सरकारी विद्यालयों के नामांकन में पिछले दो वर्षों में बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को तैयार करने की आवश्यकता हैं।
Wednesday 24 November 2021
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“शिक्षा की योजनाएँ बनाते समय बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी को ध्यान में रखना चाहिए, जैसा की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित है। माता-पिता के साथ विचार-विमश यह समझने के लिए आवश्यक है कि वे अपने बच्चों की कैसे मदद कर सकते हैं।”
करोना महामारी के करीब डेढ़ साल गुजरने के बाद से अब जब स्कूल शुरू हो रहे हैं तब बच्चों को पढ़ाई के लिए एक नए सिरे के तैयार होने की आवश्यकता है। छोटे बच्चे जिन्होंने अभी अपनी कक्षा प्रारंभ ही की है उन्होंने अपना एक बार भी स्कूल नहीं देखा था वह पहली बार अपनी स्कूल जाने को तैयार हुए है। बहुत सारे बच्चे जो पहली और दूसरी क्लास में जिनका दाखिला हुआ था, उनकी प्रारंभिक पढ़ाई बहुत बाधित हुई है हालांकि सरकार ने पढ़ाई जारी रखने के लिए ऑनलाइन पढ़ाई का प्रयास किया था, टीवी, रेडियो एवं अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से भी पढ़ाई के लिए काफी प्रयास किया गया था। अब जब स्कूल खुल गए हैं तब बच्चों को एक नए सिरे से पढ़ाई का प्रारंभ करना होगा इसके लिए स्कूल प्रबंधन एवं शिक्षक को विशेष तैयारी करने की अपेक्षा होगी। सर्वप्रथम तो बच्चों का प्रारंभिक कौशल को जानकार पढ़ाई शुरू करवाने की जरुरत है जिससे जी कि अभी बच्चा को कितना आता है, और उसको किस प्रकार से और ज्यादा सिखाने की आवश्यकता होगी। डेढ़ साल का लंबा अंतराल के बाद जब बच्चा स्कूल जाएगा, तो बहुत सारा माहौल परिवर्तित नजर आएगा। इस माहौल को लेकर बच्चा अपनी पढ़ाई को पूरा करेगा और अपने डेढ़ साल के गैप को पूरा करने के लिए मशक्कत करना पड़ेगा। मध्यप्रदेश में सभी स्कूल प्रारंभ हो रहे है, प्राथमिक हो या उच्च विद्यालय सभी का स्कूल खुलने जा रहा है, अब बच्चा अपनी नए सिरे से पढ़ाई प्रारंभ करेंगे।
प्रथम नामक गैर सरकारी संस्था ने अपनी सोलहवीं ऐन्यूअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ग्रामीण) 2021 को 17 नवंबर 2021 को ऑनलाइन जारी किया। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2005 से 2014 तक प्रत्येक वर्ष, और फिर 2018 तक हर वैकल्पिक वर्ष में, असर ने ग्रामीण भारत के 5-16 आयु वर्ग के बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति और बुनियादी पढ़ने और गणित की क्षमता पर आंकड़े प्रस्तुत किए है। इस सर्वेक्षण के मध्यम से असर ने यह जानने की कोशिश की कि बच्चे इस समय में कैसे पढ़ रहे हैं? लॉकडाउन के अठारह महीने बाद, सितंबर-अक्टूबर 2021 में संचालित इस सर्वेक्षण ने यह पता लगाया गया कि महामारी की शुरुआत के बाद से 5-16 आयु वर्ग के बच्चे घर पर कैसे पढ़ रहे हैं, और विभिन्न राज्यों में अब विद्यालय खुलने पर परिवारों और विद्यालयों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा हैं। असर 2021 25 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में संचालित किया गया। यह सर्वेक्षण कुल 76,706 घरों और 5-16 आयु वर्ग के 75,234 बच्चों तक पहुंच पाया। साथ ही, असर ने 7,299 प्राथमिक कक्षाओं वाले सरकारी स्कूलों के शिक्षकों या मुख्य अध्यापकों का फ़ोन आधारित सर्वेक्षण किया।
असर 2021 के आकडे के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों का नामांकन निजी से सरकारी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है: 6-14 आयु वर्ग के बच्चों का निजी स्कूलों में नामांकन 2018 में 32.5% से घटकर, 2021 में 24.4% हो गया है। यह बदलाव सभी कक्षाओं के बच्चों, और लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए दिख रहा है। हालांकि, अभी भी लड़कियों की तुलना में ज़्यादा लड़के निजी स्कूलों में नामांकित हैं। 6-14 आयु वर्ग के अनामांकित बच्चों के अनुपात में कोई बदलाव नहीं: 2018 में अनामांकित बच्चों का अनुपात 1.4% था, जो कि 2020 में बढ़कर 4.6% हो गया था। यह अनुपात 2021 में अपरिवर्तित रहा। स्कूल में बड़ी उम्र के बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी: 15-16 आयु वर्ग के बच्चों का सरकारी स्कूल में नामांकन का आंकड़ा 2018 में 57.4% से बढ़कर 2021 में 67.4% हो गया है। इस बदलाव के दो मुख्या कारण है - पहला कि इस आयु वर्ग के अनामांकित बच्चों का अनुपात 2018 में 12.1% से घटकर 2021 में 6.6% हो गया है, और दूसरा कि निजी स्कूलों के नामांकन में भी गिरावट दर्ज हुई है। समय ही बताएगा कि यह आंकड़े ग्रामीण भारत में स्कूलों का एक स्थायी पहलू बनेंगे या विभिन्न राज्यों में स्कूलों के खुलने के साथ पुनः पहले जैसे हो जाएंगे।
लॉकडाउन के कारण जहां सभी स्कूल बंद थे वही बच्चों की पढ़ाई के लिए निजी ट्यूशन ही सबसे बड़ा सहारा बना। निजी ट्यूशन के सारे बच्चे ने अपनी पढ़ाई को जारी रखने का प्रयास किया। साथ ही घर में अभिभावक एवं घर के सदस्यों ने भी बच्चों को पढ़ाने में मदद की। ट्यूशन लेने वाले बच्चों में वृद्धिः राष्ट्रीय स्तर पर, 2018 में, 30% से कम बच्चे निजी ट्यूशन कक्षाएं लेते थे। 2021 में यह अनुपात बढ़कर लगभग 40% हो गया है। यह अनुपात दोनों लड़के और लड़कियों, सभी कक्षाओं और दोनों सरकारी और निजी स्कूलों में जाने वाले बच्चों के लिए बढ़ा है। ट्यूशन में सबसे अधिक वृद्धि आर्थिक रूप से वंचित वर्ग में: आर्थिक स्थिति के लिए माता-पिता की शिक्षा के स्तर को प्रॉक्सी मानते हुए, कम पढ़े-लिखे (प्राथमिक शिक्षा या कम) माता-पिता के बच्चों में ट्यूशन लेने के अनुपात में 12.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि अधिक पढ़े-लिखे (कक्षा 9 या अधिक) माता-पिता के बच्चों में यह वृद्धि 7.2 प्रतिशत की है। मध्य प्रदेश में, 2018 में, 15% से कम बच्चे निजी ट्यूशन कक्षाएं लेते थे। 2021 में यह अनुपात बढ़कर लगभग 28% हो गया है। यह बढ़ोत्तरी रास्ट्रीय स्तर पर 10.5% पॉइंट है जबकि मध्य प्रदेश में यह 13.2% पॉइंट है।
लॉकडाउन के समय में सरकारी विद्यालय और निजी विद्यालयों में स्मार्टफोन की सहायता से ही काफी पढ़ाई का संचालन हुआ है, सरकार ने भी स्मार्टफोन में के माध्यम से पठन-पाठन सामग्री बच्चों तक पहुंचाने के लिए काफी प्रयास किया। काफी हद तक स्कूलों के माध्यम से यह कार्य सुचारू रूप से कराया गया परंतु अभी भी ऑनलाइन क्लास की अवधारणा बहुत सारे बच्चों तक नहीं पहुंच पाई। असर सर्वेक्षण की रिपोर्ट में बताया गया है कि स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि पिछले वर्ष स्कूल बंद होने के बाद जब सभी शैक्षिक प्रक्रियाएं ऑनलाइन होने लगी, तब स्मार्टफ़ोन शिक्षण का प्रमुख स्त्रोत बन गया। इससे सबसे वंचित वर्ग के बच्चों के पीछे छूट जाने की संभावना दिखने लगी। 2018 की तुलना में लगभग दुगने घरों में स्मार्टफ़ोन उपलब्ध: स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि 2018 में 36.5% से बढ़कर 2021 में 67.6% हो गई है। लेकिन सरकारी विद्यालय जाने वाले बच्चों की अपेक्षा (63.7%) निजी विद्यालय के ज़्यादा बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उबलब्ध हैं (79%)। घर की आर्थिक स्थिति से स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि पर असर होता है: जैसे ही माता-पिता के शिक्षा का स्तर (जो घर की आर्थिक स्थिति का प्रॉक्सी है) बढ़ता है, वैसे ही घर पर स्मार्टफ़ोन उपलब्ध होने की संभावना बढ़ जाती है। 2021 में ऐसे 80% बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपलब्ध है जिनके माता-पिता कक्षा 9 से अधिक पढ़े-लिखे हैं। इसकी तुलना में केवल 50% ऐसे बच्चों के पास स्मार्टफ़ोन उपलब्ध है जिनके माता-पिता कक्षा 5 से कम पढ़े-लिखे हैं। लेकिन, जिन बच्चों के माता-पिता कम पढ़े-लिखे हैं, उनमें भी लगभग एक चौथाई से अधिक बच्चों की पढ़ाई के लिए मार्च 2020 के बाद एक नया स्मार्टफोन खरीदा गया। मध्य प्रदेश में 2018 की तुलना में तीन गुने घरों में स्मार्टफ़ोन उपलब्ध: स्मार्टफ़ोन की उपलब्धि 2018 में 23.3% से बढ़कर 2021 में 69.2% हो गई है, लेकिन इनमें से लगभग 18.5% ऐसे बच्चे हैं जिनके लिए यह स्मार्टफो नए उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं है।
घर में बच्चों को पढ़ाई में सहयोग लोन के दौरान बच्चों की पढ़ाई का जिम्मा पूरी तरह माता-पिता एवं उनके अभिभावकों पर था। जो माता-पिता बच्चों की पढ़ाई के लिए जागरूक थे उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए सहायता की परंतु कम पढ़े लिखे अभिभावक बच्चों की पढ़ाई में मदद करने में थोड़ी पीछे रह गए। असर 2021 में, असर 2020 में पूछे गए कुछ प्रश्न दोबारा पूछे गए – कि क्या बच्चे को घर पर पढ़ने में सहयोग मिलता है और यदि मिलता है तो यह सहयोग कौन देता है। पिछले एक वर्ष में घर पर बच्चों को पढ़ाई में मिलने वाला सहयोग कम हुआ है: घर पर पढ़ने में सहयोग मिलने वाले नामांकित बच्चों का अनुपात 2020 में तीन चौथाई से घटकर 2021 में दो तिहाई हो गया है। सहयोग में सबसे ज़्यादा गिरावट उच्च कक्षा (कक्षा 9 या अधिक) के बच्चों के लिए आई है। मध्यप्रदेश में निजी विद्यालय के बच्चों को घर पर पढ़ने में ज्यादा सहयोग - वर्ष 2021 में सरकारी विद्यालय के 63.9% बच्चों की तुलना में निजी विद्यालय के 71.9% बच्चों को घर पर पढ़ने में घर के सदस्यों का सहयोग मिलता है।
सरकार एवं तमाम निजी विद्यालय संचालकों का दावा है कि लॉकडाउन में भी उन्होंने ऑनलाइन शैक्षणिक सामग्री बच्चों एवं अभिभावकों तक पहुंचाई है और उस के माध्यम से बच्चों की पढ़ाई जारी रखने का प्रयास किया है। असर सर्वेक्षण में यह जानकारी ली गई कि शैक्षणिक सामग्री की उपलब्धता किस प्रकार से हुई और उसको किस प्रकार से उपयोग किया गया। शैक्षिक सामग्री की उपलब्धि असर 2021 में, असर 2020 में पूछे गए कुछ प्रश्न दोबारा पूछे गए – कि क्या बच्चों के पास उनकी वर्तमान में नामांकित कक्षा की पाठ्यपुस्तकें हैं और क्या उन्हें सर्वेक्षण से पहले वाले सप्ताह में अपने विद्यालय के शिक्षकों से कोई अतिरिक्त सामग्री प्राप्त हुई हैं। इसमें प्रिन्ट या वर्चुअल रूप में वर्कशीट जैसी सामग्री, ऑनलाइन या रिकॉर्ड की गई कक्षाएँ, और विडिओ या फ़ोन से भेजी गई अन्य गतिविधियों शामिल हैं। जिन बच्चों के स्कूल खुल गए हैं, उनके लिए इसमें विद्यालय द्वारा दिया गया गृहकार्य भी शामिल है।
रिपोर्ट के अनुसार लगभग सभी नामांकित बच्चों के पास अपनी वर्तमान कक्षा की पाठ्यपुस्तकें हैं (91.9%)। दोनों सरकारी और निजी विद्यालयों के बच्चों के लिए यह अनुपात पिछले वर्ष की तुलना में बढ़ गया है। जिन नामांकित बच्चों के विद्यालय नहीं खुले हैं, उनमें से 39.8% बच्चों को सर्वेक्षण के पिछले सप्ताह में अपने शिक्षक द्वारा किसी प्रकार की शैक्षिक सामग्री या गतिविधियाँ (पाठ्यपुस्तकों के अलावा) प्राप्त हुई। इसमें पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है, जब यह अनुपात 35.6% था। मध्य प्रदेश में पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धि में बढ़ाव: मध्य प्रदेश राज्य में 2020 में 79.6% बच्चों के पास अपनी कक्ष की पाठ्यपुस्तकें थी। वहीं वर्ष 2021 में 90.2% बच्चों के पास पाठ्यपुस्तकें हैं।
जब 18 महीने बंद रहने के बाद स्कूल फिर से खुल रहे हैं, तो इनके बंद होने के प्रभाव को समझना आवश्यक है ताकि इनसे उभरने वाले मुद्दों के समाधान के लिए नीतियां बनाई जा सकें। सरकारी विद्यालयों के नामांकन में पिछले दो वर्षों में बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए सरकारी विद्यालयों और शिक्षकों को तैयार करने की आवश्यकता हैं। विद्यालय खुलने के साथ बच्चों को मिलने वाला पारिवारिक सहयोग 2020 से कम हो गया है, लेकिन यह विशेष रूप से प्राथमिक कक्षाओं के लिए अभी भी महत्वपूर्ण है। शिक्षा की योजनाएँ बनाते समय बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भागीदारी को ध्यान में रखना चाहिए, जैसा की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित है। माता-पिता के साथ विचार-विमश यह समझने के लिए आवश्यक है कि वे अपने बच्चों की कैसे मदद कर सकते हैं। "हाइब्रिड" लर्निंग: बच्चे घर पर तरह-तरह की गतिविधियाँ कर रहे हैं; इनमें से कई गतिविधियाँ विद्यालयों के साथसाथ परिवार के सदस्य और निजी ट्यूशन शिक्षकों द्वारा भी कराई जा रही हैं। "हाइब्रिड" लर्निंग के प्रभावी तरीकों को विकसित करने की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को पढ़ाने के आम और नए तरीकों को साथ में लागू किया जा सकें। ट्यूशन: निजी ट्यूशन जाने वाले बच्चों का अनुपात 2018 से स्कूल बंद होने की अनिश्चित्ता के दौरान बढ़ गया है। यह ट्यूशन का खर्च उठा पाने वाले और न उठा पाने वाले बच्चों के बीच अंतराल बढ़ा सकता है। "डिजिटल डिवाइड" को हटाना: अपेक्षित रूप से ऐसे बच्चों की शिक्षा पर ज़्यादा प्रभाव पड़ा है जिनके परिवारों का शैक्षिक स्तर कम था और जिनके पास स्मार्टफ़ोन जैसे संसाधन भी नहीं थे। इन घरों में भी प्रयास किया हुआ नज़र आता हैं: जैसे कि माता-पिता विशेष रूप से अपने बच्चों की शिक्षा के लिए स्मार्टफ़ोन खरीद रहे हैं। इन बच्चों को फिर भी विद्यालय खुलने पर दूसरे बच्चों की अपेक्षा अधिक सहयोग की आवश्यकता होगी। असर 2021 इस बात को दर्शाता है कि परिवार में स्मार्टफ़ोन होने पर भी वह अक्सर बच्चों के उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं होता। भविष्य में बनाई जाने वाली डिजिटल सामग्री और रिमोट लर्निंग की योजनाओं में इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए।
(उपरोक्त आकडे असर 2021रिपोर्ट से लिए गए है)
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