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 ठोकर ( Thokar)

ठोकर ( Thokar)


ठोकर खाने से बहुतों को, गिरते देखा है

   कुछ को उठते, फिर संभलते देखा है

      ठोकर से कुछ बिखर जार चूर हुए

         कुछ  ठोकर की चोट से मजबूर हुए।

कुछ को ठोकर ने, बहुत पाठ पढ़ाया है

   कुछ को ठोकर ने , शिखर तक चढ़ाया है,

      नजरिया बदल कर देखें, ये नही खराब है

         सीखने वालो को सीख, नासमझ को खराब है। 

जीवन में ठोकर,  जीवन की सीख देती है

   माँ-बाप की ठोकर, सारा जीवन मोड़ देती है

      ठोकर की थपकी से, माँ ममता उढेल देती है

         बाप की ठोकर, बच्चों को शिखर चढ़ा देती है।

एक-एक छोटी ठोकर से, सुनार गहना गढ़ता है

   गुरु की अल्प ठोकर, संस्कारी बना देता है

      जीवन मे कुछ अनसुलझी, ठोकर जरूर होती है

         जो हर समय आगे बढ़ने की, सीख हमे देती है।

हर ठोकर को एक नई सीख, समझना होगा

   फिर संभलकर ठीक से, हमे फिर चलना होगा

      जीवन की हर ठोकर, एक नई चुनौती होगी

         जीवन जीने की एक, नई दिखा हमे देगी।

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