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मासूमो पर हो रही अपराधिक घटनाये – लाचारी में समाज

मासूमो पर हो रही अपराधिक घटनाये – लाचारी में समाज


“हे बाबा! कैसे जायूं मैं बाहर,

कदम-कदम पर दुशासन खड़े है,

डर लगता है अब तंग राहो में,

मनुष्य के रूप में दानव खड़े है”

देश में आये दिन मासूम बेटियों के साथ हो रही अमानवीय घटनाओं को देखकर हर माँ बाप के मन में डर समा गया है, समाज में एक अद्रश्य सा खौफ का माहौल बना हुआ है l ऐसा हो भी क्यों न, आये दिन अख़बारों के प्रथम पेज में किसी मासूम का अमानवीय दुष्कर्म, हत्या, छेड़छाड़ आदि की घटनाये पढ़कर हर एक माता-पिता का मन देहल जाता होगा l अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर मन में ढ़ेरो सवाल मन को कसोट देते होगे l अधिकतर घटनाओं में परिचित एवं जान पहचान वाले लोग ही होते है जो बच्चों को अपने पहचान एवं विश्वास का फायदा उठाकर मासूमो के साथ दुष्कर्म को अंजाम देते है l आज नशा एवं मानसिक विकृतियों ने लोगो के मन में ऐसे घर किया है कि उन्हें ये भी समझ नहीं आता कि ये क्या कर रहे है या इसका परिणाम क्या होगा l बहुत सारे मामलो में देखा गया कि ये कृत्य करने वाले लोग युवा अवस्था से अधिक उम्र तक के ओछी मानसिकता के होते है l प्रश्न यह उठाता है कि ये लोग के मन में ये विकृति आ कहाँ से रही है? आकडे बताते है कि दुष्कर्म के मामले दुधमुंहे बच्ची से लेकर अधेड़ उम्र की महिलाये को भी दरिंदगी का शिकार बनाया गया है l हैवानियत के ये शर्मनाक दानव मानव के रूप में हमारे बीच ऐसे रहते है जैसे हंश के झुण्ड में बगुला l

ये हैवान अपनी काम तृप्ति के लिए ये बड़ा से बड़ा एवं जघन्य पाप करने से नहीं डरते l देश में कई ऐसी घटनाएं सामने आई है जिसमे  मासूम से उनके सौतेले पिता, चचेरे-मरेरे भाई, रिश्तेदार, परिचित पडोसी आदि ने इस कृत्य को अंजाम दिए है जिस पर परिवार आँख बंद करके भरोसा करता है, यदि भरोसेमंद लोग ऐसा करते है तो कोई किस पर विश्वास करे और किस पर न करे ? देश में इस प्रकार की घटनाये विकृति पैदा कर सकती है, समाज इससे अच्छा खासा डरा हुआ है l हमारे देश का कानून ऐसा है कि किसी घटना के बाद आरोपी को सजा देने में वर्षों निकल जाते है, कानून की पेचीदी कार्यवाही से पीड़ित परिवार स्वयं पीड़ित एवं ठगा महसूस करने लगता है l

कुछ ही दिन पहले अखबार में प्रकाशित खबर ने सबकी नींद उड़ा दी थी, जिसमे 36 घंटे में ही साढ़े तीन साल से 11 साल तक की बच्चियों से रेप और हत्या के 4 केस आए हैं। मध्यप्रदेश के ग्वालियर में पिता के जिगरी दोस्त ने 9 साल की बच्ची से रेप किया। खंडवा में एक पिता ने 11 साल की बेटी के साथ दुष्कर्म किया। उधर, मुरैना में नाबालिग पड़ोसी ने बच्ची को किडनैप कर मार डाला। रेप की भी आशंका है। गुना में साढ़े 3 साल की बच्ची को नशेड़ी उठाकर ले गया। रेप के बाद बच्ची को मरने के लिए छोड़ गया। हर दिन हैबानियत की खबर ने दिल को दहला दिया है l आखिर कौन है ये लोग, ऐसी विकृति पैदा कहाँ से हो रही है? इसके पीछे क्या कारण है यह बात जानने की कोशिश करनी होगी और इसका कुछ मुकम्मल रास्ता निकलने के बारे में सोचना होगा l इस विकृति के पीछे कुछ कारण जान पड़ते है जिसे समझने की आवश्यकता है l

नशा का चलन एवं  प्रभाव - नशा आदमी की सोच एवं मानसिकता को विकृत कर देता है l उसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं रहता और उसके गलत दिशा में बहकने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं l ऐसे में कोई भी स्त्री उसे मात्र शिकार ही नजर आती है l अभी तक की सभी घटनाओं की समीक्षा की देखी जाएं तो 80 प्रतिशत से अधिक मामलों में नशा ही प्रमुख कारण मिलेंगे l हमारे देश में नशा ऐसे बिक रहा है जैसे मंदिरों में प्रसाद l आपको हर गाँव,कस्वा और शहर मंदिर मिले ना मिले पर शराब की दुकान जरुर मिल जाएगी l और शाम को तो लोग शराब की दुकान की ऐसी परिक्रमा लगाते हैं जैसे अगर वो ना मिली तो प्राण ही सूख जाएंगे l

मानसिक दुर्बलता- स्त्री को लेकर बने मनघनित चुटकुलों से लेकर चौराहों पर होने वाली छिछोरी गपशप तक और इंटरनेट पर परोसे जाने वाले घटिया फोटो से लेकर हल्के बेहूदा कमेंट तक में अधिकतर पुरुषों की गिरी हुई सोच से हमारा सामना होता है l  फिल्मों एवं टीवी सीरियल में अश्लील सीन और उत्तेजक किताबें पुरुषों की मानसिकता को दुर्बल कर देती हैं और वो उस उत्तेजना में अपनी मर्यादाएं भूल बैठता है l और यही तनाव ही बलात्कार का कारण होता है l

सोशल मीडिया का दुरूपयोग - आज हर युवा के हाथ में मोबाइल है और मोबाइल में इन्टरनेट पर ढ़ेर सारी उत्तेजक एवं भ्रमित सामग्री का युवा वर्ग गलत उपयोग कर अपने मन को इस प्रकार के जघन्य अपराधिक कूप में डालने का कार्य का रहे है l परिवेश में घुलती अनैतिकता और बेशर्म आचरण ने पुरुषों के मानस में स्त्री को मात्र भोग्या ही निरूपित किया है l यह आज की बात नहीं है बल्कि बरसों-बरस से चली आ रही एक ओछी मानसिकता है जो दिन-प्रतिदिन फैलती जा रही है l  हमारी सामाजिक मानसिकता भी स्वार्थी हो रही है l फलस्वरूप किसी भी मामले में हम स्वयं को शामिल नहीं करते और अपराधी में व्यापक सामाजिक स्तर पर डर नहीं बन पाता है l

महिलाओं का कमजोर आत्मविश्वास- महिलाओं का अगर आत्मविश्वास प्रबल हो तो कोई भी पुरुष उनसे टक्कर लेने में कई बार सोचेगा l महिलाओं को शारीरिक रूप से सबल बनना चाहिए और वो मन से भी खुद मजबूत समझें l विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की ट्रेनिंग उन्हें बचपन से ही मिलनी चाहिए l हमारा समाज लड़कियों की परवरिश इस तरह से करता है कि लड़की खुद को कमजोर और डरपोक बनाती चली जाती है l महिलाओं को शारीरिक रूप से सबल बनना होगा l हमें अपनी बेटियों को निडर बनाना होगा l महिला अगर डरी-सहमी, खुद को लाचार समझती है तो उसे परेशान करने वालों का विश्वास कई गुना बढ़ जाता है l महिला की बॉडी लैंग्वेज हमेशा आत्मविश्वास से भरपूर होना चाहिए l

लचीला कानून व्यवस्था - हमारे देश का कानून लचीला है, ये सब मानते हैं l अगर कानून सख्त हो तो शायद अपराधिक मामलों की संख्या बहुत कम हो जाती l कमजोर कानून और इंसाफ मिलने में देर भी बलात्कार की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है l देखा जाए तो प्रशासन और पुलिस कमजोर नही हैं, कमजोर है उनकी सोच और समस्या से लड़ने की उनकी इच्छा शक्ति l पैसे वाले जब आरोपों के घेरे में आते हैं तो प्रशासनिक शिथिलताएं उन्हें कटघरे के बजाय बचाव के गलियारे में ले जाती हैं l पुलिस की लाठी बेबस पर जितने जुल्म ढाती है सक्षम के सामने वही लाठी सहारा बन जाती है l अब तक कई मामलों में कमजोर कानून से गलियां ढूंढ़कर अपराधी के बच निकलने के कई किस्से सामने आ चुके हैं l कई बार सबूत के आभाव में न्याय नहीं मिलता और अपराधी छूट जाता है l

 

सिर्फ कानून और प्रशासन के जरिये नहीं संभव है समाधान-

सिर्फ कानून-प्रशासन के जरिए बलात्कार-मुक्त समाज बनाने की कोशिश एक धोखे से ज्यादा कुछ नहीं है । दुनिया की कोई भी सरकार अश्लीलता, साहित्य और फिल्म को बैन करने में न तो पूरी तरह सफल हो सकती है, और न ही बैन इसका वास्तविक समाधान है । हमें अपनी जीवन-शैली और दिनचर्या को भी समझने की जरूरत हो सकती है । हम और हमारे बच्चे क्या पढ़ते हैं, क्या देखते-सुनते हैं, क्या हम और हमारे बच्चे किसी व्यसन का शिकार तो नहीं हैं, हमारे घर और आस-पास का वातावरण हमने कैसा बनाया हुआ है, इस सबके प्रति सचेत रहना होगा । इंटरनेट और सोशल मीडिया इत्यादि का विवेकपूर्ण और सुरक्षित ढंग से उपयोग सीखना और सिखाना भी इसी निजी सतर्कता का हिस्सा है । इस सोच को लेकर इस प्रकार की आपराधिक कृत्य को हम किया जा सकता है l इस विषय में हर व्यक्ति को सोचने व कारगर उपायों को खोजने की आवश्यकता है l

“नारी को अब सबला करना होगा,

अपने दम पर उसे लड़ना होगा,

जब वदलाव आयेगा समाज में,

अपराधी भी अपने को देख,

खुद से ही डर जाएगा l”

 

लेखक

श्याम कुमार कोलारे

सामाजिक कार्यकर्त्ता / चिन्तक

भोपाल, मध्यप्रदेश

मोबाइल - 9893573770  

लेखक बच्चों के शिक्षा क्षेत्र एवं बाल मुद्दों पर कार्य करते है l

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