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सावन की बहारें

सावन की बहारें

सावन आया पहन हरियाली
धूम मचाये है बदरी काली
धरती ने पहना है हरा श्रृंगार
नदियों ने पहना है नीर रुपी हार ।
सावन की फुहारें मंद-मंद बरसना
भोरों का जैसे फूलों पे सरकना
मदहोश घटा अम्बर बिखारे
बादलों से दिनकर करें है इशारे ।
रंग-बिरंगी सुन्दरता फूलों में आई
चारो तरफ है मदहोशी छाई
धरती अपने है यौवन में आई
खेत-खलिहान में सुन्दरता छाई ।
वन-उपवन में रौनक की आहटे
बदल देख मयूर उमंग में है नाचे
साथी संग वालाएँ झूले में इठलाये
सावन महीना सबके मन भाये।

कवी/ लेखक
श्याम कुमार कोलारे

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