-->
चाय (tea)

चाय (tea)

चाय (tea)



उठते ही सुबहों तलबगार तेरे
हजार दिल में बसी है चाह तेरे।

घर में आए कोई मेहमान कभी
लुफ्त उठा दिल में लेते चाहे तेरे।

खिले शिकवे भुला देती बैठक में
बसे दिल की धड़कन में चाहे तेरे।

होटलों महफिल घरों की टेबल में,
बस सजी नजाकत देखते चाहें तेरे।

घर में मेहमां आ जाता कोई कभी
दर्श पा खुश मादक सुकूं चाहे तेरे।

सब के दिलों में तेरा राज बसता है
चाहत बनी रहती दिल में चाहे तेरे।

ठंड का जुनून हो या गर्म के मौसम
रूप यौवन तरोताजा दिल चाहे तेरे।

तू कभी काली या खाकी बनी भूरी
दिलों में चले छूरियां कत्ल चाह तेरे।

मिले तो दिल में बजी अनेक घंटियां
रूपसी रसगंध कशिश भरे चाह तेरे।

कभी पट गिरी तो दाग छोड़ती भरी
तू बड़ी बदनाम करें बेशक चाह तेरे।

जिह्वा तालु जला देती कभी कभार
कमी नहीं तलबगारें हजार चाह तेरे।

पी ली घूंट भर तो मिले बस  सुकून
हजार शुक्रिया तेरी बहार चाह तेरे।

तेरी चाहत के दीवाने लोग जहां के
बूढ़ों को जवां बना ताजगी चाह तेरे।

सारी दौलत निसार दूं तेरी चाहत में
सुबह शां बज़्म सजे हजार चाय तेरे।

लेखन 
के एल महोबिया
अमरकंटक अनूपपुर मध्यप्रदेश

0 Response to "चाय (tea)"

Post a Comment

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article