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 //अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस विशेष//  कविता- मजदूर

//अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस विशेष// कविता- मजदूर

 //अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस विशेष//


कविता- मजदूर

साधारण सी सख्सियत,शक्ति से भरपूर हूँ
      नया निर्माण है जीवन मेरा,मैं धरा का सूर हूँ
            हाँ मैं मजदूर हूं , अपनी मेहनत में चूर हूँ
                 जमीन मेरा आसियाना, मैं इसका नूर हूँ।1।

कारखाने का कलपुर्जा, मशीनों का बल हूँ
     नए निर्माण मुझसे ही, मैं मेहनत कश दल हूँ
       ऊँची-ऊँची गगनचुंबी,अटारी मेरे दम पर है
         सींच पसीना इसमें , मेरी सांसों की चमक है।2।

मैंने अपने जीवन मे बहुत प्रासाद बनाये है
     मैंने ही कई ऊंचे ऊंचे के कंगूरे चमकाये है
         अपने कर की रेखा से,  कई सेतु बनाये है
             रात को दिन करने नए-नए सूरज बनाये है।3।

जो देख रहे है चमक दुनिया की बेमिसाल
    इसकी सब रंगीन चादर, हमने ही बिछाए है 
      धरती से गगन पर, सीढ़ी हमने ही बनाये है
        मिट्टी को मुट्ठी से भरकर, कुंदन हमने बनाये है।4।

हे आसमान में रहने वाले, नीचे झुकर भी देखो
     जो हाथ नया सृजन करे, उनके हाथ है खुरदुरे 
       सुध उनकी भी ले लो, उनकी जेब खाली न हो
         पेट उनके भरे रहे हमेशा,घर में न कंगाली हो।5।

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लेखक
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)
मोबाइल 9893573770

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