Monday 22 February 2021
Comment
परियों की पहचान है बेटी
परियों की पहचान है बेटी
हर घर का अभिमान है बेटी,
कहने को तो कुछ भी नहीं है
पर देश की शान है बेटी ।
खुद से पहले दूसरों का सोचे
ऐसी ही एक जान है बेटी,
माता-पिता को ईश्वर से मिलता,
ऐसी सम्मान है बेटी ।
बेटी को न बोझ समझो
यही एक अरमान है ।
माता-पिता ही बेटी को जाने,
हर बात को वह समझ जाए,
इतनी शानदार है बेटी ।
फिर भी इस समाज में
इतनी लाचार है बेटी,
सबको अपना मानती है
फिर भी पराई कहलाती बेटी।
एक बार ना सोचे वह
हर रीति को निभाती है,
सब को अपना समझ कर
दो जगह बट जाती बेटी।
इसको मिले थोड़ा सा प्यार
बस इतना ही चाहती है,
दुनिया सारी छोड़ कर
फिर वह अपना घर की
बन जाती बेटी।
रचनाकार
कु. काजल बुनकर,
परासिया(छिंदवाड़ा)
0 Response to " "
Post a Comment