कविता- बेटियाँ
बचपन से प्यार दुलार में,पली बढ़ी मैं बेटी हूँ
बाबा की आँखों का तारा,बनकर मैं रहती हूँ।
नित नया जीवन में , उड़ान भर कर आई हूँ
बाबा तेरे भरोसा में,अपनी दुनियाँ सजाई हूँ।
तेरी बगान की चिड़ियाँ, नीड यहाँ मैं पाई हूँ।
तेरे प्यार स्नेह से बाबा, दुनिया मैं बसाई हूँ।
मेरे जीवन की सांसे , बस तुझसे ही चलती है
मेरी एक मुस्कान , तेरी खुशी जीवंत होती है।
जब हुई मैं पैदा हुई जग में, खूब लड्डू बांटे थे
बधाई के पुल बांधने,परिजन दूर-दूर से आते थे।
नहीं माना तूने मुझको , किसी बेटा से भी कम
मुझको देते रहे सदा ,दुनिया से जीतने का दम।
बस एक अवशर मिले तो, नभ को मैं छू जाऊंगी
मैं बेटी देश के खातिर, प्राण शक्ति बन जाऊंगी।
सोन चिड़ैया बन जंगको उज्वल मैं कर जाऊंगी
बस बाबा मौका दे दो, सुंदर सृजन कर जाऊंगी।
आज मैं सक्षम बनके बाबा, कुछ कर दिखाउंगी
दुनिया करेगी तुझपर नाज, वो कर कर जाऊँगी।
शिक्षक डॉक्टर अभियंता बनकर मान बढ़ाऊंगी
ऊँचे गगन पर तेरे नाम का परचम मैं फैलाऊंगी।
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लेखक/ कवि
*श्याम कुमार कोलारे*
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
मोबाइल 9893573770
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