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कविता- निग़ाहें करती बातें

कविता- निग़ाहें करती बातें

बिन कहे भी मन के भेद, भावों से बाहर लाती है
सुख में बने दरिया सी, दुःख में कम हो जाती है
शान्ति में ये शांत हो जाये, गम में नम हो जाती है
निगाहें है! ये बिन कहे, सब कुछ कह जाती है।

शरम से ये झुकती नीचे, शान से ऊपर जाती है
गुस्सा में हो लाल ऐसे, सीधी भृकुटि तन जाती है
घोर वेदना से ये भीगे, सुर्ख नम हो जाती है 
निगाहें है! ये बिन कहे, सब कुछ कह जाती है। 

प्यार की भाषा ये समझती,निगाहेंचार हो जाती है
अन्तर्मन की खींज ये जैसे,  बाहर लेकर आती है
निगाहें भी है बाते करती, इनकी भी भाषा होती है
निगाहें है ! ये बिन कहे, सब कुछ कह जाती है।

मन मे आशा हो या निराशा सीधी से कह जाती है
प्यार भरी निगाहें तो सीधे, दिल मे घर कर जाती है
निगाहें से कई घायल हुए , सीधे बार कर जाती है
निगाहें है! ये बिन कहे, सब कुछ कह जाती है।

लेखक/ कवि
श्याम कुमार "कोलारे"
चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770

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