कविता-वक्त का पहिया
Monday 6 December 2021
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रुके नहीं यह रोका जाए
असफल हुए वह ज्ञानी जानी
वक्त को छोड़े पीछे जाए।
ज्ञानी जन और ध्यानी जन सब
रखते इसका ध्यान
जो वक्त का पोषण करता
वह बनाता है महान।
आज सुन लो भैया-भाभी
और छोटे बच्चे और जवान
वक्त की तुम कदर करें तो
सफल हुए है मय संतान।
वक्त का पहिया चलता जाए
वक्त को मानो यू उड़ता जाए
वक्त की धारा चलती जाए
जीवन इसका बढ़ता जाए।
वक्त की सुई ज्ञान डोरा
सर्जन नया रोज सवेरा
जो जन करते वक्त का ध्यान
वक्त दिलाता उसे सम्मान।
वक्त-वक्त की बात है भैया
इसका पहिया चलता जाए
कभी सुख में कभी दुख में
सीधा उल्टा भाग आ जाए ।
वक्त तो पानी का बुलबुला
फूक लगे तो फूटा जाए
कोई नही पकड़ पाया इसको
यह वक्त तो है चलता जाए।
माना कि यह हाथ नहीं है
फिर भी सबके साथ हो जाए
वक्त जरूरत सब की है
जो माना वो बढ़ता जाए।
लेखक
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770
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