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कविता- नन्हा दीपक

कविता- नन्हा दीपक


नन्हा दीपक जलता है, अग्नि बाती तेल सहारे
दीपक तेल बाती मिल, सब उजयारे फैलाते
पावक नही खुद में, पर पावक को ठहराते
इससे पावक ज्यों जुड़े ,ये चमक दिखलाते।

जीवन है खुद जलकर, प्रकाश दूसरों को देना
परहित में है सर जीवन, ऊष्मा को है सहना
दीप्त हुआ ये नन्हा दीपक, जग उजाला लाता
सबको दे प्रकाश ये, स्वयंके तले अंधेरा पाता।

नन्हा दीपक जैसा जीवन, जलते ही रह जाना
जीवन है तेल जैसी, साँसे बाती बन जाना
ज्ञान प्रकाश से जीवन दमके, ऐसी सौहरत पाता
दिया भले ही नन्हा सा है, घोर अँधेरा हर जाता।

श्याम अंधेरा जीवन मे है, दीपक जैसे बन जाना
दिन में भानू रात शशि सा, दीप्तमान हो जाना 
अंतिम साँसे तक जलने के, संघर्ष इससे सीखा
ख़ुद जलकर प्रकाश दे जाए, शिक्षा दे अनोखा।

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लेखक
श्याम कुमार कोलारे


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