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एक अनजाना निश्छल प्रेम

एक अनजाना निश्छल प्रेम


सुबह पापा ने जगाया मिश्री उठ जाओ घूमने नही चलना है क्या? आवाज सुनकर मेरी छोटी बहन अरना भी उठ गई,  और बोली - पापा मुझे भी चलना है आपके साथ घूमने के लिए। मुझे सुबह घूमना बहुत अच्छा लगता है पापा; आप मुझे क्यों नहीं ले जाते हो! मम्मी बोली- बेटी सुबह बहुत ठंड होती है; छोटे बच्चों को ठंड लगती है इसलिए आप मत जाओ आज घूमने। अरना बोली - नहीं मम्मी मुझे पापा के साथ जाना है घूमने के लिए!  मैं गर्म कपड़े पहन कर, स्वेटर पहन कर चली जाऊंगी; अरना ने जिद किया। मां ने हामी भरी और गर्म कपड़े पहना कर पापा के साथ घूमने के लिए भेज दिया। रास्ते में उनको अखिलेश अंकल उनकी बेटी रिया दीदी महेंद्र अंकल मिले; हम सभी साथ घूमने के लिए चल दिए।

घर से थोड़ी ही दूर निकले ही थे कि रास्ते में हमें एक छोटा सा कुत्ता का बच्चा दिखाई दिया। वहां पत्थर की ओट में दुबके हुए बैठा था। हमारी कदमों की आवाज सुनकर वह तुरंत उठकर हमारे पीछे-पीछे चलने लगा। मैं थोड़ा डर गई कि कुत्ता मेरे पीछे आ रहा है मुझे काट लेगा। पर नहीं नही! वह धीरे-धीरे हमारे पीछे चलने लगा। हमने उसे भगाने की कोशिश भी की पर वह ही नहीं भागा। हम जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते थे कुत्ता का बच्चा हमारे पीछे-पीछे आते जा रहा था। उसे देखकर जाने क्यों उसके प्रति हमारे मन में प्यार उमड़ आया और हमने उसे अपने साथ चलने दिया। थोड़ी देर बाद मैदान पर आ गए, वह भी हमारे साथ था। हम मैदान पर दौड़ लगाने लगे वह भी हमारे साथ पीछे-पीछे दौड़ लगाने लगा हम घूमने लगे वह भी हमारे साथ घूमने लगा हम खेल रहे थे वह भी हमारे साथ खेलने लगा। हमें उसके साथ खेलना बहुत अच्छा लगने लगा फिर अरना, रिया दीदी और मैंने हम तीनों ने सोचकर उसका नाम राजू रखा। राजू नाम से हम उसको बुलाने लगे वह भी पता नहीं क्यों राजू नाम से खुश नजर आने लगा। और जब हम राजू नाम से उसको बुलाते हैं तो वह है हमारी ओर ध्यान देते हुए हमारी बात को सुनता, हम उनके साथ बहुत देर तक खेलते रहे। पर हमें ऐसा लग रहा था कि वह ठंड से ठिठुर रहा है, हमने मैदान से कपड़ा लाया और उसको ढकने की कोशिश की पत्थरों की ओट में उसको रखा और उसको ढका ताकि उसको ठंडा न लगे। परन्तु वह जैसे हमारे साथ ही रहना व खेलना चाह रहा था।
पापा, अखिलेश अंकल और महेंद्र अंकल सभी दौड़ लगा रहे थे, योगा और व्यायाम में व्यस्त थे उन्होंने हमें राजू के साथ देखा तो उन्होंने सोचा कि यह बच्चे इस कुत्ते के साथ क्या कर रहे है। उन्होंने हमें रोका ओर कहा कि रहा कि कुत्ते के साथ ना खेलो वह आप को काट सकता हैं। हमने बोला- यह हमारा दोस्त बन गया है, यह हमारे साथ खेल रहा है। हम इसको घर ले जाएंगे और इसकी देखभाल करेंगे। बच्चों का इस अनजान जानवर के प्रति प्रेम देखकर पापा और अंकल मुस्कुराते हुए बोले ठीक है, इसे घर ले चलो और इसे खिलाने-पिलाने की व्यवस्था करो, इसके लिए कपड़े भी बनाना ठंड से बचने के लिए। हमने हामी भरी, हम बहुत अच्चा लग रहा था।थोड़ी देर बाद हम मैदान से लौटने लगे, वह भी हमारे पीछे-पीछे आने लगा।
हम बहुत खुश थे हमारे मन में बहुत सारे उमंगे दौड़ रही थी कि हम इसको घर ले जाएंगे, इसके साथ खेलेंगे यह हमारा एक नया दोस्त बन गया था। रास्ते में आते-आते हम आगे आगे चल रहे थे और राजू पीछे-पीछे चल रहा था। ना जाने कहां राजू चला गया हमारी आंखों से ओझल हो गया, हमारी आंखें उसे खोजती रही पर उसका कहीं अता-पता नहीं था। हमने उसे ढूढ़ने की कोशिश की परन्तु वह हमें नही मिला। निरास होकर हम घर लौट आये। थोडी देर के साथ ने न जाने क्यों इसके प्रति इतना लगाओ हमारे हृदय में भर दिया था कि उसकी यादें अभी तक हमारे दिमाग से निकल ही नही पा रही हैं। उसके साथ बिताए हुए सुखद पल की याद कर हम बार-बार उसको याद करते हैं कि कास राजू हमारे साथ होता और हम उसके साथ खेलते।

लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा(म.प्र.)
मोबाइल 9893573770

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