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तरुवर

तरुवर

ऊंचे ऊंचे पेड़ देखो गगन को झू रहे
हरि-हरि पत्तियों में मंद मुस्कान है
सीना ताने एक एकजुट होकर ये तरु
लक्ष्य के भेदन को देखे आसमान है।।

इत तित देखन में मनोहर लगत है
झुमें ये कलाओं से लगे कलाबाज है
सावन की रिमझिम बूंद पड़ी तन में
भीगते नहाए हुए लगे चमकदार है।।

उपकार कीन्हां वृक्ष धरती पे हरपल
दिन रात जागे ये लगे पहरेदार है
प्राण देते प्राणियों को जीवन हरदम
जीवों को दे दी साँसें प्रिय प्राणधार  है।।

छोटे बड़े तरुवर जब दिखत डुंगरन में
शोभा ऐसी जिनकी चहके आसमान है
बिन मांगे देते हमे मुकरत नही कभी
सेवा ऐसी करते कि लगे सेवादार है।।

नख से सिख तक काम आवे मनुज के
परहित खातिर सारा जीवन निशार है
गंदी साँसें हरते है निर्मल इसे करते है
नही रहने देतें कोई वायु विकार है ।।

सुगंध फूलों से सुबास करे चहुओर
सुन्दरता से श्याम मन भरमात है
इनके रहने से देखो शांति बने मन मे
हरा देखे जग में ये हरि हर नाथ है।।

हर्षे धारा यहाँ बादलों के हिचकोले
धरती पे ये वृक्ष खींचे बरसात है
बिन तरु धरा ऊसर बनी यहाँ
पेड़ भरी धरती पे आती मुस्कान है।।

कवि/ लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा ( म.प्र.)
मोबाइल 9893573770

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