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कमजोर न समझो नारी को

कमजोर न समझो नारी को

 


बेटी कहे समाज से अब बहुत हुआ

बहुत हुआ यूँ अवला बनकर रहना

उड़ना उन्मुक्त गगन में खुले पंख से

अवशर मिलें तो बंदिश में न रहना l

 

बेटी है कहकर मन को कमजोर किया  

बेटी अवला है ये मन में है डाल दिया

तू नाजुक है, तू कोमल है, कमजोर है

नित्य नई कमजोरी का अहसास दिया l

 

पराई नही मै बाबा मुझको न करना दूर

बेटी की महिमा बड़ी कद होगा मजबूत 

नारी की हालत ऐसी,रस्सी में बंधा गज

न टूटे पाया तब छोड़ दी अपनी जिद l

 

पढ़ लिखकर मुझे आसमान नापना है

इस समाज की सेहत में हाथ बटाना है

बस हो जाए हाथ आपका सिर पे मेरे

मुझे आसमान को इस जमी पे लाना है l

    

सृजनकर्ता बनके रच दी दुनिया सारी

जीवन अपना सब सृष्टी का निर्माण में

लक्ष्मी दुर्गा सीता सावित्री ऐसे रूप में

नारी अपनी वीरता शक्ति के स्वरुप में l

 

कवी/ लेखक

श्याम कुमार कोलारे

सामाजिक कार्यकर्ता, चिन्तक

चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा

मोबाइल : 9893573770

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