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भारत के सबसे पढ़े-लिखे शख़्स थे बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर

भारत के सबसे पढ़े-लिखे शख़्स थे बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर


आंबेडकर अपने ज़माने में भारत के संभवत: सबसे पढ़े-लिखे व्यक्ति थेl उन्होंने मुंबई के मशहूर एलफ़िस्टन कॉलेज से बीए की डिग्री ली थी. बाद में उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से उन्होंने पीएचडी की डिग्री प्राप्त की थीl

शुरू से ही वो पढ़ने, बागवानी करने और कुत्ते पालने के शौक़ीन थे l कहा जाता है कि उस ज़माने में उनके पास देश में क़िताबों बेहतरीन संग्रह था l मशहूर क़िताब 'इनसाइड एशिया' के लेखक जॉन गुंथेर ने लिखा है कि "1938 में जब राजगृह में आंबेडकर से मेरी मुलाक़ात हुई थी तो उनके पास आठ हज़ार क़िताबें थीं l उनकी मौत के दिन तक ये संख्या बढ़ कर 35,000 हो चुकी थी l"

बाबासाहेब आंबेडकर के निकट सहयोगी रहे शंकरानंद शास्त्री अपनी क़िताब 'माई एक्सपीरिएंसेज़ एंड मेमोरीज़ ऑफ़ डॉक्टर बाबा साहेब आंबेडकर' में लिखते हैं, "मैं रविवार 20 दिसंबर, 1944 को दोपहर एक बजे आंबेडकर से मिलने उनके घर गया. उन्होंने मुझे अपने साथ जामा मस्जिद इलाक़े में चलने के लिए कहा. उन दिनों वो पुरानी क़िताबें खरीदने का अड्डा हुआ करता था l"

"मैंने उनसे कहने की कोशिश की कि दिन के खाने का समय हो रहा है लेकिन उन पर इसका कोई असर नहीं हुआ. जामा मस्जिद में उनके होने की ख़बर चारों तरफ़ फैल गई और लोग उनके चारों ओर इकट्ठा होने लगे. इस भीड़ में भी उन्होंने विभिन्न विषयों पर क़रीब दो दर्जन क़िताबें ख़रीदीं. वो अपनी क़िताबें किसी को भी पढ़ने के लिए उधार नहीं देते थे. वो कहा करते थे कि अगर किसी को उनकी किताबें पढ़नी हैं तो उसे उनके पुस्तकालय में आकर पढ़ना चाहिए l"

शुरू से ही भेदभाव का शिकार हुए आंबेडकर

बचपन से ही अपनी जाति के कारण आंबेडकर को लोगों के भेदभाव का शिकार होना पड़ा l

1901 में जब वो अपने पिता से मिलने सतारा से कोरेगाँव गए तो स्टेशन से बैलगाड़ी वाले ने उन्हें ले जाने से इनकार कर दिया. दोगुने पैसे देने पर वो इस बात के लिए राज़ी हुआ कि नौ साल के आंबेडकर और उनके भाई बैलगाड़ी चलाएंगे और वो पैदल उनके साथ चलेगा l

1945 में वायसराय की काउंसिल के लेबर सदस्य के रूप में भीमराव आंबेडकर उड़ीसा (आज का ओडिशा) के पुरी में मौजूद जगन्नाथ मंदिर गए तो उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया l

उसी साल जब वो कलकत्ता (आज का कोलकाता) में मेहमान के तौर पर एक शख़्स के यहां गए तो उसके नौकरों ने ये कहते हुए उन्हें खाना परोसने से इंकार कर दिया कि वो महार जाति से हैं l

शायद यही सब कारण थे जिनकी वजह से आंबेडकर ने अपनी जवानी के दिनों में जाति व्यवस्था की वकालत करने वाली मनुस्मृति को जलाया था l

भीमराव अम्बेडकर

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क़िताबों के लिए दीवानापन

करतार सिंह पोलोनियस ने चेन्नई से प्रकाशित होने वाले 'जय भीम' के 13 अप्रैल, 1947 के अंक में लिखा था, "एक बार मैंने बाबा साहेब से पूछा था कि आप इतनी सारी क़िताबें कैसे पढ़ पाते हैं. उनका जवाब था, लगातार क़िताबें पढ़ते रहने से उन्हें ये अनुभव हो गया था कि किस तरह क़िताब के मूलमंत्र को आत्मसात कर उसकी फ़िज़ूल की चीज़ों को दरकिनार कर दिया जाए l"

"उन्होंने मुझे बताया था कि तीन क़िताबों का उनके ऊपर सबसे अधिक असर हुआ था l पहली थी 'लाइफ़ ऑफ़ टॉलस्टाय', दूसरी विक्टर ह्यूगो की 'ले मिज़राब्ल' और तीसरी थॉमस हार्डी की 'फ़ार फ़्रॉम द मैडिंग क्राउड.' क़िताबों को लेकर उनका प्यार इस हद तक था कि वो सुबह होने तक क़िताबों में ही लीन रहते थे l"

भीमराव अम्बेडकर

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आंबेडकर के एक और अनुयायी नामदेव निमगड़े अपनी क़िताब 'इन द टाइगर्स शैडो: द ऑटोबायोग्राफ़ी ऑफ़ एन आंबेडकराइट' में लिखते हैं, "एक बार मैंने उनसे पूछा था कि आप इतना लंबे समय तक पढ़ने के बाद अपना 'रिलैक्सेशन' यानि मनोरंजन किस तरह करते हैं l उनका जवाब था कि मेरे लिए 'रिलैक्सेशन' यानि मनोरंजन का मतलब एक विषय को छोड़ दूसरे विषय की क़िताब पढ़ना l"

निमगड़े लिखते हैं, "रात में आंबेडकर क़िताब पढ़ने में इतना खो जाते थे कि उन्हें बाहरी दुनिया का उन्हें कोई ध्यान नहीं रहता था. एक बार देर रात मैं उनकी स्टडी में गया और उनके पैर छूए. किताबों में डूबे आंबेडकर बोले, 'टॉमी ये मत करो' मैं थोड़ा अचंभित हुआ l जब बाबा साहेब ने अपनी नज़रें उठाई और मुझे देखा तो वो झेंप गए. वो पढ़ने में इतने ध्यानमग्न थे कि उन्होंने मेरे स्पर्श को कुत्ते का स्पर्श समझ लिया था l"

भीमराव अम्बेडकर

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KEYSTONE/HULTON ARCHIVE/GETTY IMAGES

टॉयलेट में अख़बार और क़िताबें पढ़ना था पसंद

आंबेडकर के लाइब्रेरियन के रूप में काम करने वाले देवी दयाल ने अपने लेख 'डेली रुटीन ऑफ़ डॉक्टर आंबेडकर' में लिखा है, "आंबेडकरअपने शयनकक्ष को अपनी समाधि समझते थे. बाबासाहेब अपने बिस्तर पर अख़बार पढ़ना पसंद करते थे l एक-दो अख़बारों को पढ़ने के बाद वो बाक़ी अख़बारों को अपने साथ टॉयलेट ले जाते थे. कभी-कभी वो अख़बार और क़िताबें टॉयलेट में छोड़ देते थे l मैं उनको वहाँ से उठा कर उनकी तय जगह पर रख देता था l"

आंबेडकर की जीवनी लिखने वाले धनंजय कीर लिखते हैं, "आंबेडकर पूरी रात पढ़ने के बाद भोर के वक्त सोने के लिए जाते थे l सिर्फ़ दो घंटे सोने के बाद वो थोड़ी कसरत करते थे. उसके बाद वो नहाने के बाद नाश्ता किया करते थे l"

"अख़बार पढ़ने के बाद वो अपनी कार से कोर्ट जाते थे l इस दौरान वो उन क़िताबों को पलट रहे होते थे जो उस दिन उनके पास डाक से आई होती थीं l कोर्ट समाप्त होने के बाद वो क़िताब की दुकानों का चक्कर लगाया करते थे और जब वो शाम को घर लौटते थे तो उनके हाथ में नई क़िताबों का एक बंडल हुआ करता था l

जहाँ तक बागवानी का सवाल है दिल्ली में उनसे अच्छा और देखने वाला बगीचा किसी के पास नहीं था. एक बार ब्रिटिश अख़बार डेली मेल ने भी उनके गार्डन की तारीफ़ की थीl 

वो अपने कुत्तों को भी बहुत पसंद करते थे. एक बार उन्होंने बताया था कि किस तरह उनके पालतू कुत्ते की मौत हो जाने के बाद वो फूट-फूट कर रोए थे l

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खाना बनाने के शौकीन

कभी-कभी छुट्टियों में बाबासाहेब खुद खाना भी बनाते थे और लोगों को अपने साथ खाने के लिए आमंत्रित करते थे l

देवी दयाल लिखते हैं, "3 सिंतबर, 1944 को उन्होंने अपने हाथ से खाना बनाया l उन्होंने सात पकवान बनाए. इसे बनाने में उन्हें तीन घंटे लगे l उन्होंने खाने पर दक्षिण भारत अनुसूचित जाति फ़ेडेरेशन की प्रमुख मीनांबल सिवराज को बुलाया l वो ये सुन कर दंग रह गईं कि भारत की एक्ज़क्यूटिव काउंसिल के लेबर सदस्य ने उनके लिए अपने हाथों से खाना बनाया हैl"

बाबा साहेब को मूली और सरसों का साग पकाने का बहुत शौक था l

उनके साथी रहे सोहनलाल शास्त्री अपनी क़िताब 'बाबा साहेब के संपर्क में पच्चीस वर्ष' में लिखते हैं, "हम दोनों साग को खूब सारे तेल में पकाया करते थे क्योंकि उन्हें पंजाबी स्टाइल में साग बनाना पसंद था. उन्हें अपने राज्य महाराष्ट्र पर भी गर्व था. कांग्रेस पार्टी के नेताओं में लोकमान्य तिलक को वो सबसे अधिक मानते थे l"

"उनका कहना था कि तिलक से अधिक तकलीफ़ किसी कांग्रेस नेता ने नहीं झेली l तिलक को छह फ़ीट चौड़ी और आठ फ़ीट लंबी कोठरी में रखा जाता था और वो ज़मीन पर सोया करते थे, जबकि जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और गांधी ने ए-क्लास से नीचे कोई सुविधा कभी स्वीकार नहीं की l अपने समकक्ष लोगों में गोविंद वल्लभ पंत के लिए उनके मन में बहुत इज़्ज़त थी. उनकी नज़र में पंत महाराष्ट्र के मूल निवासी थे. उनके पूर्वज 1857 में नाना साहेब के विद्रोह के दौरान उत्तर भारत में आ कर बस गए थे l"

भीमराव अम्बेडकर की स्टाम्प

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INDIAN POSTAL DEPARTMENT

पार्टियों में समय बरबाद करने के सख़्त ख़िलाफ़

1948 में आंबेडकर को श्रीलंका के स्वतंत्रता दिवस पर हो रहे समारोह में वहां के उच्चायोग ने आमंत्रित किया था. इस समारोह में लॉर्ड माउंटबैटन और जवाहरलाल नेहरू भी मौजूद थे l

एन सी रट्टू अपनी किताब 'रेमिनेंसेंसेज़ एंड रिमेंबरेंस ऑफ़ डाक्टर बीआर आंबेडकर' में लिखते हैं, "जब मैंने बाबासाहेब से पूछा कि आप इस समारोह में क्यों नहीं जा रहे तो उनका जवाब था मैं वहाँ अपना बहुमूल्य समय बर्बाद नहीं करना चाहता. दूसरे मुझे शराब पीने का शौक नहीं हैं जो इस तरह की पार्टियों में सर्व की जाती है l"

"अम्बेडकर को न तो नशे की किसी चीज़ का शौक था और न ही वो धूम्रपान किया करते थे l एक बार जब उन्हें खाँसी हो रही थी तो मैंने उन्हें पान खाने का सुझाव दिया l उन्होंने मेरे अनुरोध पर पान खाया ज़रूर लेकिन अगले ही सेकेंड उसे ये कहते हुए थूक दिया कि ये बहुत कड़वा है. वो बहुत साधारण खाना खाते थे जिसमें बाजरे की एक रोटी, थोड़ा चावल, दही और मछली के तीन टुकड़े हुआ करते थे l''

भीमराव अम्बेडकर

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साथी को ओवरकोट ओढ़ाया

घर पर काम में आंबेडकर की मदद करने के लिए सुदामा नाम के एक व्यक्ति रखा गया थाl एक दिन सुदामा जब देर रात फ़िल्म देख कर लौटे तो उन्होंने सोचा कि उनके घर के अंदर घुसने से बाबासाहेब के काम में विघ्न पड़ेगाl उन्हें पता था कि बाबासाहेब क़िताब पढ़ने में तल्लीन होंगेl

वो दरवाज़े के बाहर ही ज़मीन पर सो गएl आधी रात के बाद जब आंबेडकर ताज़ी हवा लेने बाहर निकले तो उन्होंने दरवाज़े के बाहर सुदामा को सोते हुए पाया. वो बिना आवाज़ किए अंदर चले गए. जब अगले दिन सुबह सुदामा की नींद खुली तो उन्होंने पाया कि बाबासाहेब ने उनके ऊपर अपना ओवरकोट डाल दिया हैl

भीमराव अम्बेडकर

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BETTMANN/ CONTRIBUTOR

बिड़ला के दिए पैसों को अस्वीकार किया

31 मार्च 1950 को मशहूर उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला के बड़े भाई जुगल किशोर बिड़ला आंबेडकर से मिलने उनके निवासस्थान पर आएl कुछ दिनों पहले बाबासाहेब ने मद्रास में पेरियार की उपस्थिति में हज़ारों लोगों के सामने भगवतगीता की आलोचना की थीl

बाबासाहेब के सहयोगी रहे शंकरानंद शास्त्री 'माई एक्सपीरिएंसेज़ एंड मेमोरीज़ ऑफ़ डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर' में लिखते हैं, "बिड़ला ने उनसे सवाल किया आपने गीता की आलोचना क्यों की जो कि हिंदुओं की सबसे जानीमानी धार्मिक क़िताब है? उनको इसकी आलोचना करने के बजाए हिंदू धर्म को मज़बूत करना चाहिएl"

"जहां तक छुआछूत को दूर करने की बात है तो वो इसके लिए दस लाख रुपए देने के लिए तैयार हैं. इसका जवाब देते हुए आंबेडकर ने कहा, मैं अपने आप को किसी को बेचने के लिए नहीं पैदा हुआ हूँ. मैंने गीता की इसलिए आलोचना की थी, क्योंकि इसमें समाज को बांटने की शिक्षा दी गई हैl"

भीमराव अम्बेडकर

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वायसराय के सामने हमेशा भारतीय कपड़ों में जाते थे आंबेडकर

बाबासाहेब अक्सर नीला सूट पहना करते थे लेकिन कुछ ख़ास मौकों पर वो अचकन, चूड़ीदार पजामा और काले जूते निकालते थेl लेकिन, जब भी वो वायसराय से मिले जाते थे, वो हमेशा भारतीय कपड़े ही पहनते थेl

घर पर वो साधारण कपड़े पहना करते थे. गर्मी में वो चार हाथ की लुंगी कमर में लपेट लेते थेl उसके ऊपर वो घुटनों तक का कुर्ता पहनते थे. विदेश में रहने के दौरान से ही वो नाश्ते में दो टोस्ट, अंडे और चाय लिया करते थेl

देवी दयाल लिखते हैं कि जब वो नाश्ता करते थे तो बाईं तरफ़ उनके अख़बार खुले रहते थेl उनके हाथ में एक लाल पेंसिल रहती थी जिससे वो अख़बारों की मुख्य ख़बरों पर निशान लगाया करते थेl

भीमराव अम्बेडकर

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घर के बाहर खाना खाने के ख़िलाफ़

बाबासाहेब मौज-मस्ती के लिए कभी बाहर नहीं जाते थेl उनके सहयोगी रहे देवी दयाल लिखते हैं, "हाँलाकि, वो जिमखाना क्लब के सदस्य थे लेकिन वो शायद ही वहां गए होंl जब भी वो कार से अपने घर लौटते थे तो वो सीधे अपनी पढ़ने की मेज़ पर जाते थे. उनके पास अपने कपड़े बदलने का भी समय नहीं रहता थाl"

"एक बार वो एक फ़िल्म 'अ टेल ऑफ़ टू सिटीज़' देखने गए. उसे देखते समय उनके मन में कोई विचार कौंधा और वो फ़िल्म बीच में ही छोड़ कर घर लौट कर उन विचारों को लिखने लगे. वो घर के बाहर खाना नहीं पसंद करते थेl"

भीमराव अम्बेडकर

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"जब भी कोई उन्हें बाहर खाने पर ले जाना चाहता था, उनका जवाब होता था अगर तुम मुझे दावत ही देना चाहते हो, तो मेरे लिए घर पर ही खाना ले आओl मैं घर से बाहर जाने वाला नहींl"

"बाहर जाने, वापस आने और व्यर्थ की बातों में मेरा कम से कम एक घंटा बरबाद होगाl इस समय का इस्तेमाल मैं कुछ बेहतर काम के लिए करना चाहूँगाl"

अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में बाबासाहेब ने वायलिन सीखना शुरू किया थाl उनके सचिव रहे नानक चंद रत्तू अपनी क़िताब 'लास्ट फ़िउ इयर्स ऑफ़ डॉक्टर आंबेडकर' में लिखते हैं कि एक दिन उन्होंने आंबेडकर के बंद कमरे में चुपके से झांककर एक अद्भुत नज़ारा देखा थाl

वो बताते हैं, "बाबासाहेब दुनिया की चिंताओं से दूर अपने आप में मग्न कुर्सी पर बैठे वायलिन बजा रहे थे. मैंने जब ये बात घर में काम करने वाले लोगों को बताई तो सभी ने बारी-बारी से जा कर वो अद्भुत नज़ारा देखाl"

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