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कविता ॥ महका चन्दन ॥

कविता ॥ महका चन्दन ॥

कविता ॥ महका चन्दन ॥



भीगा ये बदन महका चन्दन
यौवन ने वन में श्रृंगार किया
बादल की अवारापन से तंग
मेघा ने बरखा को संसार दिया

ये बाग बगीचा का सूखा तन
सूरज की तपिश ने लाचार किया
जल की आचमन में रोया मन
हर जीवन ने बरखा का इन्तजार किया

तपती सूरज का कैसा है सितम
ये जन मानस को बेकरार किया
मन को ठंडक की दिलासा में
प्रेमी संग संग चलना स्वीकार किया

आजा सावन भर दो यौवन
अब संयम को विराम दिला
तृप्त हो तन मन विकल ना हो मन
पूरवाई को ठंडक तलबगार करा

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उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088

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