हर क्षेत्र में महिलाओं के बढ़ते कदम, महिलाओं की भूमिका से नया स्वरुप में निखरता भारत
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष लेख : हर क्षेत्र में महिलाओं के बढ़ते कदम, महिलाओं की भूमिका से नया स्वरुप में निखरता भारत
प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक भारत में महिलाओं की भूमिका का इतिहास काफी गतिशील रहा है। दूसरे शब्दों में, समय के साथ महिलाओं की भूमिकाओं ने कई बड़े बदलावों का सामना किया है। एक समय था जब भारतीय महिलाओं की भूमिका सिर्फ घर की चारदीवारी तक सीमित थी, वहीं आज उनकी भूमिकाओं ने घर की चारदीवारी को तोड़ते हुए उन्हें अंतरिक्ष में पहुँचा दिया है। पिछले कुछ सालों में महिलाएँ कई क्षेत्रों में आगे आयी हैं। उनमें नया आत्मविश्वास पैदा हुआ है और वे अब हर काम को चुनौती के रूप में स्वीकार करने लगी हैं। अब महिलाएँ सिर्फ चूल्हे-चौके तक ही सीमित नहीं रह गई हैं या फिर नर्स, एयर होस्टेस या रिसेप्शनिस्ट ही नहीं रह गई हैं बल्कि उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा दी है। अब हर वैसा क्षेत्र जहाँ पहले केवल पुरुषों का ही वर्चस्व था, वहाँ स्त्रियों को काम करते देखकर हमें आश्चर्य नहीं होता है। महिलाओं को काम करते देखना हमारे लिए अब आम बात हो गई है। महिलाओं में इतना आत्मविश्वास पैदा हो गया है कि वे अब किसी भी विषय पर बेझिझक बात करती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अब कोई भी क्षेत्र महिलाओं से अछूता नहीं रहा है।
भारतीय समाज आज कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, शबाना आज़मी, भक्ति शर्मा, अरुणिमा सिन्हा, साइना नेहवाल, पूजा ठाकुर, रश्मि बंसल, तानिया सचदेव इत्यादि जैसी आज के भारत की असाधारण महिलाओं को लेकर गौरवान्वित महसूस करता है। निश्चित ही एक ऐसे समाज में जहाँ एक समय महिला का शिक्षित होना आश्चर्य की दृष्टि से देखा जाता था, यह आश्चर्य जैसा ही प्रतीत होता है कि आज विद्यालयों में शिक्षा देने का अधिकांश दायित्व महिलाएँ ही उठा रही हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त कर मह्दविद्यालयों में प्राष्यापक होने वाली महिलाओं की संख्या भी कम नहीं है। महिलाओं ने व्यक्तिगत स्तर पर जो यह उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं, उसने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है और आज महिलाएँ कई क्षेत्रों में पुरूषों की तुलना में बेहतर कार्य करने वाली मानी जाती है। इन सभी उपलब्धियों के अलावा आज महिलाओं के सामने अनेक ऐसे अवसर उपलब्ध हैं जो एक समय उनके लिए स्वप्न जैसे थे। एक समय की वह गहरी अंधेरी सुरंग आज अवसरों, उपलब्धियों और समानता के प्रकाश की ओर ले जाने वाली राह बन गई है। भारत में महिलाओं का भविष्य उज्जवल और सुरक्षित प्रतीत होता है और उनकी भूमिका पत्नी, माँ, पुत्री तक ही सीमित न रहकर बहुत विस्तृत हो गई है।
राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति (2001) के अनुसार महिलाओं का सामाजिक सशक्तीकरण में महिलाओं और लड़िकयों के लिए शिक्षा तक समान पहुँच सुनिश्चित किया जाएगा किया गया है । भेदभाव मिटाने, शिक्षा को जन-जन तक पहुंचाने, निरक्षरता को दूर करने, लिंग संवेदी शिक्षा पद्धति बनाने, लड़कियों के नामांकन और अवधारण की दरों में वृद्धि करने तथा महिलाओं द्वारा रोजगार/व्यावसायिक/तकनीकी कौशलों के साथ-साथ जीवन पर्यन्त शिक्षण को सुलभ बनाने के लिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विशेष उपाय किए जाएंगे। माध्यमिक और उच्च शिक्षा में लिंग भेद को कम करने की ओर ध्यानाकर्षित किया जाएगा। लड़कियों और महिलाओं, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों/अन्य पिछड़ा वर्गों/अल्पसंख्यकों समेत कमजोर वर्गों की लड़कियों और महिलाओं पर विशेष ध्यानाकर्षित करते हुए मौजूदा नीतियों में समय संबंधी सेक्टोरल लक्ष्यों को प्राप्त किया जाएगा। लिंग भेद के मुख्य कारणों में एक के रूप में लैंगिक रूढि़बद्धता का समाधान करने के लिए शिक्षा पद्धति के सभी स्तरों पर लिंग संवेदी कार्यक्रम विकसित किए जाएंगे। इस नीतिओं से महिलाएँ आज अपने आपको सक्षम कर उन्नति के नए परचम लहराने में पुरषों से कम नहीं है ।
आज का समय ऐसा समय है जिसमें महिलाओं को संविधान में कई अधिकार दिए गए हैं। आज महिलाएं इस विकासशील भारत में विकसित बनाने के लिए अपना योगदान देती है परंतु फिर भी उन्हें कई बार अलग-अलग रूपों में प्रताड़ित किया जाता है तथा उनके अधिकारों का हनन किया जाता है। आज हर साल किसी भी परीक्षा में महिलाएं समान रूप से शामिल होती हैं तथा पुरुषों से अधिक अंक भी लातीं हैं। परंतु कहीं ना कहीं यह भी सच है कि पैतृक सत्ता समाज होने के कारण पुरुषों को ही मान सम्मान दिया जाता है तथा आज भी कई ऐसे प्रांत हैं जहां बेटियों के होने पर निराशा जाहिर की जाती है। परन्तु आज के समाज में यह सोच ओछी मानी जाने लगी है । महिलाओं के शौर्य और कौशल ने ये साबित कर दिया है की महिलाये पुरुषों के कम नहीं है ।
परन्तु इस बात को नहीं दवाया जा सकता कि महिलायों को अभी भी अपने अस्तित्व से लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है । समय के अनुसार सोच बदल रही है, लेकिन इसकी गति बहुत ही धीमी है । इसके लिए महिलाओं को अपने मूल अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा, तभी महिलाएं अपने अस्तित्व एवं अधिकार की लडाई लड़ सकती है । महिला सशक्त बनाने की दिशा में पहला कदम उनकी राय का समर्थन करने से शुरू होता है। उनको नए अवसर प्रदान कर मनोबल बढ़ाकर उनका प्रगति का मार्ग शसक्त कर सकते है, उनकी सफलता और असफलता का उपहास न करें या उनकी राय उन्ही तक दफन न करें। उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएं और उनके आत्म-सम्मान का निर्माण करें। उन्हें अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें, मदद के लिए संसाधन प्रदान करें और उनके गुरु बनें। महिलाओं में अपने जीवन को आकार देने की नहीं बल्कि दुनिया को आकार देने की क्षमता है। महिला सशक्तिकरण के साथ शुरू करने के लिए समान अवसर और अपने निर्णय लेने का अधिकार मूल बातें हैं। मदद के लिए संसाधन प्रदान करें और उनके गुरु बनें। महिलाओं में अपने जीवन को आकार देने की नहीं बल्कि दुनिया को आकार देने की क्षमता है। महिलाओं में अपने जीवन को आकार देने की नहीं बल्कि दुनिया को आकार देने की क्षमता है, इसके लिए उन्हें उचित संसाधन एवं अवसर देने की जरुरत है। महिलाये अपने आप को साबित करने से नहीं चुकेगी ।
भारत के ग्रामीण एवं दूरस्त इलाकों में आज भी महिलयें उनके शिक्षा के अधिकार से वंचित है। शिक्षा महिलाओं की कई कुरीतियाँ एवं परम्पराओं के प्रचलन को कम करने में एक कारगर अस्त्र के सामान कार्य करेगी । सरकार ने महिलाओं की शिक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए वर्षों से कई योजनाएं शुरू की हैं जैसे- सर्व शिक्षा अभियान, ऑपरेशन ब्लैक-बोर्ड, बेटी पढाओ- बेटी बचाओ, और बहुत कुछ । शिक्षा महिलाओं को अच्छे और बुरे की पहचान करने, उनके दृष्टिकोण, सोचने के तरीके और चीजों को संभालने के तरीके को बदलने में मदद करती है। शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने में मदद करती है। अन्य देशों की तुलना में भारतीय महिलाओं की साक्षरता दर सबसे कम है। शिक्षा सभी का मौलिक अधिकार है और किसी को भी शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। शिक्षा जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती है, घरेलू हिंसा या यौन उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने का आत्मविश्वास। बदलाव का हिस्सा बनें और शिक्षा की मदद से एक महिला को सशक्त बनाएं।
लेखक : श्याम कुमार कोलारे
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