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 लघु कथा - “गुस्सा मार आगे सुख होय”

लघु कथा - “गुस्सा मार आगे सुख होय”


आनंदपुर नाम का एक शहर था उसमें परमसुख नाम का जौहरी अपनी आठ वर्षीय पुत्री और पत्नी के साथ निवास करता था। एक समय उसका व्यापार में मंदी आ गई, जिससे उसकी माली हालत काफी खराब हो गई। बहुत प्रयास करने के बाद भी परमसुख अपने घर को जैसे-तैसे ही चला पा रहा था। पत्नी से विचार करने के बाद परमसुख ने अन्य शहर जाकर व्यापार करने की बात सोची। परमसुख अगले दिन दूसरे शहर व्यापार करने के लिए चल गया। दूसरा शहर जाकर मेहनत और लगन के साथ अपना व्यापार शुरू किया। धीरे-धीरे समय के बीतते ही परमसुख अपने व्यापार को ठीक-ठाक जमाने में सफल हो गया। इस शहर में व्यापार करते करीब दस वर्ष गुजर गए और यहां पर उसका व्यापार अच्छी तरह चल रहा था। शहर के एक बड़े व्यापारी के नाम से पहचान बना ली थी परमसुख ने। उसने यहां पर काफी धन और इज्जत कमा ली थी। 

अब परमसुख को अपने परिवार की कमी खलने लगी, एक दिन उसने सोचा कि अपने शहर जाकर ही व्यापार शुरू करे और अपने परिवारों के साथ रहे। मन में यह निश्चय कर उसने अपना सारा व्यापार को अपने विश्वासपात्र व्यक्तियों के जिम्मे सौपकर और कुछ धन लेकर आनंदपुर के लिए निकल गया।अपने आने की सूचना उसने पत्नी को पहुंचा दिया। विमला अब अठारह वर्ष की युवती हो गई थी, अपने पिता को पूरे दस वर्षो बाद देखेगी। थी। वह बहुत प्रसन्न हुई और बड़ी बेसब्री से इन्तजार करने लगी। दो दिनों का लंबा सफर के बाद परमसुख अपने शहर आनंदपुर पहुंचा। उसे भूख भी लग गई थी इसलिए वह पास में कोई भोजन करने की जगह ढूंढने लगा। काफी देर खोजने के बाद उसे एक भोजन रशोई दुकान दिखाई दी। वह उस रशोई में अपना सामान रखकर भोजन खाने बैठ गया। भोजन के बाद उसने अपना सामान उठाया और अपने घर के लिए चल पड़ा। भूलबस जिस थैली में उसने कीमती हीरे जवाहरात,रत्न रखा था वह अपने रशोई दूकान में भूल आया।

आगे आने के बाद परमसुख को भान हुआ कि कीमती हीरे जेवरात की थैली उसके पास नहीं है। उसने बहुत ढूंढने की कोशिश की पर उसको थैली नहीं मिली, उसने थैली को हर जगह ढूंडा, थैली कंही नजर नहीं आई।अब बहुत परेशान होकर निराश मन से अपने घर की ओर जाने लगा।आगे निकलने पर एक गली के कोने में एक भूखा बूढ़ा आदमी ने परमसुख से भोजन लिए आग्रह किया। क्योंकि परमसुख को अपने घर जाने की आतुरता थी इसलिए उसने बूढ़े पर कोई ध्यान ना देखते हुए आगे बढ़ रहा था। बूढ़ा उसके पीछे हो लिया और बार-बार उसे भोजन के लिए गुहार करने लगा। बाबा के इस व्यवहार से परमसुख को बहुत ज्यादा गुस्सा आया और वह बाबा को भला बुरा कह कर उसे भगाने की कोशिश करने लगा। व्यापारी परमसुख के इस गुस्से को देखकर बूढ़ा बाबा ने उसे कहा बेटा मुझे दिन भर से अनाज का एक दाना भी नहीं मिला है, आपको सक्षम देख भोजन की गुहार कर रहा हूँ इतना  गुस्सा ना करो! और एक बात अपनी गांठ बांध लो ये बड़ी काम आएगी ; तुम्हारा भला होगा -  “गुस्सा मार आगे सुख होय” । 

बाबा की इस बात को सुनकर परमसुख का गुस्सा एकदम शांत हो गया और उसने सोचा कि मैं इतना बड़ा व्यापारी होने के बाद भी एक गरीब, असहाय बूढ़ा की भूख शांत नहीं कर सकता तो मेरा इतना धनवान होना व्यर्थ है। परमसुख ने बाबा भोजन खिलवाने के लिए वही स्थान ले गया जहां उसने पहले भोजन किया था । बाबा को भोजन के लिए बिठाकर पैसा देने के लिए दुकान के मालिक के पास जाता है, दुकान मालिक उसे तुरंत पहचानते बोला- महोदय! मैं बहुत देर से आपकी राह देख रहा हूँ; आइए आपका सामान रखा हुआ है। दुकानदार की बात सुनकर परमसुख असमंजस में पड़ गया कि मेरा कौन सा सामान दुकानदार के पास है!  दुकानदार थैली देते हुए बोला महोदय! आपने यह थैली यहां छोड़ कर चले गए थे,मुझे विश्वास था कि आप इसे ढूंढते हुए यहां पर अवश्य आएंगे; इसलिए मैंने इसे सुरक्षित रखवा दिया था। लीजिए! आपकी थैली।

अब उसे बाबा की बात याद आई “गुस्सा मार आगे सुख होय” उसने अपने गुस्से पर काबू करके और बाबा को भोजन कराने की लाया इसी कारण उसका खोया हुआ धन उसे वापस मिल गया। उसने बाबा को धन्यवाद दिया और अपने घर के लिए चल दिया। धन की थैली ढूंढने में परमसुख को काफी समय हो गया था इसलिए वहां घर पहुंचने में काफी देरी से पहुंचा ।

इधर परमसुख की पत्नी और उसकी बेटी विमला बहुत देर से राह देख रही थी, काफी समय हो गया था उन्होंने सोचा कि हो सकता है किसी कारणवश नहीं आ पाए हैं शायद कल सुबह आएंगे यह मानकर,विमला अपनी मां के साथ सो गई।

परमसुख घर आने के बाद अपने शयन कक्ष में पहुँचा, उसने देखा कि उसकी पत्नी के साथ कोई सोया हुआ है; वह शंका में गुस्सा से भर गया और पास रखे खंजर से उसकी पत्नी पर वार करने वाला था कि उसे बूढ़े की बात याद आ गई - “गुस्सा मार आगे सुख होय” और वह रुक गया। आहट पाकर उसकी पत्नी की नींद खुल गई और वह बोली स्वामी आप आ गए, आपने आवाज नहीं लगाया, हमारी नींद लग गई थी। मां की आवाज सुनकर उसकी बेटी भी जाग गई और उसने अपने पिताजी को प्रणाम किया, पिताजी आपकी राह देखते-देखते हमारी आंख लग गई थी। परमसुख पत्नी और बेटी को गले लगता है उसके आँखों से पश्चाताप के अश्रु बहने लगते है। उसको मन ही मन ग्लानि होती है और सोचता है कि मैंने बगैर सोचे समझे अपनी पत्नी पर शक किया और गुस्से से अपनी स्वयं की बुद्धि भ्रष्ट कर लिया। यदि बूढ़े की बात उसको याद नहीं आती तो वह अपने हाथों से ही अपने परिवार का अंत कर देता। 

जब बहुत तीव्र गुस्सा आता है तो हमें कुछ क्षण रुककर जाना चाहिए, गुस्से और जल्दबाजी में कोई काम नहीं करना चाहिए नहीं तो बाद में पछताना ही हाथ लगता है - “गुस्सा मार आगे सुख होय”। 


लेखक 

श्याम कुमार कोलारे 

सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाडा (म.प्र.)

मोबाइल- 9893573770


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