हर सख्स में एक हुनर होता है ताउम्र जीने के लिए अक्सर कुछ लोग इसे को पहचान लेते है कुछ को हुनर पहचान लेता है ।
ऐसा हरगिज नहीं है कि कमाना ही पड़े लोगो को हुनर! कुछ ऊपर से लेकर आते है कुछ को हालात सिखा जाते है ।
कुछ सीखते ही नहीं कुछ भी उन्हें जबरन सिखाया जाता है हुनर की भट्टी में तपाये जाते है तपिस से कुछ कुंदन हो जाते है।
हुनर तो हुनर है यारो ये बड़ा कमाल कर जाता है ऊसर भूमि में भी हुनर की असली फसल लहलाता है।
कईयों ने हुनर के पीछे अपनी ऊँची शोहरत पाई है देखते ही देखते आसमान की बुलंदिओं की दौलत पाई है।
हुनरमंद की कोई उम्र नहीं हर उम्र में नवाज़ा जाता है इस हुनर के नाम पर अक्सर दुनिया में पहचाना जाता है।
सब देखो, पहचानो, ढूँढ़ों इर्दगिर्द अपने आशियाने में इसके बदौलत नाम मिलेगा इस सुन्दर सा गुलस्ताने में।
अक्सर लोग अपने हुनर को नहीं अहमियत देते है बिना पहचाने अपने को ज़माने में निकल जाते है।
ताकत को न पहचानकर असहाय खुद को मानकर इस कमजोरी से ही खुद अपने गुलाम बन जाते है।
श्याम जग में नहीं कोई ऐसा जो ख़ाली हो हुनर से चींटी से हाथी तक में एक अवश्य हुनर होता है।
अपने हुनर की काबिलियत से कोई स्थान नहीं रीता है इसके दम पर हर शख्स संसार में खुद से जीता है। ---------------------------------- कवी/ लेखक श्याम कुमार कोलारे
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