सती प्रथा बनाम महिला हत्या
Sunday 30 December 2018
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सन 1823 ईसवी की घटना है एक कोंकण ब्राम्हणी राधाबाई को सती के नाम पर जलाने का प्रबंध किया गया। ओंकारेश्वर के पास उसे चिता पर बैठाया गया। चिता में जब आग लगाई गई,
जब राधाबाई चिता की आग को बर्दाश्त न कर पाई और चिता से बाहर कूद पड़ी और जान बचाने के लिए नदी की तरफ भागी।उसका पूरा शरीर झुलस गया था, फिर भी कोंकणी ब्राम्हणों नें उसे पकड़कर दुबारा चिता में डाल दिया। पुनः भागने पर कोंकणी ब्राम्हणों नें उसे बांसों से ठेल ठेल कर पुनः जलाने का प्रयास किया। चिता के चारों ओर कोंकणी ब्राम्हण बड़े जोर जोर से ढोल पीटकर भजन और मंत्र उच्चारित कर रहे थे ताकि उसकी चीखें बाहर न जा सकें घटना के वक़्त वहां से गुजर रहे एक अंग्रेज नें उसे बचाया और शहर में ले जाकर उसका इलाज कराया पर अत्यधिक जलनें के कारण आखिर उसकी तीन दिन बाद मृत्यु हो गयी। इस प्रकार के अमानवीय क्रूर और घृणित कारनामों में हस्तक्षेप करके अंग्रेज अधिकारियों ने उस पर कठोर पाबंदी लगाने का प्रयास किया,कैप्टन राबर्टसन नें ऐलान करवा दिया कि आज के बाद यदि ऐसी घटनाएं दुबारा हुईं तो हत्या समझकर कठोर कार्यवाई की जाएगी।
अंग्रेजी सरकार के आदेश को हिन्दू धर्म पर आक्रमण मानकर नाशिक,पैठण आदि शहरों के ब्राम्हणों की बैठक हुई और कानून की ओर आंख बन्दकर सती प्रथा को यथावत चालू रखने की नई योजना बनाई गई,सती प्रथा तोड़नें वाला कानून न बनें इसके लिए कोंकणी ब्राम्हणों नें अपना एक वकील प्रतिनिधि इंग्लैंड भेजा,लेकिन इंग्लैंड की महारानी और वहां की संसद नें सती प्रथा के नाम पर किसी स्त्री को जबरन जिंदा जलाने की अनुमति नहीं दी।।
चारों ओर से निराश ब्राम्हणों नें कानून को धता बताते हुए सती प्रथा के नाम पर विधवा स्त्री को जबरन जिंदा जलाने की निम्न नई नीति तैयार की,-जिसके अनुसार सती होने वाली स्त्री को जिंदा जलाने के लिए किसी खास सुनसान जगह पर घास का मंडप बनाकर उसपर गोबर के उपले तथा चंदन की लकड़ियां रखीं जाएं।।
फिर उस पर सती होने वाली स्त्री को बैठाकर आग लगाई जाए।आग लगने पर यदि वह स्त्री फिर भी किसी तरह चिता से बाहर आ भी जाय और अपनी जान बचा ले तो उसे किसी भी तरह से दुबारा बिरादरी में न शामिल किया जाय।।
उसे हमेशा के लिए समाज से बहिष्कृत कर दिया जाय *साथ ही उस स्त्री के माँ बाप को भी बिरादरी से बहिष्कृत किया जाय* यही है तथाकथित हिन्दू धर्म के काले कलंक का एक काला सच जिसे *26 नवम्बर सन 1949 को डा.बाबासाहब अम्बेडकर नें संविधान बनाकर ध्वस्त किया।* और धर्म की क्रूरता से अबला कहलाने वाली स्त्री को सबला बनाकर मंत्री,मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति के साथ वैज्ञानिक बनाकर अंतरिक्ष तक पहुंचाया। पर दुःखद कि धार्मिक गुलामी की मजबूत जंजीरों में जकड़ी पढ़ी लिखी महिला आज भी अपनी ताकत को नजरअंदाज कर चांद और अंतरिक्ष की सैर कर आने के बाद भी चांद को पति परमेश्वर के रूप में मानकर पूजनें से नहीं चूकती।।
बहुत कुछ सुधरा है पर जितना सुधरा उससे ज्यादा सुधरना अभी और बाकी है जरा सी ढील हुई कि धार्मिक दरिंदे अब भी इस अत्याधुनिक वैज्ञानिक इक्कीसवीं सदी में भी घात लगाकर बैठे हैं जब भी मौका मिला पुनः उसी धार्मिक क्रूर काली गहरी खाई में ढकेलने से नहीं चूकेंगे जहां से बड़ी मेहनत से बुद्ध,फुले,साहू,पेरियार और अम्बेडकर जैसे क्रांतिवीर महामानव बड़ी मेहनत से उसे निकालकर लाये हैं-
दलित दस्तावेज
'पृष्ठ-95-96'
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