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 "अभिलाषा है इतनी मेरी "

"अभिलाषा है इतनी मेरी "


                                                                माँ मुझको वर्दी दिलवादे।

दर्जी से कहकर सिलवादे। 

उसे पहन रक्षक बन जाऊँ।

मातृभूमि को शीश नवाऊँ। 

अभिलाषा है इतनी मेरी। 

गर्व रहे तुझको माँ मेरी। 

तेरे दूध का कर्ज चुकाऊँ।

सपने पूरे तेरे कर जाऊँ।

रण में जाकर युद्ध करूँगा ।

कभी न शत्रु से डरूँगा।

तू ने मुझको निडर बनाया। 

साहस से लड़ना सिखलाया ।

नहीं डरूँगा तूफानों से । 

डटा रहूंगा विरानों में। 

मातृभूमि को मैं दिखला दूँ।

अपने जीवन का कर्ज चुका दूँ ।

अभी सफर तो शुरू हुआ है ।

मुझ पर माँ की परम दुआ है। 

भारत की सीमा पर जाकर। 

मातृभूमि का आशीष पाकर। 

नित्य रण में जुड़ा रहूँगा ।

माँ तेरा नित लाल रहूँगा ।

है कितनी अभिलाषा तेरी। 

वह जीवन की आशा मेरी ।

तू ने सफल बनाया मुझको। 

भय से लड़ना सिखलाया मुझको। 

आगे-आगे कदम बढ़ाऊँ। 

वीर पथिक बनकर दिखलाऊँ। 

मिट्टी से मैं तिलक सजाऊँ। 

मातृभूमि को शीश नवाऊँ। 

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सरस्वती राजेश साहू 

चिचिरदा, बिलासपुर (छ. ग.)

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