जीवन का अंतिम सत्य
बड़ा आश्चर्य हुआ, उस दिन मुझे
मेरे जाने से उन्हें, आंसू बहाते देखा
तारीफों के, पुल पर सवार होकर
मेरी अच्छाईयों के, किस्से सुनाते देखा ।
उस दिन शरीर, बड़ा भारी लगा मेरा
जिस दिन रुह, आजाद हुई तन से
जो कभी पूछते नहीं थे, हाल-ए दास्ताँ
आज मेरे इर्द-गिर्द भटकते हुए देखा ।
तरसता था नौते लिवाज के लिए कभी
आज नए वस्त्रों से सजाया जा रहा है
जिंदगी भर खुशबू के लिए जूझता रहा
बेजान को इत्रों से महकाते हुए देखा ।
पता चला आज, जीवन का मूल्य
साँसें का ही होता है संसार में मोल
वास्तविकता यही है जीवन की, अंतिम
बेजान से तो लोगों को, डरते हुए देखा ।
आत्मा कांप उठी, उस क्षण मेरी
लोगों को, अर्थी से बाँधते हुए देखा
अंतिम घड़ी में भी, मुझे आगे करके
पीछे मेरे, अपनों को चलते हुए देखा ।
जो लोग रोकते थे मुझे, जाने से अक्सर
देर क्यों कर रहे हो, लेजाने में, कहते देखा
यही अंतिम सत्य है दुनिया का यारो
पल भर में जीवन को, खाक होते देखा ।
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कवी/ लेखक
श्याम कुमार कोलारे
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