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कोविड के बाद विद्यालय जीवन

कोविड के बाद विद्यालय जीवन

दुबके पाँव, कोरोना आया 

बच्चों को है, खूब सताया

बन्द हुआ, हमारा स्कूल 

मुरझा गए, बागों के फूल।


बन्द हुई , स्कूल पढ़ाई

टीचर की है, याद सताई

सहपाठी सब, हो गए दूर

घर मे रहने, को मजबूर ।


नन्ही गुड़िया, समझ न पाये

अब वो क्यो, स्कूल न जाये

घर मे हो गए, बच्चे बोर

थम गया, बच्चों का शोर।


शुरू हुई ,ऑनलाइन पढ़ाई 

कुछ समझे, कुछ समझ न आई

पुस्तक-कापी, हो हुई दूर

मोबाइल से, पढ़ने को मजबूर।


साल बीत गए, बिन स्कूल 

पता नहीं, ये कौन सी भूल

स्कूल में, पढ़ते थे साथ 

दोस्तों की, आ रही याद।


कब स्कूल, खुले हमारा 

नहीं किसी को, कोई भान 

बच्चों की, किलकारी सुनने 

तरस गए, स्कूल के कान l 


मम्मी मुझको, रोज पढ़ाती 

यह पढ़ाई, मुझे न भाती 

टीचर की है, बात निराली

इनके जैसे न, कोई समझाती l


गर स्कूल, शुरू हो जाते

कितने मजे, हमे है आते

दोस्तों के साथ मिलकर

स्कूल में है, धूम मचाते।


कवि/ लेखक

श्याम कुमार कोलारे

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