ज्ञान के शिल्पकार- शिक्षक
अबोध मन जड़ बुद्धि को, ज्ञान सींचकर बड़ा किया
गीली मिट्टी थाप-थापकर, सुन्दर सुद्रण रूप दिया ।
था बिलकुल मैं कोरा कागज, सुन्दर लेख से पूर्ण किया
ज्ञान विज्ञान संस्कार सिखाकर, सम्मान के योग्य किया ।
आज जो पहचान हमारी, सुन्दर सुखमय चमक है प्यारी
सीख हमारी शिक्षक से है, हम फूल शिक्षक है क्यारी ।
मान बढ़ा सम्मान बढ़ा है, और बढ़ा है धन
तन में ज्ञान शक्ति आई है, सुन्दर हुआ है मन ।
शान हमारी शिक्षक से है, शिक्षक हमारे ज्ञान की खान
इनके बिना निर्बुद्धी है, शिक्षक से मिली पहचान ।
ज्ञान सृजन करे हमारा, सभी शिक्षा हमें है दीन्हा
दूर भगा अज्ञान की पीड़ा, ज्ञान प्रज्वल हमारा कीन्हा ।
शिक्षक का उपकार बड़ा है, अज्ञान का अंधकार मिटा है
शिक्षा का प्रकाश फैलाकर, जड़ता का चाम घटा है ।
नमन करें हम सब शिक्षक को, देना हमको हरदम ज्ञान
जड़ बुद्धि श्याम कर जोरी, शिक्षक से ही मेरा अभिमान ।
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कवी/ लेखक
श्याम कुमार कोलारे
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