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 मैदानी खेल से उदासीनता बन सकती है बच्चों के शारीरिक विकास में रूकावट

मैदानी खेल से उदासीनता बन सकती है बच्चों के शारीरिक विकास में रूकावट

                                           


हम सभी को भलीभांति पता है कि बच्चों को जितना पौष्टिक भोजन जरुरी है उतना ही उनको खेलना भी जरुरी है । वैसे भी बच्चों के लिए सबसे मनपसंद काम खेलना ही होता है । अधिकतर बच्चे अपने खाली समय को खेलने में ही बिताते है । खेलना किसे पसंद नहीं है बच्चों से लेकर बड़ो तक को खेलना पसंद है । और यदि बच्चों के साथ बड़े भी खेलते देखे तो यह बहुत ही सुखद अनुभव होता है । बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए खेल बहुत महत्वपूर्ण है । खेल न केवल बच्चों का शारीरिक विकास करता है वल्कि उनका बौद्धिक कौशल का भी निर्माण करता है । खेल में बच्चों को हार-जीत का सुखद एवं दुखद अहसास उनके मानसिक विकास को पुष्ट करता है । बच्चों में सीखने की क्षमता वयस्कों से कंही अधिक होती है यही कारण है कि बच्चे किसी भी सीख को बहुत जल्दी सीख जाते है । बच्चों की यह प्रवत्ति उन्हें अपने बौद्धिक विकास को पुष्ट बनाने में मदद करती है ।

बच्चों को खेलों से जुड़ने के लिए उन्हें एक अच्छा माहौल का मिलना अति आवश्यक होता है । आधुनीकरण एवं शहरी प्रभाव के कारण बच्चों में खेलने की प्रवत्ति का क्षीण होना एक मुख्य कारणों के रूप में उभरता जा रहा है । ग्रामीण क्षेत्रो की अपेक्षा शहरी क्षेत्रो में मैदानी एवं पारंपरिक खेलों के स्थान पर इनडोर गेम ने अपनी जगह बच्चों के मन में जमा ली है । बच्चे अधिक से अधिक समय अपने घर में रहकर इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स में बिताने लगे है । कम्पुटर गेम, मोबाइल गेम आदि ने बच्चों को इतना व्यस्त कर दिया है की उनको शारीरिक मेहनत वाले खेलों से अरुचि होने लगी है और कुछ दिनों बाद यदि खेलते भी है तो बच्चे बहुत ही जल्द अपने आप को थका हुआ समझने लगते है ।

एकल परिवार का प्रभाव – आज कल स्वरोजगार एवं नौकरी के कारण अधिकतर परिवार शहरों एवं कस्बे में जाकर बस गये है और संयुक्त परिवार से एकल परिवार में विभक्त हो गेये है । बहुत सारे परिवार ऐसे भी है जिसमे बच्चों के माता-पिता दोनों नौकरी पेशा होते है ऐसे में बच्चों का पालन -पोषण का जिम्मा उठाना उनके लिए बडा कठिन हो जाता है । बच्चों का यूँ अकेले घर में रहना एवं उनको अकेलेपन का शिकार बनता है । जिससे वह एकांतप्रिय हो जाता है अन्य बच्चे के साथ घुलने-मिलने में अवसाद महसूस करने लगता है । एकल परिवार में बच्चों के साथ खेलने के लिए साथी के कमी का होना मैदानी खेल न खेल पाना भी कारण बनते जा रहा है ।  

इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स का चलन – आज के युग में माता-पिता ने बच्चों को खिलौने के रूप में इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स हाथों में थमा दिया है । बाल मन को कृत्रिम वातावरण प्रदान किया जा रहा है । इन वातावरण ने वास्तविक रिश्तों का स्थान कृत्रिम रिश्तों एवं अहसासों ने ले रखा है । आज कल सोशल मीडिया के हजारों कृत्रिम दोस्त बहुत हो सकते है परन्तु एक सच्चा दोस्त का अहसास कोई इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स नहीं दे सकता है । इसलिए बच्चों को कृत्रिम रिश्ते परोसने से बचाकर वास्तविकता की ओर लाना आवश्यक है ।

परम्परागत खेल की अवहेलना - इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स खेलो के चलते परंपरागत खेलो की अवहेलना होने लगी है जबकी हमारे परम्परागत खेल ही बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक पौषण में कारगार सिद्ध होते है । शारीरिक विकास के पुराने खेल कुश्ती, कबड्डी, दौड़, पिट्टू, रस्सी कूद, ऊँची कूद, खो-खो, गिल्ली-डंडा,कंचे, किट्टू, तीरंदाजी से बच्चों के सर्वंगीण शारीरिक विकास होता है इसे नकारा नहीं जा सकता है । बच्चों का इन खेलो से न केवल शारीरिक वल्कि भावनात्मक एवं संज्ञानात्मक विकास भी होता है । पुराने खेलो से बच्चों में आपसी तालमेल एवं टीम प्रबंधन कौशल भी  देखा जा सकता है जो कि उनके जीवन पर्यन्त्त व्यावहारिक जीवन में काम आने वाले कौशल के रूप में उभरते है ।

स्थान एवं परिवेश की कमी – ग्रामीण क्षेत्रो में स्थान एवं खेल के मौदान की कमी नहीं होती है । परन्तु सघन आबादी वाले क्षेत्रों में जहाँ जगह की विशेष रूप से कमी होती है ऐसे क्षेत्रो में बच्चों के खेलने के स्थानों की कमी होती है, ऐसे स्थानों में बच्चों को खेलने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है । एक छोटे से स्थान में बच्चों को खेलने का सही माहौल नही मिल पाता है । शहर में यह कमी विकराल रूप में देखने को मिलती है जब परिवार बड़ी-बड़ी मल्टी में रहते है जो दो मंजिला और अधिक ऊपर हो सकता है, और छोटी-छोटी जगह एवं कमरे में रहते है । इस प्रकार की जगह में बच्चो को खेलने के लिए सही परिवेश नहीं मिल पाता है । इसके लिए जरुरी है कि खेलने के लिए पर्याप्त समय व स्थान दिया जाए जहाँ बच्चे पूर्ण मनोदशा में खेल सके ।

माता-पिता का बच्चों के खेलो के प्रति उदासीनता – माता-पिता बच्चों के उज्वल भविष्य के लिए लिए सब कुछ करते है । उनकी पढ़ाई-लिखाई, संस्कार, सामाजिक विकास, मानसिक विकास, भावनात्मक विकास आदि के लिए सब कुछ करते है । यह सीख किसी भी शिक्षा केंद्र में दी जा सकती है परन्तु शारीरिक विकास के लिए कृत्रिम उपाय बहुत दिनों तक साथ नहीं देंगे; एक न एक दिन यह उनसे छूट जाएगा और हमें उस भूल का अहसास होगा कि बच्चों के शारीरिक विकास की अवेहलना बच्चों के भविष्य के लिए कितना खतरा बन सकती है ।
बच्चों के लिए खेल बहुत ही अच्छी शारीरिक गतिविधि है जो तनाव और चिन्ता से मुक्ति प्रदान करता है । यह खिलाड़ियों के लिए अच्छा भविष्य और पेशेवर जीवन का क्षेत्र भी प्रदान करता है। यह बच्चों को उनके आवश्यक नाम, प्रसिद्धी और धन देने की क्षमता रखता है। इसलिए, हम कह सकते हैं कि, व्यक्तिगत लाभ के साथ ही पेशेवर लाभ के लिए भी खेल सकते हैं। दोनों ही तरीकों से, बच्चों के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा को लाभ पहुँचाता है। इस लिए बच्चे क्या खेल रहे है और उनको क्या खेलना चाहिए इसकी ओर माता-पिता, शिक्षक तथा समाज को भी विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक है ।
 
लेखक
श्याम कुमार कोलारे



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