हे कलम ! तू लिख ऐसा
हे कलम ! तू लिख ऐसा
हे कलम ! तू लिख ऐसा,
ज्ञान का संचार हो जाये,
तेरी तेज धार से ,
कोई अमिट ज्ञान हो जाये,
लिखे तेरे हर शब्द ,
ज्ञान की ललकार हो जाये,
हे कलम! तू लिख ऐसा,
मेधा प्रकाश को जाये।
न रहे घोर अंधकार,
ऐसा दीप्त आकाश हो जाये,
तेरे एक अल्प प्रहार से,
जड़ से मेघा पूर्ण हो जाये,
मुझे तुझ पर है भरोसा,
तुमने टेढ़े को सीधा किया,
कुछ बिगड़े हुए थे ,
तुमने पल में ठीक किया।
तुम्हारे डर से कईयों को,
मैने डरते हुए देखा है,
तुम्हारे कहर से कईयों को,
मैने सनते देखा है,
हे कलम! अपनी तेज रेखनी,
फिर करदे बुलंद,
काँपे हर रिश्वतखोर,
कालाबाजारी हो जाये बन्द।
झूठा चेहरा काला करदे,
सत्य का रंग करदे चंग,
हे कलम! तुझे पता है,
तुमने कई इतिहास लिखे,
जिसने किया काम अनोखा,
वो खुद इतिहास बने,
कई पन्नो को रंगा है ऐसा,
वो जीवंत वृत्तांत हुए।
हे कलम! तुम्हारी लेखनी,
एक छंद बन जाती है,
सुर तालों के साथ बैठकर,
मधुर सुर बन जाती है,
तेरी शब्दों की रेखा,
हर शब्द गीत बन जाती है,
तू हर कंठ के सुरों में बैठे,
मनमीत बन जाती है।
...........................................
लेखक
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
मो. 9893573770
0 Response to " हे कलम ! तू लिख ऐसा"
Post a Comment