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घमण्ड-    एक बार सोचना ज़रूर, कहीं हम भी किसी चीज़ का घमण्ड तो नहीं कर रहे है।

घमण्ड- एक बार सोचना ज़रूर, कहीं हम भी किसी चीज़ का घमण्ड तो नहीं कर रहे है।

 घमण्ड़ 

        एक आदमी को इस बात पर बहुत घमण्ड था कि मेरे बिना मेरा परिवार नहीं चल सकता, उसकी एक छोटी सी किराने की दुकान थी उससे जो भी कमाई होती थी, उसी से परिवार का गुजारा चलता था, क्योंकि पूरे घर में कमाने वाला वह अकेला ही था इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर सब भूखे मरेंगे।         

      एक दिन वह पूर्ण संत जी के सत्सँग में गया, सन्त जी ने उस पर दृष्टि डाली और फरमाया, यह घमण्ड झूठा और फिजूल है कि मेरे बिना मेरा परिवार भूख से मर जायेगा, मैं ही सब को खाना खिलाता हूँ, ये सब मेरे प्रभु की लीला है, वो तो पत्थरों के नीचे रहने वाले जीवों को भी भोजन पहुँचाता है, उस आदमी के मन में कई सवाल उठने लगे।          

      सत्संग समाप्त होने के बाद, उस आदमी ने सन्त जी से कहा कि मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं उसी से मेरे घर का खर्च चलता है, मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग जल्दी ही भूखे मर जाएंगे।

       सन्त जी ने उसे बड़े ही प्यार से समझाया, बेटा यह तुम्हारे मन का भ्रम है, हर कोई अपने भाग्य का ही खाता है, वो आदमी बोला यदि ऐसा है तो आप मुझे  साबित करके दिखाओ।

      सन्त जी ने हँस कर कहा, ठीक है बेटा , तुम बिना किसी को बताए, अपने घर से एक महीने के लिए चले जाओ, उसने पूछा कि मेरे परिवार का ध्यान कौन रखेगा, सन्त जी ने समझाया बेटा परमात्मा सब का ध्यान रखता है, तुम्हें यही तो देखना है, वो चुपचाप चला गया और कुछ दिनों के बाद गाँव में ये अफवाह फैल गई कि  उसे शेर खा गया होगा।           

      उसके परिवार वाले कई दिनों तक उसे ढूँढते भी रहे और रोते भी रहे लेकिन उसका कुछ पता नहीं चला, आखिर कार  गाँव के कुछ भले लोग उनकी मदद के लिए आ गये। एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहाँ नौकरी दे दी, गाँव वालों ने मिलकर उसकी बेटी की शादी कर दी । एक  भला आदमी उसके छोटे बेटे की पढ़ाई का पूरा खर्च देने को तैयार हो गया।

      एक महीने बाद वही आदमी छिपता छिपाता रात के वक्त अपने घर लौट आया, पहले तो घर वालों ने भूत समझकर दरवाजा ही नहीं खोला,  जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और उसने सन्त जी से हुई सारी बातें बताई तो उसकी बीवी ने कहा कि अस हमें तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है, अब तो हम पहले से भी ज्यादा सुखी हैं, उस आदमी का सारा घमण्ड चूर-चूर हो गया। वो रोता हुआ, सन्त जी के डेरे पर चला गया और कहने लगा कि मुझे माफ कर दो, सन्त जी ने बड़े प्यार से कहा, अब तुम्हें अपने घर वापिस जाने की क्या ज़रूरत है?

      बेटा, इस जगत को चलाने का दावा करने वाले बडे बडे बादशाह, मिट्टी हो गए, दुनिया उनके बिना भी चलती रही इसलिए अपनी ताकत का, अपने पैसे का, अपने काम काज का, अपने ज्ञान का घमण्ड फिजूल है, अब तुम्हें बाकी का सारा जीवन मालिक की भक्ति में और लाचारों की सेवा में लगा कर इसे सफल करना है।

‌     वो आदमी सन्त जी के चरणों में गिर पड़ा और रोते हुए बोला, आप जो भी कहेंगे, आज से मैं वही करूँगा।

शिक्षा

        एक बार सोचना ज़रूर, कहीं हम भी किसी चीज़ का घमण्ड तो नहीं कर रहे है।

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