लघु कथा – गाँव का मड़ई मेला
दीपावली की छुट्टी में, मैं “मिश्री” अपने मम्मी-पापा के साथ दीपावली मनाने के लिए दादा-दादी के घर छिंदवाड़ा जाने के लिए बहुत उत्साहित थी। हम मम्मी-पापा के साथ भोपाल में रहते थे; अपने दादा के घर तीज त्यौहार एवं कोई अनुष्ठान में जाने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे। इस बार दीपावली में अपने दादा-दादी के घर जाने का बड़ा उत्साह था। एक सप्ताह से वहां दीपावली में घर जाने की तैयारी कर रही थी। उत्सुकता में सप्ताह कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। शाम को अपने मम्मी-पापा के साथ ट्रेन में बैठ कर अपने दादा-दादी के घर चली।
गाँव में पहुचते ही घर पर रिया,जिया, ओपम, काजल सभी सहेली एवं उनके छोटे दोस्त ने उनका बहुत अच्छे से स्वागत किया जो बहुत पहले से ही मेरे के आने की रह देख रहे थे। दोस्तों को पहले से ही पता था कि मिश्री गांव आ रही है, दिन भर दोस्त मेरे का राह देखते रहे; जब मम्मी-पापा के साथ मैं शाम को अपने घर पहुंची तो सभी दोस्त खुश हो गए , मैं घर ना जाकर अपने दोस्तों से मिलने चली गई। दोस्तों का और मेरा खुशी का ठिकाना नहीं रहा। घर ना जाकर मैं खेलने में लग गई; एक घंटे खेलने, और ढेर सारी बाते करने के बाद घर आई । मम्मी-पापा और दादा दादी को पता था कि बुलाने पर भी मिश्री नहीं आएगी, इसलिए उन्होंने खेलने के लिए नहीं रोका। मैं बहुत उत्साहित थी; बहुत दिनों बाद अपने बचपन के दोस्तों के साथ मिलना खेलना, हंसना, इठलाने का मौका मिला था।
दीपावली के दो दिन पहले आने के कारण दीपावली की सारी तैयारी में भी मम्मी-पापा और दादा-दादी का हाथ बटाया। घर में मिठाई बनाई गई थी। दीपावली के दिन सभी ने नए कपड़े पहने; चाचा के लाए हुए पटाखे को देख मन पटाखे फोड़ने के लिए ललाईत हो रहा था। मैंने दादा को बोला – “दादाजी” जल्दी से पूजा कर दीजिए। फिर मैं पटाखे जलाऊँगी। दादा ने सभी परिवार के साथ मां लक्ष्मी का पूजन किया। मिश्री ने चाचा के साथ पटाखे, फुलझड़ी जलाई उसका मन तो जैसे गगन को छू रहा था। दूसरे दिन गोवर्धन पूजन, गो-पूजन का दिन था। इस दिन गोवर्धन पूजा के लिए घर में अलग प्रकार के पकवान बने थे। इन पकवानों को खाकर मन में एक अलग उमंग थी और मन में चल रहा था कि गांव में कितनी अच्छी से दीपावली मनाई जाती है, मैं हर साल दादा-दादी के घर पर आकर दीपावली मनाऊंगी।
"उसके अगले दिन भाई दूज का त्यौहार आया, घर पर बुआजी भाईदूज मनाने आई, साथ में भाई अक्कू भी आया था। सबसे मिलकर बहुत अच्छा लगा । भाई के साथ मिलकर खेलना एवं खाना उसका एक अलग अनुभव था।"
अब मम्मी को भी मेरे मामाजी के घर पर भाईदूज मनाने जाना था, इस कारण मम्मी-पापा मैं और मेरी छोटी बहन को मामाजी के यहां निकलना था, पर मेरा बिल्कुल भी जाने का मन नहीं कर रहा था, क्योंकि दूसरे दिन गांव का मड़ई मेला था,मड़ई मेला देखने का बड़ा उत्साह था। दोस्तों ने बताए रखा था कि मड़ई मेला में बहुत धूम होती हैं; कई प्रकार की मिठाई, खिलौने, बहुत सारे लोग, गुब्बारे, अहीरी नृत्य देखकर मन खुश हो जाता है। मैने अभी तक गांव का मड़ई मेला नहीं देखी थी इसलिए गांव का मडई मेला देखने का उसे बड़ी उत्सुक थी, इस अवसर को किसी भी हालत में नहीं छोड़ना चाहती थी, इसलिए उसने मम्मी-पापा से मामाजी के घर ना जाने के लिए जिद की। मम्मी-पापा के बहुत मनाने के बाद भी नहीं मानी और दादा-दादी के घर रुक गई। चाचाजी को मनाई कि मैं चाचाजी के साथ मामाजी के घर आ जाऊंगी और फिर वहां से हम भोपाल जाएंगे । चाचाजी भी राजी हो गए उन्होंने पापा से बोला कि मिश्री को मड़ई मेला दिखाने के दूसरे दिन मामाजी के यहां छोड़ दूंगा; फिर आप मिश्री को लेकर भोपाल चले जाना । पापाजी तैयार हो गए और मुझे छोड़कर छोटी बहन अरना और मम्मी को लेकर मामाजी के यहां भाईदूज के लिए चले गए।
दूसरे दिन मैं, चाचा, बुआ, दादा-दादी, भाई के साथ गांव के मड़ई मेला देखने गये । चारों तरफ बहुत सारी दुकानें लगी हुई थी, खिलौनों की दुकान, गुब्बारे की दुकान,मिठाइयों की दुकान, सिंघाड़ा, पानी पुरी, कपड़े, श्रृंगार का सामान आदि की बहुत सारी दुकानें देख कर मन प्रसन्न हो गया । मेरे दोस्त मेरे साथ थे, हमने खूब मेला घूमा, मिठाईयां ली, सिंगाड़े, गुब्बारे, खिलौने लिए और दोस्तों के साथ घर आ गए।
गांव का मड़ई मेला देखने का आज जितना उत्साह और उमंग था, मेला देखने के बाद यह उत्साह दोगुना हो गया था । बड़ा ही सुखद अनुभव था मड़ई मेले का। मैं इसे कभी नहीं भुला पाऊंगी । मेले में दादा-दादी, चाचा, बुआ एवं दोस्तों के साथ घूमना भी एक अपने आप में बहुत सुखद अनुभव था। दीपावली में सभी के साथ मिलकर रहना उनसे बातें करना और गांव का मेला देखना बड़ा ही आनंदमय अनुभव था । दूसरे दिन पापा मुझे लेने गाँव आये एवं मैं पापा जी के साथ मामाजी के घर होते हुए भोपाल वापिस आ गए ।
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