“मैं नारी हूँ”.
“मैं नारी हूँ”................................
मैं नारी हूँ धरा पर , धरती सबका ध्यान,
इक मेरी पहचान है, करती हरदम काम l
घर को मैं स्वर्ग बनती, रखती सबका मान,
बच्चों को दुलार हूँ देती, बड़ो को सम्मान,
सूरज की प्रथम किरण से, आखें मेरी खुलती ,
मेरी हर मुस्कान से, घर में खुशियाँ घुलती l
न थकती न रूकती हूँ, हरदम चलते जाती हूँ,
स्व पसंद को भूलकर, सबकी पसंद अपनाती हूँ,
अपने ख्बाब बिसरा कर, सबके स्वप्न सजाती हूँ
पास समय वह भी तो, सब पर सहज लुटाती हूँ l
खुद का ध्यान रखने का, समय नहीं है पास,
सबकी खुशियाँ मुझसे हरदम, बनी यही है आस,
अपने इच्छा को छोड़कर, पूरी करती सबकी मंशा,
बदले में चाहती हूँ , बस सबसे थोड़ी सी प्रसंशा ..l
मैं नारी हूँ धरा पर , धरती सबका ध्यान,
इक मेरी पहचान है, करती हरदम काम l
रचनाकार
पुष्पा कोलारे “सखी”
सामाजिक कार्यकर्त्ता
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा
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