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मेहरा नुन्हारिया समाज का वैभवशाली इतिहास

मेहरा नुन्हारिया समाज का वैभवशाली इतिहास




नुन्हारिया मेहरा समाज के बहुत से लोगो को सुनकर आश्चर्य होगा की छिन्दवाड़ा के मूल निवासी कहलाएं जाने वाला हमारा समाज छिन्दवाडा का नहीं बल्कि राजस्थान के चित्तोडगढ से तलूक रखता है l चित्तोडगढ में समाज की स्थिति एवं पहचान सैनिको के रूप में की जाती थी; साथ ही अपनी कार्यकुशलता में निपुण होने के कारण मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, कपास, जूट आदि की शिल्पकारी के लिए माना जाता था l भारत में अंग्रेजों के आगमन से राजशाही शासनकाल ख़त्म होने की स्थिति में उपरोक्त कार्य छीन जाने से पलायन की स्थिति आ गई l इस प्रकार जीवनयापन की तलास में सारे के सारे कुँवे ने पलायन किया l मेहरा नुन्हारिया समाज अपनी संस्कृतिक एवं कुशलता को संरक्षित करने के लिए अपने पूरे कुंवे के साथ महौड़गढ़ चित्तौढ़गढ़ (राजस्थान) से पलायन कर नजदीकी पडोसी राज्य मध्यप्रदेश की ओर चले l वह नीमच , मंदसौर के रास्ते हरदा जिला के रहटगाँव पहुंचे l रहटगांव में गंजाल नदी के किनारे नुन्हारिया का कुनवा काफी दिन रहा l रहटगांव के पास मुनसदई,नांदनखेडा,कुकरखेडा आदि स्थानों में अपनी नई पहचान एवं अस्तित्व बनाये l नुन्हारिया के गोत्रो में कुछ लोग इन गाँव से अपनी पहचान भी रखते है l यंहा अपनी संस्कृति एवं कुशलता के अनुसार गृह निर्माण  कारीगरीमिटटी की पक्की ईंट निर्माण, कपड़ो की बुनाई एवं सिलाई के कार्य को करते हुए रह रहे थे l परन्तु वंहा उचित भरण-पोषण अपर्याप्त संसाधन के कारण रहने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ा रहा था l  चूँकि रहटगांव में गंजाल नदी के किनारे का क्षेत्र कार्य की दृष्टि से बहुत अनुकूल था l यंहा की मिटटीहवा ,पानी आदि से जीवनोपयोगी वस्तुए आसानी से मिल जाती थी l परन्तु उनकी कारीगरी एवं कुशलता के अनुसार उन्हें पर्याप्त काम की कमी के कारण यंहा रहकर जीवन यापन करने में कठिनाई हो रही थी l इसलिए यंहा से अन्य स्थान की खोज में बैतूल होते हुए सतपुड़ा पहाड़ी को पार करते हुए छिन्दवाड़ा पहुंचे एवं छिन्दवाडा के अनेक स्थानों में रोजगार की आवश्यकता अनुसार बस गए l बैतूल होते हुए कुछ लोग बैतूल के मुलताई, प्रभात पट्टन , आठनेर क्षेत्रो में रुक गए, एवं उन्होंने अपना वन्ही रोजगार प्रारंभ कर दिया l छिन्दवाड़ा एवं बैतूल जिला के मेहरा नुन्हारिया समाज भी अपनी कार्यकुशलता के कार्य यंहा करने लगे जिसमे प्रमुख खेतीबाड़ी करना, मिट्टी का पक्की ईंट बनाना एवं गृह निर्माण करना , कच्चे घरों की छत के लिए मिटटी के कवेलू (खपरेल) बनाना , जूट की सामग्री व सूती कपड़ो की बुनाई एवं सिलाई के कार्य करने लगे l  कालांतर में बैतूल जिला के नुन्हारिया मेहरा समाज महाराष्ट्र की पडोसी सीमा के प्रभाव में आये एवं महाराष्ट्र के महार समाज जो की आजादी या उसके बाद महार समाज के राष्ट्रवादी समाज सुधारक भारत रत्न डॉभीमराव अम्बेडकर के साथ उनकी विचारधारा को अनुसरण कर आगे बढ़े वे सभी बौद्ध विचारक एवं बाबा साहब अम्बेडकर अनुयायी के प्रभाव में आकर अम्बेडकरवादी विचारधारा वाले हो गए l
वंश एवं गोत्र
राजस्थान में नुन्हारिया मेहरा जाती चन्द्रवंश एवं सिसोधिया कुल के थे l यह वंश एक पराक्रमी वंश कहलाता था, राजशाही के समय में इस वंश के युवाओं को सैनिक के काम में लिया जाता था l मन जाता था की चन्द्रवंश के सैनिक बड़े ही शूरबीर हुआ करते थे l सैनिक दल में इनका एक प्रमुख स्थान हुआ करता था l नुन्हारिया की कुछ मुख्य जानकारी निम्नलिखित है –
1.      वंश       -           चन्द्रवंश
2.      कुल      -           वशिष्ठ
3.      शाखा    -           माध्यमिक
4.      वेद        -           यजुर्वेद
5.      धर्म       -           वैष्णव
कालान्तर में मध्यप्रदेश में आने के बाद नुन्हारिया समाज अनुसूचित जाती के अंतर्गत आने लगा  है l 
मध्यप्रदेश में आने के बाद छिन्दवाड़ा भूमि ही असल में है नुन्हारिया मेहरा की जन्मस्थली रही है l छिंदवाड़ा जिला के सभी क्षेत्रो में आपको नुन्हारिया मेहरा कही न कही मिल ही जायेंगे l वैसे इतिहास की बात करे तो नुन्हारिया यानि "बुनकर " समस्त नुन्हारिया बुनकर वंशज के है, बुनकर यानि "कपड़े की बुनाई करने वाले"l अधिकतर नुन्हारिया आपने सरनेम में बुनकर लगाते है/लगाया करते  है  
क्षेत्रो के हिसाब से बात करे तो सरनेम ( गोत्र ) अलग-अगल हो सकते है l नुन्हारिया मेहरा में कुछ गोत्र है जो समस्त छिन्दवाडा के मूल निवासी कहे जाते है l
जिसमेकोलारे(कोलारिया),भावरकर,झावरे(झरबडे,झोड़),मस्तकार,खातरकर,सरनकर,रामटेके,गुलबासकर,सातनकर,आठनेरिया(आठनकर),निरियापुरिया,नुन्हारिया,जाबरकर,सरनकर,वस्त्राने,अम्बुलकर,परसनकार,चेचकार,बडबडे,ओयेकर,बायेकर,मालविया,नागलकर(नागले) पटेलिया, पाटिल,घोगारकर आदि शामिल है l


छिंदवाड़ा जिला के चारगांव प्रहलाद है नुन्हारिया समाज का हब l
यंहा उपरोक्त सभी गोत्र के लोग निवास करते है l प्रदेश के कोई भी गोत्र के नुन्हारिया मेहरा हो चारगांव प्रह्लाद में किसी न किसी घर में रिश्तेदारी , नातेदारी मिल ही जाएगी l

गोत्र के अनुसार सभी मे अपने – अपने ईस्ट देव भी होते है
बैसे बात करें तो गोत्र के आपने- अपने देव होते है जो की उनके पूर्वजो के समय से ये देव मने जाते है l देव की मान्यता यह है की गोत्र के सबसे पुराना पूर्वज के अनुसार उनकी कोई ईस्ट देवी या देवता होता है जिनको हर एक शुभ कार्यों में याद किया जाता है व पूजा की जाती है

मै आपको नुन्हारिया के कुछ ईस्ट देव के बारे में बताता हूँ हो सकता है की मेरे द्वारा यह जानकारी अधूरी हो सकती है परन्तु जितना मै जानता हूँ वह कुछ इस प्रकार है :
गुरैया देव : यह देव विशेष करके कोलारे गोत्र के ईष्ट देव है l गुरैया देव छिंदवाडा के पास करीब 10 किलीमीटर दूरी पर मंडी रोड गुरैया में स्थापित है l इस गोत्र के लोग मोहखेड़ ब्लाक के कामठी के मूल निवासी है l गुरैया देव में बागिया बाबा की थापना है l यंहा कोलारे गोत्र के लोग बागिया बाबा की पूजा अर्चना करते है, माना जाता है की बाबा सभी की मनोकामना पूर्ण करते है l लोग अपनी मनोत्री पूर्ण होने पर बाबा को मुर्गा एवं बकरा की वली भी देते है l

दूल्हा देव :  नुन्हारिया के हर एक गोत्र में दूल्हा देव की पूजा होती है जिसमे अधिकतर कोलारे गोत्र (चारगांव) वाले इस देव को अधिक मानते है l शादी या महत्वपूर्ण अनुष्ठानो में दूल्हा देव की पूजा की जाती है ; चारगांव वाले कोलारे गोत्र में लोग किसी भी देवी-देवता या पूर्वजों को वलि नहीं देते है l शाकाहारी भोजन अपनाते है l दूल्हा देव के मानने  वाले संत कबीर के महंतो के संपर्क में आने के कारण कवीर पंथी हो गए l जो मूर्ति पूजा को न मानकर निरंकार परब्रह्म के उपासक हो गए l  इस गोत्र के लोग छिंदवाड़ा के चारगांव प्रहलाद के मूल निवासी कहे जाते है l

नारायण देव :  नारायण देव को अधिकतर नुन्हारिया मानते है शादी या अनुष्ठानो नारायण देव यानि शंख की पूजा की जाती है l इसे भगवान के प्रतिरूप के साथ-साथ समस्त पूर्वजदेव का प्रतिरूप भी माना जाता है l नारायण देव को शंख के रूप में प्रतिस्थापित किया जाता है l पूजा में शंख ध्वनि करने से समस्त देव व् पूर्वजो को आमंत्रण के लिए जगाया जाता है lशादी अनुष्ठान में नारायण देव पूजा का विशेष प्रावधान है l

लाखिया बाबा: लाखिया बाबा झोड़ (झावरे , झरबडे) गोत्र के बड़े ही प्रशिद्ध देव मने जाते है l झोड़ गोत्र के लोग लाखिया बाबा को विशेष रूप से मानते है, इनके अनुसार बाबा की पूजा से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती l बच्चे का मुंडनशादी या अन्य महत्वपूर्ण अनुष्ठानो में लाखिया बाबा की पूजा की जाती है l पूजा में बकरा या मुर्गा की वलि देने की परंपरा है l लाखिया बाबा छिन्दवाडा से करीब 30 कि.मी. दुरी पर मोहखेड़ रोड नीलकंठी परसगाँव में स्थापित है l
समान बाबा : समान बाबा जाबरकर गोत्र के देव माने जाते है l छिंदवाड़ा से करीब 40 किमी मोहखेड़ ब्लाक में सोहागपुर गाँव में समान बाबा का जीवित समाधी स्थल है l समान बाबा को मुख्यतः जाबरकर गोत्र के लोग मानते है एवं सभी मांगलिक कार्यो को शुरू करने से पहले सामान बाबा को याद करते है ईवा पूजा पाठ करते है l जाबरकर परिवार के जानकारों के अनुसार समान बाबा सदैव पविवार की खुशहाली के लिए कार्य करते है l समान बाबा की पूजा एकदम सरल एवं सात्विक है, बाबा को प्रसाद में आटा से बना कसाउर चढ़ाया जाता है l

जतरा या तिसला: वैसे हरेक गोत्र में अपने अपने इष्ट देव की पूजन का वर्षो पुराना रिवाज है । अलग -अलग गोत्र के लोग आपने मूल स्थान के नाम से जाने है व वही पर पूजा आदि करते है । यह पूजा प्रत्येक वर्ष या 3 वर्षो में एक बार होती है जिसमे सगोत्र परिजन दूर-दूर से आकर अपने मूल पूर्वज स्थान पर सामुहिक पूजा करते है एवं सभी की खुशहाली की शुभकामनाएं मांगते है। जैसे नागलकर या नागले का मूलस्थान राजड़ा में देव पूजा एवं तिसाला होता है, भावरकर का मुजावर में कोलारे का कामठी में झोड़ का परसगांव में तिसाला होता है। इसी प्रकार अन्य गोत्री का भी एक देव स्थान एवं तिसाला होता है ।

नोट : उपरोक्त जानकारी समाज के जानकार विभिन्न लोगो से प्राप्त जानकारी के अनुसार लिखी गई है l यदि इसमें कोई भिन्नता पाई जाती है तो कृपया अवगत कराये जिससे जानकारी को और भी शुद्ध क्या जा सके l

संकलनकर्ता
श्याम कुमार कोलारे ( चारगांव प्रह्लाद )
सामाजिक कार्यकर्त्ता 
मोबाइल- 9893573770

2 Responses to "मेहरा नुन्हारिया समाज का वैभवशाली इतिहास "

  1. I don't know more about vansh and gotra related information. But Which surename is patilkar (pateliya or patil ) they also celebrate tisala festival every year/ every three year. This festival is celebrate chargaon karbal near by kamthi and saroth also. Some people who is belonging to kalare surename they are worship to guraiya dev which is situated at chandangaon near of guraiya when their home ocure some programs as like mundan , marriage etc.

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  2. I don't know more about vansh and gotra related information. But Which surename is patilkar (pateliya or patil ) they also celebrate tisala festival every year/ every three year. This festival is celebrate chargaon karbal near by kamthi and saroth also. Some people who is belonging to kalare surename they are worship to guraiya dev which is situated at chandangaon near of guraiya when their home ocure some programs as like mundan , marriage etc.

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