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कविता - बदल रहा है मेरा शहर

कविता - बदल रहा है मेरा शहर

//बदल रहा है मेरा शहर//

पुरानी पहचान खो रहा शहर
नया रंग बदल रहा है मेरा शहर 
सड़कें चौड़ी सीधी कुछ टेढ़ी
बदल रही यहाँ की बोली,
सुनी थी कभी गलियां उसमे 
अब चहल बढ़ा रहे है लोग
कैसा चहक रहा शहर 
बदल रहा है मेरा शहर।

सूनें हुए अब गांव के गलियारे 
सूनी हुई है हर पगडंडी 
होली दीपावली फीकी हो रही
महंगी हो गई है हर मंडी
हर जगह महँगाई का जहर
बदल रहा मेरा शहर।

महलों की भी बदली फिजायें
झोपड़ियों की खुशियाँ हुई नम
फूलों की महक बदली है
भवरों की टोली हुई बेसुध
पवन झरोखे मैले हो गए 
अरमानों के बादल गए सूख
धन की बसारत में भी सूखे
नही मिटती है इसकी भूख
कैसा बरस रहा है कहर
देखो बदल रहा है मेरा शहर।

घर की छाया हुई अब फीकी
बदल रहे हैं बड़े महल 
बड़े-बूढ़ों की सीख भी बदली 
कहानी के पात्र भी नकली
सुंदर जीवन दाव नया है
खेवैया नया पर नाव पुरानी
बड़े मजें थे किस्से कहानी
बदल गई सब यहाँ फिजायें
यहाँ पर ये अनजान लहर
बदल रहा है मेरा शहर ।

हर सुविधाओं की दुकानें 
पक्के हो गए सब मकाने 
कच्ची झोपड़ी और टपरिया 
खूब तपे है हर दुपहिया
साँझ की रोशनी में नही ठंडक
शशि की कांति में न शीतल
कहाँ चली गई यहाँ मेहर
बदल रहा है मेरा शहर ।
 
शिक्षा-दीक्षा के अलग हुए ढंग
शहरों के कपड़े हुए तंग
अब तो दूर हुए जगदीश 
आदर में भी न झुके है शीश 
माँ की मुट्ठी हुई अब ढीली 
बच्चों की आंख हुई है गीली 
जज़्बात की कम की डहर
बदल रहा है मेरा शहर।

फिजाओं में खुशबू हुई सूनी 
आस पलकों की अब हुई ढीली 
हर गलियारा अब सूना लागे 
शहर की चहल मोहे ना भावे 
यहाँ लम्बा हुआ पहर
बदल रहा है मेरा शहर।



लेखक
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश)
मोबाइल 9893573770

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