बुझा हुआ दीपक!!
सब कहते है, बेटा कुल का दीपक होता है
जो वंश-परिवार की, रोशन की खान होता है
पता नहीं ! हमेशा यह बात सत्य होती है
क्या बेटा से ही, परिवार की शान होती है ?
बेशक बेटा माँ-बाप का सहारा होता है
इनके जीवन में आखों का तारा होता है
भविष्य की आस, सपनो का विश्वास होता है
बाप की हिम्मत और माँ का नाज होता है ।
दुनिया में इसी चाह पे, ये खास होता है
बेटा की चाहत पर, ये विश्वास होता है ।
कुल का खेवनहार, वंश का वरिशदार होता है
कुल परंपरा, रीती-रिवाज का शिरोधार्य होता है
इसी आस पर, सभी उम्मीदे टिकी थी
बच्चों के बड़े होते तक, अपेक्षा बनी थी ।
बड़े अदब से पाला था, हर सपना साकार करेगा
मेरी हर अधूरी तमन्ना, मेरे लिए सार करेगा ।
बाप की परवरिश, और शिक्षा ने किस्मत चमकाई
बेटा का अच्छे दिन, बाप के माथे पर लकीर आई
उस दिन बूढ़े की उम्मीद, जस्बात तार-तार हो गया
बेटा माँ-बाप को छोड़कर, अलग रहने बोल गया ।
बना लिया बेटा ने अपना ही अलग आशियाना
उनके लिए बूढ़े माँ-बाप, अब बन गए बेगाना
बेटा है दीपक! यही उनको अँधेरे में छोड़ गया
दीपक से न मिली रौशनी, बस आस छोड़ गया ।
कवि/ लेखक
श्याम कुमार कोलारे
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