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 “गाँव का सच्चा सुख”

“गाँव का सच्चा सुख”



गाँव हमारा सबसे प्यारा,

शहर से अच्छा बड़ा निराला

पानी मुफ्त मिले सम्मान,

सुन्दर मन भले रंग है काला l

गाँव में दर खुले हरदम,

लिखे है द्वार पर राम-राम  

गेट शहर के बंद रहे है सदा,

दिखे कुत्ते से सावधान l

गाँव में पडोसी सच्चे होवे,

भाई जैसे बने सहयोगी

शहर में बने सब अनजान,

बगल में है कौन पडोसी l 

गाँव भरे है खेत खलिआन,

शुद्ध हवा है और प्रकास

शहर में सब धुँआ-धुँआ है,

दूषित करता है हर साँस l  

खेल गाँव के है निराले,

कुश्ती कबड्डी सबकी शान

खान-पान और रहना सादा,

रोग तन का न रहे भान l

कठिन परिश्रम खेत में होता,

सुख चैन से रात में सोता

शहर में पसीना जिम में जाये,

थकने जाए देकर पैसा l

चलन शहर का उल्टा इससे,

इनके यहाँ बहुत किस्से  

गौ माता सडको में भटके,

पले कुत्ता घर जैसे बच्चे l

छोटे को मिले प्यार गाँव में,

बड़ो बूढ़ों होवे सम्मान

शहर की चकाचौंद में रहकर,

भूल न जाना गाँव की शान l  

 

 

 

कवी/ लेखक

श्याम कुमार कोलारे 

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