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 सावन झूले को झूल उमंग से ओतप्रोत हुए बच्चे

सावन झूले को झूल उमंग से ओतप्रोत हुए बच्चे


"चारगांव प्रहलाद में भुजलिया विसर्जन के उपरांत सावन झूले की विदाई"

छिन्दवाड़ा - सावन महीना आते ही सभी के मन में एक नई उमंग भर जाता है विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो इसका उत्साह देखते ही बनता है । क्या बच्चे क्या बड़े सभी सावन मास का स्वागत बड़े उत्साह से करते है l ग्रामीण क्षेत्रों में इस मास को वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है । इस महीने में रामायण पाठ, भगवान शिव की पूजा अराधना, सुन्दर कांड का पाठ, और ओजस्वी वीररस से ओतप्रोत आल्हा गायन तो इस मास में लोगो के मन में वीरता का नया संचार भर देता है इसलिए इस महीना का सब महीनो में एक विशेष महत्व माना जाता है । महीने भर के बाद सावन महीने के अंतिम दिन रक्षाबंधन भाई-बहिन के प्यार और स्नेह को और भी मजबूत बनाता है । रक्षाबंधन का दूसरा दिन कजरिया जिसे गाँव में भुजलिया कहते है का भी अपने आप में एक विशेष महत्त्व होता है, रक्षाबंधन के दिन किसी कारण राखी न बांध पाने से इस दिन भी बहिन अपने भाई के हर जाकर उसे राखी बंधती है,बहिन अपने मायके की भुजलिया उत्सव में शामिल होती है ।

 


ग्राम चारगांव प्रहलाद के निवासी श्याम कोलारे बताते है कि यहाँ वर्षों पुरानी परम्परा है; गाँव में करंजी का एक पुराना पेड़ पर सावन झूला बांधा जाता है एवं गाँव की युवती, महिलाएं इसमें झूलते हुए सावन गीत गाते है । "नारे सुआ..." सावन गीत से इसकी शुरुआत होती है जिसमे सभी महिलाये एवं युवती इस गीत को गाते हुए झूला झूलती है । इस झूले को झूलने में बच्चों में एक नया उत्साह एवं उमंग देखने को मिलता है, बच्चे दिन भर झूला झूलते है एवं ख़ुशी मानते है । इस झूले का बच्चों को साल भर से इन्तजार रहता है । इस गाँव में अपने माँ के साथ मामा के घर आने वाले बच्चे विशेष इस झूला को झूलने के लिए दूर-दूर के आते है । चारगांव प्रहलाद में रक्षाबंधन के पहले सावन झूला बांधा गया एवं जिसमे गाँव की एवं आपने मायके आई युवती और महिलओं ने झूला का खूब आनंद उठाया । शाम को भुजलिया विसर्जन के उपरांत इस सावन झूले की विदाई देकर छोड़ा जाता है ।

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