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लॉकडाउन से जीवन में सकारात्मक बदलाव

लॉकडाउन से जीवन में सकारात्मक बदलाव


लॉकडाउन से जीवन में सकारात्मक बदलाव
(विनोद झावरे की कलम से) 

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,वह एक परिवार और समाज का हिस्सा बन कर एक समूह में निवास करता है,ताकी किसी परिवार या समाज में कोई समस्या जन्म ले लेती है; तब समाज के लोग उसकी मदद कर समस्या का समाधान कर सकें । परंतु आज कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी ने जन्म ले लिया है, तब हमें सोसल डिस्टेंसिंग का पालन कर  प्रशासन की मदद करना चाहिए । आज इस वायरस के कारण पूरा विश्व संक्रमित हो गया है l इस महामारी की रोकथाम के लिए सरकार की ओर से पूरे देश में लॉकडाउन किया गया है, कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने  समय रहते कदम उठाया l लॉकडाउन से कोरोना महामारी में काफी हद तक नियंत्रण करने में हम साल रहे है l चूँकि लॉकडाउन के कारण पूरा देश स्टे इन होम है , पूरा समय घर एवं परिवार के साथ है l यह पहला अवसर है कि कामकाजी लोग इतने लंबे समय घर में परिवार के साथ बिताये है l इस कारण परिवार एवं समाज में एक सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दे रहा है ।

फिजूल खर्चो पर पाबंदी :- व्यक्ति अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार अपनी भौतिकवादी जीवन में सुख की आनंद फरौसी चलती रहती है,तब वहां पर धन को कम, मन को ज्यादा महत्व दिया जाता हैं । पूरा परिवार इस फिजूलखर्ची का हिस्सा बना रहता है । फला रिस्तेदारी मे शादी है, सबके नए कपड़े खरीदी, गर्मी का सीजन आ रहा है; नया कूलर ,फ्रिज,एलईडी टीवी, दिन में शापिंग,और सौंदर्यीकरण शाम को गुपचुप चाट, आईसक्रीम और होटल में डिनर l परंतु जब संपूर्ण विश्व में कोरोना वायरस जैसी महामारी के गिरफ्त में हो और हर परिवार घर में कैद हो चुका है तब बाहर लाकडाउन के कारण सारी दुकानें बंद हो आवश्यक वस्तुए बस उपलब्ध हो, तब तो फिजूल खर्च पर पूर्ण विराम सा लग गया है ।

परिवारिक एकरूपता: - समाज का हर वर्ग अपने जीवन यापन के लिए अपने कार्यों के पीछे इतना दौड़ता है कि वह अपने परिवार पूर्ण समय भी नहीं दे पाता है । आठ घंटा काम के लिए वह सोलह घंटा बाहर बिता देता था । अपने परिवार को ज्यादा से ज्यादा सुख और आराम देना उसकी दैनिक क्रिया बन चुकी है । आज लॉकडाऊन ने समाज के ऐसे वर्गों को परिवार के साथ घर में रहकर घर से काम करने का अवसर मिला है जिससे परिवार में एकरूपता लाने में सकारात्मक परिणाम आया है ।                                  

व्यसन में कमी:- कुछ व्यक्तियों की सोच यह होती है कि मेहनत सिर्फ खाने के लिए करते हैं और जी भर कर खाएं नहीं तो कमाना किस काम का । यह सोच हीन भावना को जन्म देती है । ऐसे व्यक्ति सिर्फ समय की ताक पर रहते हैं,जैसे अवसर मिला अपनी वासना को पूरी कर लेते हैं । यहां पान ,गुटका, गांजा,अफीम,शराब,अंडा, मांस आदी का सेवन कर अपने को आनंदित कर लेते हैं, और परिवार के दूसरे पक्ष को परेशान करने जैसी स्थिति पैदा कर लेते हैं और परिवार में तनाव बढ़ने लगता है । जब लॉकडाउन चल रहा हों तब सारे व्यवसाय बंद है । इस आधार पर व्यसन से मुक्ति और तनाव से छुटकारा मिला है । परिवार के सभी सदस्य एक समान भोजन मिल बांट कर खा रहे हैं ,और सकुशल लॉकडाउन का पालन कर रहें हैं ।

अपराध में कमी:- मानव समाज एक विशाल समूह में निवास करता है, ताकी कभी कोई समस्या आने पर लोग मदद कर सके । परन्तु आज समय विपरित है,कि व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ परिवार के साथ घर में रह रहा है । और आज सड़क वाहन विहीन तथा भीड़ मुक्त्त हो चुकी है, जिससे दुर्घटनाएं पूर्ण रूप से बन्द हो चुकी है तथा सम्पूर्ण क्षेत्र में पुलिस के पहरे ने चोरी, लूट , डकैती तथा पारिवारिक विवादों में कमी ला दिया है । लाकडाउन अपराध डाउन बन चुका है ।

प्रकृति का शुद्धिकरण:- मानव समाज ने अपनी भोग विलास की दिनचर्या ने प्रकृति को विनाश की ओर ढकेल दिया था । परंतु आज इस महामारी ने मानव के पग स्थिर कर दिया है । जिससे शुद्ध हवा, शुद्ध जल तथा शुद्ध भोजन की प्राप्ती सम्भव हो सकेगी । आज वातावरण इतना शुद्ध हो चुका है कि व्यक्तियों के स्वास्थ्य  में सुधार आ रहा है । बिना इलाज के घरों में स्वस्थ रह रहे हैं । इसी दौरान मृत्यु दर में भी कमी आई है । यहां तक कि हमारे छिंदवाड़ा का दूषित वातावरण 80 से घट कर 40 ए.क्यू.आई. तक आ चुका है । अर्थात प्रकृति का पूर्ण रूप से शुद्धिकरण हो चुका है ।

अंततः आज इस  वैश्विक महामारी ने बहुत बड़े क्षेत्र को प्रभावित किया है जिसमें अर्थव्यवस्था चरमरा गई है वहीं  कुछ क्षेत्र ऐसे रहे जिसमें मानव जीवन में सकारात्मक बदलाव की धुंधली तस्वीर नजर आ रही है।

लॉकडाउन का पालन करे ,घर में रहें -सुरक्षित रहे ।
घर में रहना है – कोरोना वायरस को हराना है l



विनोद झावरे की कलम से............
(लेखक सतपुड़ा विधि महाविद्यालय छिंदवाडा में सहायक प्राध्यापक है)

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