नुन्हारिया मेहरा समाज एक परिदृश्य
नुन्हारिया मेहरा समाज एक परिदृश्य
लेखक : विनोद झावरे (सहा. प्राध्यापक)
छिन्दवाड़ा का भौगोलिक परिदृश्य देखा जाए तो यह एक पठारी,काली दोमट मिट्टी तथा वन क्षेत्र से घिरा हुआ जिला है l हमारी नुन्हारिया मेहरा समाज इस जिला के इक्का-दुक्का क्षेत्र को छोड़ दे तो संपूर्ण क्षेत्र में निवासरत रही है । चारगांव प्रहलाद नुन्हारिया मेहरा समाज का गढ़ माना गया है।"(Reference by Shyam Kolare ji)"। बदलते दौर में समाज का पलायन अब शहर की ओर हो रहा है क्योंकि नौकरी पेशा लोग या सेवानिवृत्ति के बाद शहर में रहना पसंद कर रहे हैं, वही मजदूर वर्ग शहरी रोजगार की उपलब्धता के कारण एवं अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहरों की ओर झुकाव बढ़ रहे है ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह बदलते दौर के अनुसार अपने को बदलने का प्रयास करता है । आज सभी समाज का स्वरूप बदलता जा रहा है, लेकिन हमारी समाज आज भी जहां की तहां खड़ी है । क्योंकि मानवीय प्रवृत्ति ही ऐसी होती है कि अपनी पीठ की वजाए दूसरों की पीठ को देखकर उसमें बुराइयां गिनने का प्रयास करते है। परंतु अतीत से लेकर आज तक समाज का स्तर कैसा था तथा भविष्य की नीति कैसी होनी चाहिए के सिद्धांत का परिपालन करें अगर हमको कोई गलत कह रहा है तो स्वीकार करे कि वह किन कारणों से गलत कह रहा है । उन कारणों को तलाशने का प्रयास करें और वही कारण हमारे समाज को आगे विस्तार होने में बाधा उत्पन्न कर रहा है; और हम सफल एवं प्रबल होने में विफल हो रहे हैं । जोकि निम्न आधार पर देखा जा सकता है।
हमारी समाज का एक बहुत बड़ा दोष है यह भी रहा है कि स्वार्थ की प्राप्ति हेतु पैर पकड़कर खीचना, मुस्लिम और सिख की भांती हाथ पकड़कर साथ चलाने की नीति होनी चाहिए । क्योंकि किसी परिवार में एक व्यक्ति शिक्षित या धनवान होने से पूरा परिवार शिक्षित या धनवान नहीं माना जाता है । इसलिए हाथ पकड़कर कंधे से कंधा मिलाकर चलकर ही समाज को ताकतवर बनाया जा सकता है । किताबों में कहीं पढ़ने यह नहीं आया लेकिन व्यवहार में सगे भाई को भी, भाई भूल जाते हैं और यही कटू सत्य है। चतुराई पूर्ण तरीके से अपने लाभांश को प्राप्त करना मूर्खता का परिचय देकर अपनों को बर्बाद होने से बचाएं ।
कर्तव्य निष्ठा- व्यक्ति अपने कार्य के प्रति जिम्मेदार और ईमानदार हो वह कर्तव्यनिष्ठ माना जा सकता है । कोई व्यक्ति अगर किसी तरह का काम कर रहा है तो वह वास्तव में अपने श्रम को बेच रहा है, बदले में पारिश्रमिक के तौर पर वेतन ले रहा है और अपना घर या परिवार चला रहा है । वह सबसे बड़ा सेवक माना जाता है और वही दूसरों के कार्य करने लगे और परिणाम शून्य आए तो वह बिगार मान लिया जाता है । हमारी समाज का एक अंश (कोटवार) ऐसे कार्यों में लिप्त है जो छूत कार्य की ओर प्रेरित हो रहा है । सवाल यहां कुछ व्यक्ति का सरकारी काम के लिए चयन हुआ है वह वास्तविक आधार पर एक कर्मचारी के रूप में नियुक्त होता है । वह शासकीय कार्य के अलावा अपने निजी कार्य, कृषि या छोटे-मोटे व्यवसाय कर सकता है । परंतु निजी कार्य को बतौर सामाजिक स्तर पर करने लगे तो वह एक धर्म पुरूष या सामाजिक कार्यकर्ता माना जाने लगता है । अपनी समाज के अलावा दूसरे समाज के विवाह आदि कार्यों में तोरण बांधने,लकड़ी घुमाने और बदले में निछावर लेने,एक गिलास दारू के लिए मालिक कहना,और तीज त्यौहार पर एक पाव दाना या अनाज के लिए भीख मांगने जैसे धूर्त कार्य करने में अपनी भागीदारी निभाते हैं । यही कारण है कि हमारी समाज को लोग अछूत का दर्जा दे रहे हैं । दोष जाति का नहीं बल्कि अपने समाज के लोगों में चंद पूर्ति के लिए किए गए कार्य से हैं । सब कुछ बदल चुका है लेकिन अफसोस इस बात का कि समाज मे रूढ़िवादी परम्परा नहीं बदली है । यह पहेली आज भी अनसुलझी लगती है ।
कुरीतियां- हमारी समाज की एक कहावत भी चरितार्थ है या मानी जाती हैं “गोंड गांव में मेहरा का सिहान” । यह एक सत्यता भी है परंतु यहां पर अति पिछड़े लोगों के बीच अपना योगदान से है, चतुर लोगों के बीच तो आज भी पीसने जैसी स्थिति दिखाई देती है और इन लोगों के बीच रहकर समाज ने भी अपना अस्तित्व खो दिया है । आज समाज में कुछ कुप्रथा का चलन है । आज की सबसे बड़ी समस्या है “शराब खोरी”, यह हमारी समाज में जब भी किसी तरह के कार्यक्रम का आयोजन होता है तब बहुतायत मात्रा में समाज के लोग शराब के नशे में होते हैं जिससे अव्यवस्था जन्म लेती है, कार्यक्रम करने वालों की बदनामी मानी जाती हैं और दूसरे समाज के लोग हम पर हंसते हैं । यह विचार का विषय है, इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है । एक समय था जब बाल- विवाह हुआ करते थे, आज समाज वृद्ध विवाह की ओर जा रहा है । व्यसन करने वाले माता-पिता ही अपने बच्चों के लिए खाने पीने वाले एंव सरकारी नौकरी वाले दामाद का सपना संजोए हुए बैठे हैं । परिणाम स्वरूप लड़की और लड़के की उम्र आधी से ज्यादा हो चुकी है । दहेज प्रथा समाज में आर्थिक असमानता को जन्म देती है तथा तीसरा यह कि मृत्युभोज प्रभावित परिवारों के आंखों से आंसू टपकते हैं, और समाज भोजन की चुस्की लेती खाती है l यह प्रकृति के विपरीत भी माना जा सकता है । अंतिम संस्कार जितने सरल विधि से संपादित होता है ठीक उसी तरह तीसरे या तेरहवीं, गंगा पूजन आदि कार्यक्रम बिना भोजन आदि के संपादित होना चाहिए, परंतु इस पर उंगलियां भी उठती है समाज के ही कुछ लोग उन लोगों को नंगे-भीखमंगे जैसे शब्दों से दर्शाने का प्रयास है । मृत्यूभोज नामक कुरीति से समाज को बचाए । अन्ततः समाज के स्तर का उठना भी अत्यंत आवश्यक है। आज रोजगार की कमी और बेरोजगारों की अधिकता ने समाज को पंगु बना दिया है l प्रोफेशनल डिग्री के आभाव में समाज निजी क्षेत्रों में जाने से चूक रहा है l आत्मनिर्भर भारत पूर्व घोषणा एवं अपने दम पर खड़े होना ही सरकारी निति है l परन्तु अब समाज परिवर्तन की अत्यंत आवश्यकता है तभी घर को मान, परिवार को सम्मान,और समाज को अधिकार मिल सकता है ।
भेदभाव - समाज का दोष यह भी देखने में आया है ,कि हमे जहां। दूसरी समाज के लोग छूत और भेदभाव अपनाते है परंतु आज कहीं उनसे ज्यादा समाज के ही लोग आपसी विभेद को अपना रहे हैं । मानव को तीन श्रेणी में बांटा गया है उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग, और निम्न वर्ग समाज के उच्च वर्ग के। लोग निम्न वर्ग या दिन हिन गरीब व्यक्तियों के साथ हीन भावना अपनाते हैं। उन्हें घृणा दृष्टि से देखते हैं, गरीब वर्गों का सम्मान देने में कमी दिखाई देती है। यहां तक की गरीबों के घर जाने से कतराते हैं उनसे सामाजिक दुरी बनाते देखा गया है।जब समाज, रिश्तेदारी,भेदभाव को अपना रहा है तब दूसरे समाज के लोग तो और ज्यादा घृणा की दृष्टि से देखेंगे लेकिन दोष कुछ गरीब वर्गीय लोगों का ही नहीं बल्कि निम्न स्तर के सभी लोगों मे कुछ कमियां भी है । जो व्यक्ति ना करने के लिए मजबूर करती है जिसमें मलिन बस्ती में रहना, साफ सफाई ना रखना, गंदे वस्त्र पहनना,खानपान में अनिश्चितता, अभद्रता पूर्ण भाषा का प्रयोग करना यही कारण है कि समाज के लोग समाज में भेदभाव को जन्म देते है।आपसी सामंजस्य के अलावा समाज बिखरता चला जा रहा है। यहां तक छिंदवाड़ा ग्रामीण समाज का एक समूह है तथा ग्रामीण समाज के सदस्य मुख्यतः कृषि के माध्यम से जीवन यापन करते हैं इसमें परिवार का।अत्यधिक महत्व होता है,तथा संयुक्त परिवारों का अधिक प्रचलन होता है। यहां श्रम का विशेषीकृत अभाव प्रकृति के साथ निकट संबंध आचार विचार और रहन-सहन की सरलता,आदमी और। संबंधी प्रत्यक्ष नियंत्रण प्रथा, व परंपराओं का अधिक महत्व, अशिक्षा और भाग्य बादिता जो निम्न जीवन स्तर को दर्शाता है।
गरीबी - यह एक ऐसा विषय है जो हर जाति वर्ग विशेष पर लागू होने वाली वस्तु है जिसमें व्यक्ति रोटी कपड़ा मकान अर्थात जीवन जीने के साधनों या इस हेतु धन के अभाव की स्थिति है । जिससे परिवार के स्वास्थ्य और कुशलता का एक सामान्य स्तर बनाए रखा जा सके । सही अर्थ में देखा जाए तो जिन्होंने परिश्रम किया उन्हें लाभ मिला चाहे कृषि क्षेत्र, व्यवसाय, निजी कार्य या सरकारी सेवा जिस आधार पर हमारी समाज का उदय हुआ यह छिंदवाड़ा जैसे शहरों में उनकी नीव रची गई उस आधार पर गरीबी एक आम बात हो सकती है क्योंकि पलायन किया हुआ व्यक्ति असली धनवान नहीं हो सकता है परंतु धन संचय करने के माध्यम उपयुक्त और व्यक्तियों में जिज्ञासा हो तो गरीबी को भी मात दिया जा सकता है । आज कामों की कमी नहीं व्यक्ति में हुनर अर्थात टैलेंट की कमी है।यहां हर व्यक्ति के गुण के आधार पर आपकी पहचान होती और दिन प्रतिदिन काम की बृद्धी होती जाती है। अपने समाज मे परिवार का भरण पोषण सरलता से कर लेता, लेकिन यहां पर परिवार का एक व्यक्ति कमाता है 4 बैठ कर खाते है, जिसके कारण लोगों के घर गरीबी जन्म लेती है। वह परिवार को भी संभाल नहीं पाताहै। बचना तो हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति के आधार पर उधार का किराना, उधारी की किस्त की गाड़ी, महंगे दाम पर किराए का घर और फिजूल के शौक ईन सब से दूर रहें। मेहनत कर आनंद पूर्वक जीवन जी सकते हैं। यहां तक की समाज में उद्योग या व्यवसाय की ओर कोई भी नजर नहीं आ रहा है, समाज को छोटी सोच ने ऊपर उठने नहीं दीया।और समाज गरीबी जीवन जिन्हें को तैयार हैं।
लेखक : विनोद झावरे (सहा. प्राध्यापक) / सामाजिक चिन्तक
वामला,छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
आज वर्तमान परिवेश मे समाज में व्याप्त कुरीतियों पर प्रहार अति आवश्यक है आदरणीय झावरे जी को धन्यवाद जो अपने लेख के माध्यम से हमारे समाज का वास्तविक आईना हमारे समक्ष रखा
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