्यर्थ खुशी मनाते हैं।
हत्यारों को ईश मानकर,
गीत उन्हीं के गाते है।।
चौदह अप्रैल को बाबा साहेब की जयंती,
याद ना इनको रहती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
8: डोरीलाल इसी बस्ती का,
कोटे से अफसर बन बैठा।
उसको इनकी क्या पड़ी अब,
वह दूजों में जा बैठा।।
बेटा पढ़ लिखकर शर्माजी,
बेटी बनी अवस्थी है।
ये दलितो की बस्ती है ।
9: भूल गए अपने पुरखों को,
महामही इन्हें याद नहीं।
अम्बेडकर बिरसा बुद्ध,
वीर ऊदल की याद नहीं।
झलकारी को ये क्या जानें,
इनकी वह क्या लगती है।
ये दलितो की बस्ती है ।
मैं भी लिखना सीख गया हूँ,
गीत कहानी और कविता।
इनके दु:ख दर्द की बातें,
मैं भी भला कहाँ लिखता था।।
कैसे समझाऊँ अपने लोगों को मैं,
चिंता यही खटकती है ।
ये दलितों की बस्ती है।।
*_रचनाकार - सूरजपाल चौहान_*
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