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सावन की रौद्र बूँदें

सावन की रौद्र बूँदें

 


 

सावन काली अन्धयारी रातो में

यूँ गम की भरी बरसातों में

ये कहर ढाती कड़कती बिजलियाँ

हलचल मचादी भूमि-आकाशो में l

कहीं मुसला तो कहीं रिमझिम से

कहीं धीरे से कहीं जम-जम से

कभी पोखर में  कभी नदियों में

हुआ जल-थालाथल बागियों में l

कुछ तरसे एक-एक बूँदों को

उम्मीद बने अधर प्यासों को

हलधर की बने चितवन प्यारी

कभी छिनलें इसकी भरी थाली l

तेरे आने की करें सब विनती

खूब कहने पर नहीं सुनती

जब आये चहु पैरो में तू

रौद्र रूप में छुदें तू  l

यूँ कहर बाढ़ बन जाती है

तेरे मन को ये क्यूँ भाति है

बेघर हुए तेरे पूत क्यूँ ?

बिलख रहे सब मंजीत क्यूँ !

हो जा पावन शीतल देवी

कर जोरकर विनती मेरी

सुत ध्यान लगावे अब तेरे

बस रहम कर बरखा देवी l   

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कवी / लेखक

श्याम कुमार कोलारे


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