कविता- नारी सब पर भारी
Sunday 17 April 2022
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भारत की नारी है सबला
पड़ती सब पर भारी रे
जो समझे असहाय उसको
तलवार है द्विधारी रे।
हर रिश्ते को दिल से निभाए
सागर सी गंभीर रे
सहनशीलता की है मूरत
होती कभी न अधीर रे।
सबकी सुनती अपनी न कहती
करें न अभिमान रे
हर ग़म को हंसकर सह जाती
रखती कुल का मान रे।
कंधे से कंधा मिलाकर
करती है हर काम रे
गर अपनी में आ जाते तो
कर दें काम तमाम रे।
काली,दुर्गा,लक्ष्मी, अहिल्या
देवी के हैं रूप रे
बुरी नियत जो रखें नारी पर
छांव भी है धूप रे ।
कभी थके न घर के काम से
रखती सबका ध्यान रे
खाना-पीना भी भूल जाती
करती है श्रमदान रे।
सपनों से जो घर को सींचती
नारी उसका नाम रे
नारी के बिन नर है अधूरा
जैसे सुबह और शाम रे।
नारी महिमा जग में निराली
नारी ही कल्याणी रे
नारी को जो समझे अबला
मानव तेरी नादानी रे।
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//स्वरचित एवं मौलिक//
रामगोपाल निर्मलकर "नवीन"
धनौरा, जिला-सिवनी (म.प्र.)
मो.नं.-9407315990
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