
कविता : गाँव की साँझ
Saturday, 30 October 2021
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साँझ समय एक छोटा गाँव
डोलत जैसे जल में नाव
टिमटिमाती रोशनी में
झिलमिला उठा हर ठाव।
दिन बीता चहल हुई ठण्डी
हवा शीतल और हुई मंदी
साँझ हुई आसमान हुआ लाल
मुस्कान में ज्यों लाल हुए गाल।
साँझ गाँव की बड़ी सुहानी
पश्चिम दिशा मंद मुस्काये
नन्हीं चिड़ियाँ घर को लौटे
नन्हे चूजे मस्ती में इठलाये।
बैलों के गले की घण्टी
मीठी राग सुनाये
गौ धूलि का धुंधला दृश्य,
साफ नजर में आये।
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साँझ गाँव की गर देखों
मन तृप्त हो जाता है
चौपालों पर गपशप सुनकर
मन प्रसन्न हो जाता है।
ताजी-बासी बहुत सी खबरें,
समाचार भी हो जाता फेल
बालक की भागदौड़ में
बनते निराले इनके खेल।
साँझ हुई जब बूढ़े बाबा
लफ़ते ऐसे सुनाए
मनोरंजन की कमी नही
ऐसा मस्त माहौल है भाए ।
………………………………….
लेखक/कवि
श्याम कुमार कोलारे
Surya ast Panjabi mast
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