कविता - सच्चा सुख
जीवन का सच्चा सुख ,स्वस्थ शरीर निरोगी काया
चहल-पहल बच्चों की घर मे,मात-पिता का सदा रहे साया।
नित्य काम मिले हाथ को,थकान का हल्का अनुभव हो
परिश्रम के सुखद बूँद का, तन में थोड़ा संचय हो।
मेहनत की रोटी से हरदम , नित्य नसों में शक्ति हो
थकान की मंद तकिया से ,नींद का मधुर परचम हो।
ईमानदारी और वफ़ादारी, जीवन के दो पग हो
कर्ज न रहे ढेलाभर का , मन में चिंता न भारी हो।
ज्ञान का चित में बासा,धन-दौलत सब कर के मैल
जरूरत से ज्यादा न संचय,ये सब माया-मोह का खेल।
छोटा सा घर हो अपना, स्वच्छ आँगन की मुस्कान
स्वस्नेही के पद पड़े दर, साधु के लिए मन मे स्थान।
परहित कर खुले रहे, न किसी से कोई बैर
सच्चा सुख गर पाना है तो, नित्य सवेरे की कुछ सैर।
मान अपना हो बीता भर भी, काम के काजे हो पहचान
हर दिल मे राज करें , अपना भी हो ऊँचा नाम।
सच्चा सुख मिले 'श्याम' सब, मिलजुल रहे कुटुम्ब परिवार
सुख-दुख में बराबर के साथी,आशीर्वाद हो सब पर करतार।
लेखक/ कवि
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770
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