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कल्पनाये बचपन की

कल्पनाये बचपन की

जब मैं छोटी बच्ची थी

सोचा ऐसा करती थी

मम्मी जैसा यदि होती,

अपनी मन की करती l

न कोई पढ़ाई लिखाई,

न कोई स्कूल जाना

खाना में भी अपनी पसंद,

खुद खाती सबको खिलाती l

नई-नई साडी पहनकर,

सैर सपाटे घूमने जाती

यही सोचकर अक्सर मैं,

ये सपनो में मैं खो जाती l

अब जब मैं बड़ी हो गई,

आज खुद मम्मी हो गई

काम जिम्मेदारी से हरदम,

दिनभर फुर्सद मिलती नहीं l

काश मैं फिर से बच्ची होती,

नाचती गाती करती ठितोली

मन करता है मैं फिर से,

अपने बचपन में चली जाती l  

 

लेखक/ कवी

पुष्पा कोलारे

भोपाल, मध्यप्रदेश

मोबाइल: 9424807212

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